बीकानेर,राजस्थान में ऐसे नेताओं की भरमार है जो अपनी सुविधा के अनुसार पार्टी बदलते हैं और उसके बाद भी सत्ता पर काबिज रहते हैं. ऐसे नेताओं को पार्टियों का समर्थन तो मिलता है. साथ ही जनता भी उनको चुनती है.
इसमें कई बड़े नाम भी शामिल हैं, ऐसे में देखना ये होगा कि इस बार के विधानसभा चुनाव में जनता दलबदलू नेताओं को चुनती है या नकार देती है.
राजस्थान में भाजपा ने अभी 41 उम्मीदवारों की एक सूची जारी की है. दूसरी सूची का इंतजार हो रहा है, तो कांग्रेस के 100 नाम फाइनल हो चुके हैं, लेकिन अभी तक सूची जारी नहीं हुई है. बसपा और आजाद समाज पार्टी ने अपने उम्मीदवारों की घोषणा कर दी है. जबकि आम आदमी पार्टी की सूची का भी इंतजार है. इन सब के बीच प्रदेश में नेताओं के पार्टी बदलने और पुराने बागियों के पार्टी में फिर से शामिल होने का दौर जारी है.
प्रदेश में देवी सिंह भाटी, सुभाष महरिया, राजेंद्र सिंह गुढ़ा, धन सिंह रावत, राजकुमार शर्मा, रामकेश मीणा, बंशीधर, नवल किशोर शर्मा, नंदकिशोर महरिया, रोहिताश शर्मा जसवंत यादव और संदीप यादव जैसे कई नाम हैं, जिन्होंने अपनी पार्टी बदली है. वैसे तो आम तौर पर चुनाव से पहले पार्टी बदलने का सिलसिला सालों से चला आ रहा है, लेकिन इस बार राजस्थान में हुए राजनीतिक घमासान के बाद हालात कुछ अलग नजर आ रहे हैं.
लाल डायरी के बाद विवादों में आए गुढ़ा
प्रदेश सरकार में मंत्री रहे राजेंद्र गुढ़ा लाल डायरी के बाद विवादों में आए. वैसे तो वो पहले भी कई बार मुख्यमंत्री और सरकार के खिलाफ बोलते रहे, लेकिन लाल डायरी मामले पर सरकार ने एक्शन लिया और राजेंद्र गुढ़ा को बाहर का रास्ता दिखाया. गुढ़ा ने 2008 में पहली बार उदयपुरवाटी से बीएसपी के टिकट पर चुनाव लड़ा था. चुनाव जीतने के बाद वो कांग्रेस में शामिल हो गए और मंत्री बने. 2013 में गुढ़ा ने कांग्रेस के टिकट पर चुनाव लड़ा, लेकिन भाजपा उम्मीदवार से हार गए और 2018 में फिर से उन्होंने एक बार पाला बदला और बीएसपी के टिकट पर चुनाव लड़ा. चुनाव जीतकर उन्होंने कांग्रेस को अपना समर्थन दिया और फिर से सरकार में मंत्री बने.
भरतपुर राजघराने के महाराज की दिलचस्प है कहानी
भरतपुर राजघराने के महाराज और प्रदेश सरकार में मंत्री रहे विश्वेंद्र सिंह की कहानी भी दिलचस्प है. 1988 में विश्वेंद्र सिंह कांग्रेस से जिला प्रमुख बने. 1989 में विश्वेंद्र सिंह जनता दल से लोकसभा सांसद बने. उसके बाद जनता दल छोड़कर भारतीय जनता पार्टी जॉइन की. विश्वेंद्र सिंह ने 1999 और 2000 में भरतपुर से बीजेपी के प्रत्याशी के तौर पर सांसद का चुनाव लड़ा और दोनों बार जीते. 2008 में विश्वेंद्र सिंह डीग कुमेर से कांग्रेस के टिकट पर चुनाव लड़े और हार गए. फिर 2013 और 2018 में लगातार विश्वेंद्र सिंह ने डीग कुमेर सीट से अपनी जीत दर्ज कराई और 2018 में चुनाव जीतने के बाद पर्यटन मंत्री बने. सचिन पायलट के साथ बगावत करने वाले नेताओं में विश्वेंद्र सिंह का नाम भी शामिल था.
घनश्याम तिवारी का ऐसा है राजनीतिक करियर
भाजपा के दिग्गज नेता घनश्याम तिवारी ने 1980 में पहली बार सीकर से विधानसभा चुनाव लड़ा. उसके बाद 6 बार विधायक रहे. सीकर विधानसभा सीट के बाद उन्होंने चौमूं और फिर सांगानेर सीट से चुनाव लड़ा. तिवारी इस दौरान भैरोसिंह शेखावत और वसुंधरा राजे दोनों की सरकारों में मंत्री रहे. हालांकि वो 2009 में जयपुर सीट से सांसद का चुनाव हार गए. वसुंधरा राजे से विवाद के बाद 2018 में उन्होंने भाजपा का दामन छोड़ और खुद की अलग पार्टी बनाई. 2018 में उन्होंने खुद की पार्टी से चुनाव लड़ा. प्रदेश में अन्य सीटों पर भी टिकट दिए. भाजपा छोड़ने के बाद एक साल अपनी पार्टी में रहे और बाद में कांग्रेस में शामिल हो गए, लेकिन उनको कांग्रेस भी रास नहीं आई और वापस भाजपा का दामन थाम लिया. इसके बाद भाजपा ने उन्हें राजस्थान से राज्यसभा सांसद बनाया.
कभी कांग्रेस तो कभी बीजेपी में रहे हबीबुर्र रहमान
इसी तरह प्रदेश में मुस्लिम चेहरे के रूप में पहचान रखने वाले हबीबुर्र रहमान ने 1990 में पहली बार कांग्रेस के टिकट पर चुनाव लड़ा, उसके बाद 1993 और 1998 में भी इसी सीट से कांग्रेस के टिकट पर विधायक बने. लेकिन 2003 में चुनाव हार गए. फिर 2008 के विधानसभा चुनाव में रहमान ने बीजेपी का दामन थामा और नागौर से चुनाव लड़े और चुनाव जीते. इसके बाद 2013 में फिर से बीजेपी के टिकट पर चुनाव जीते, लेकिन 2018 में चुनाव हार गए.
सुमित्रा सिंह ने 12 बार लड़ा चुनाव
राजस्थान में सुमित्रा सिंह का नाम भी बड़े नेताओं की लिस्ट में शामिल है. वह 12 बार विधायक का चुनाव लड़ चुकी हैं. 1957 से लेकर 1980 तक सुमित्रा सिंह कांग्रेस के टिकट पर विधायक बनीं, तो 1985 का चुनाव सुमित्रा ने लोक दल के टिकट पर लड़ा. इसके बाद 1990 में जनता दल में शामिल हुईं. चुनाव लड़ा और एक बार फिर से सुमित्रा सिंह ने कांग्रेस का दामन थामा और 1993 में चुनाव लड़ा. 2003 में सुमित्रा सिंह भाजपा में शामिल हुईं और भाजपा के टिकट पर चुनाव लड़ा. बाद में उनको विधानसभा अध्यक्ष बनाया गया.
कभी बीजेपी के युवा मोर्चा के अध्यक्ष थे खाचरियावास
कांग्रेस सरकार में मंत्री प्रताप सिंह खाचरियावास ने अपने करियर की शुरुआत छात्र राजनीति से की. 1992 के छात्र संघ अध्यक्ष के तौर पर उन्होंने अपने राजनीतिक कैरियर की शुरुआत की. प्रताप सिंह खाचरियावास बीजेपी के युवा मोर्चा के अध्यक्ष रहे, लेकिन बाद में कांग्रेस में शामिल हो गए. 2008 में पहली बार उन्होंने विधानसभा चुनाव लड़ा और विधायक बने. 2013 में हार के बाद 2018 में फिर से चुनाव लड़कर राजस्थान विधानसभा में पहुंचे और मंत्री बने.
हनुमान बेनीवाल का राजनीतिक सफर
प्रदेश के बड़े नेताओं में शामिल हनुमान बेनीवाल हमेशा अपने बयानों के चलते चर्चा में रहते हैं. 2003 में उन्होंने अपना पहला चुनाव भाजपा के खिलाफ लड़ा. लेकिन वह चुनाव हार गए. इसके बाद उन्होंने भाजपा का दामन थामा. वसुंधरा राजे सरकार में मंत्री रहे यूनुस खान से विवाद के बाद उन्हें भाजपा से निष्कासित कर दिया गया. इसके बाद हनुमान बेनीवाल ने अपनी खुद की राष्ट्रीय लोकतांत्रिक पार्टी बना ली. आरएलपी से उन्हेोंने 2018 में पहली बार चुनाव लड़ा और राजस्थान में तीन सीटें जीतीं.
सुभाष महरिया ने भी बदलीं पार्टियां
हाल ही में भाजपा में शामिल हुए सुभाष महरिया ने पहला चुनाव 1998 में लोकसभा का लड़ा और चुनाव जीत गए. उसके बाद 1999 में उन्होंने दोबारा सांसद का चुनाव लड़ा. इस दौरान वो मंत्री रहे. 2004 में महरिया ने तीसरा चुनाव लड़ा और फिर जीत गए. साल 2010 में बीजेपी की राष्ट्रीय कार्यकारिणी के सदस्य बने, फिर 2013 में बीजेपी के टिकट पर विधानसभा चुनाव लड़ा. फिर 2016 में महरिया ने कांग्रेस जॉइन कर ली. 2019 में कांग्रेस के टिकट पर लोकसभा का चुनाव लड़ा. इस दौरान उनको हार का सामना करना पड़ा.
कांग्रेस-बीजेपी दोनों ही पार्टियों से टिकट की उम्मीद
इसके अलावा तिजारा से विधायक संदीप यादव को वसुंधरा सरकार में युवा बोर्ड का सदस्य बनाया गया. भाजपा में रहने के बाद उन्होंने 2018 में बसपा के टिकट पर तिजारा से चुनाव लड़ा और विधायक बने. चुनाव जीतने के बाद कांग्रेस सरकार को अपना समर्थन दिया. अब फिर से टिकट मांग रहे हैं. संदीप यादव बीजेपी और कांग्रेस दोनों ही पार्टियों से टिकट मांग रहे हैं. देवली उनियारा से कांग्रेस विधायक हरीश मीणा पहले बीजेपी में थे, बाद में कांग्रेस में शामिल हो गए. इसके अलावा भाजपा प्रतिपक्ष नेता राजेंद्र राठौड़ पहले जनता दल में थे, अब वो बीजेपी में है. इसी तरह राजकुमार शर्मा, रामकेश मीणा, बंशीधर, नवल किशोर शर्मा, नंदकिशोर महरिया, रोहिताश शर्मा, जसवंत यादव सहित कई ऐसे नेता हैं. जो लगातार भाजपा कांग्रेस या अन्य पार्टियों में आते-जाते रहे हैं.