
बीकानेर,प्रधानमंत्री जी। आप अच्छा काम कर रहे हैं, परन्तु प्रेस की निष्पक्षता और स्वतंत्रता राजनीतिक दवाब, कोर्पोरेट के हस्तक्षेप, अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता और असुरक्षा के भंवर में उलझ गई है। कोर्पोरेट ने मीडिया पर स्वामित्व कर लिया है। समाचार चैनल और डिजिटल मीडिया नियंत्रित है। इससे पत्रकारिता की निष्पक्षता और स्वतंत्रता बाधित हो रही है। इससे आप समझ लो कि लोकतांत्रिक जनादेश अधूरा है। सत्ता को जवाबदेह ठहराने की क्षमता बाधित हो रही है। निःसंदेह आपकी राष्ट्रनिष्ठा और नीतियों की देश में और यहां तक विदेशों में भी प्रशंसा हो रही है। भारतीय प्रेस में भी विदेशी ताकतों के हाथों खेलने, वामपंथी विचारधारा के कोकस के गिरफ्त में रहने जैसे खतरों को आपकी सरकार ने खत्म कर दिया है। फिर भी केन्द्र में आपकी सरकार आने के बाद मीडिया की नई परिभाषाएं गढ़ी जा रही है जिसमें गोदी मीडिया, मोदी मीडिया, सत्ता का पिछलग्गू मीडिया। यानि मीडिया का नैतिकता का पतन माना जा रहा है।
प्रधानमंत्री जी आपको निष्पक्ष और स्वतंत्र मीडिया को समर्थन देना चाहिए। भारत जैसे विविधता पूर्ण विशाल लोकतांत्रिक देश की खूब सूरती निष्पक्ष, स्वतंत्र और निडर मीडिया को समर्थन देना भी है। जरूरी नहीं है भविष्य में सारे प्रधानमंत्री मोदी जैसे ही हो। तब निष्पक्ष और स्वतंत्र मीडिया कहां से आएगा। यह बात सही है कि सत्ता के इर्द गिर्द के कोर्पोरेट का मीडिया में हस्तक्षेप बढ़ता ही जा रहा है।
प्रधानमंत्री जी। आपकी सरकार के कामों से देश प्रगति की ओर बढ़ रहा है। विश्व में भारत शक्तिशाली होकर उभर रहा है। आपने देश की जनता का विश्वास जीता है। आपको लेकर जो भी कवरेज है वो तथ्यों पर आधारित और परिणाम से प्रमाणित है फिर भी चैनल और डिजिटल मीडिया पर कवरेज प्रेस की निष्पक्षता पर सवाल क्यों बन रहा? क्योंकि मीडिया कोर्पोरेट के हाथों में है। लोकतांत्रिक व्यवस्था में सत्ता और पूंजी के इतर मीडिया को कोई समर्थन ही नहीं है। यह किसी भी लोकतांत्रिक सरकार की नैतिक जिम्मेदारी है कि ऐसी नीतियां बने जिससे निष्पक्ष, स्वतंत्र और निर्भय पत्रकारिता को संबल मिले।
विश्व प्रेस स्वतंत्रता दिवस 23 मई को रिपोर्टर्स विदाउट बार्डर्स ( rwb ) की भारतीय मीडिया की स्वतंत्रता की रैकिंग चिन्ताजनक और लोकतंत्र के लिए खतरे की घंटी है। 180 देशों की सूची में भारत प्रेस की स्वतंत्रता के रैंक में 150 स्थान पर है। आप सोचिए वास्तव में धरातल पर क्या हालात है। सत्ता में बैठे लोगों में स़त्ता का नजिरया होता है उसमें बहुत सारी चीजों का धरातल दिखाई नहीं देता। मीडिया को सत्ता और पूंजीपितयों के हाथों का खिलौना मत बनने दीजिए। मिडिया का भारतीय लोकतंत्र में इतिहास देखकर भी इसके मह्त्व को समझ लीजिए। आप विचार कीजिए की मीडिया का क्या हाल हो गया है। टीआरपी और व्यूज की स्पर्धा ने जनहित, प्राथमिक मुद्दे, सत्ता की जवाबदेही, न्याय और निष्पक्षता जैसी बातें हाशिए पर जाने लगी है। गौर करें। प्रेस भी लोकतंत्र का चौथा स्तम्भ माना गया है। धराशायी नहीं होने दें।
बेशक मोदी राष्ट्र को प्रति समर्पित प्रधानमंत्री है। वे देश का देश के 140 करोड़ों नागरिकों के हितों की सोचते है। मोदी की कार्य प्रणाली और नीतियों की देश और विदेशों में भी प्रशंसा हो रही है। यह बात सही है कि वे सच्चे अर्थों में देश की सेवा कर रहे हैं। निष्पक्ष और स्वतंत्र मिडिया भी राष्ट्र सेवा का ही हिस्सा है।