बीकानेर, रांगड़ी चौक के सुगनजी महाराज के उपासरे में गुरुवार को साध्वीश्री मृगावती,सुरप्रिया व नित्योदया के सान्निध्य में पर्वाधिराज पर्युषण के दूसरे दिन जैन धर्म का प्रमुख धर्मग्रंथ ’’कल्पसूत्र’’ सी.ए.राजेन्द्र लूणियां व श्रीकृष्ण लूणियां को प्रदान किया गया। गाजे बाजे से गंगाशहर मार्ग की लूणियां कोठी में प्रतिष्ठित किया गया, जहां भक्ति संगीत के साथ धर्मग्रंथ की पूजा की गई। शुक्रवार को गाजे बाजे से पुनः ’’कल्पसूत्र’’ लाकर साध्वीवृंद को प्रदान किया जाएगा। साध्वीवृंद इस ग्रंथ का वाचन विवेचन करेंगी।
साध्वीश्री मृगावतीश्री व नित्योदयाश्री ने गुरुवार को सुगनजी महाराज के उपासरे में अष्टानिका प्रवचन में ंकहा कि राग-द्वेष, अहंकार को छोड़कर जिनालयों में परमात्मा की भक्ति करनी चाहिए। पूजा करते वक्त परमात्मा के प्रति समर्पण भाव रखें। धर्म ग्रंथों में त्रिकाल (सुबह-दोपहर व शाम) पूजा का विधान बताया गया है। त्रिकाल में एकाग्रता, प्रसन्नता, व समर्पण भाव से विवेक के साथ जैना की पालना करते हुए परमात्मा की पूजा और परमात्म भक्ति करने से निजत्व की प्राप्ति व आत्मबोध व आत्मिक सुख की प्राप्त होता है। उन्होंने भगवान श्रीराम के भक्त हनुमानजी की भक्ति व समर्पण का उदाहरण देते हुए कहा कि श्रद्धा और उत्तमोत्तम भाव से कि गई भक्ति से पत्थर तैर जाते हैं। श्रद्धा व समर्पण बिना भक्ति पूर्ण रूप् से सफल नहीं होती।
साध्वीजी ने कहा कि मंदिर में मौन पूर्वक जाना चाहिए तथा सांसारिक प्रपंचों से दूर रहते हुए परमात्मा का ध्यान करना चाहिए। उन्होंने बताया कि पूजा दो प्रकार की होती है द्रव्य व भाव पूजा । द्रव्य पूजा में अंग पूजा, अग्र पूजा । अंग पूजा में परमात्मा की मूर्ति पर स्पर्श करने, उनका श्रृंगार करने से दरिद्रता व विध्न दूर होते है। अग्र पूजा में उतम वस्तु यानि फल, फूल व नैवेद्य आदि अर्पण किया जाता है। भाव पूजा में उत्तमोतम भाव से परमात्मा की तत्लीनता व भक्ति की जाती है। भक्ति के समय ’’मैं और मेरे परमात्मा’’ के सिवाए दूसरा कोई नहीं रहने के भाव रहने चाहिए। वर्तमान में लोग भक्ति में तन व धन को तो समर्पित करते है लेकिन मन का समर्पण नहीं करते। मन के समर्पण बिना परमात्मा के प्रति निष्काम प्रेम व भक्ति जागृत नहीं होती ।