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बीकानेर,जयपुर। राजस्थान माध्यमिक शिक्षा बोर्ड द्वारा 2027 से वर्ष में दो बार बोर्ड परीक्षा आयोजित करने की खबर पर संयुक्त अभिभावक संघ ने कड़ी आपत्ति जताते हुए इसे शिक्षा व्यवस्था की मूल समस्याओं से ध्यान हटाने का एक असफल प्रयास बताया है। संघ का कहना है कि राजस्थान की शिक्षा व्यवस्था वर्तमान में बच्चों की सुरक्षा, निजता, शिक्षकों के व्यवहार, स्कूलों की मनमानी और शिक्षा की गुणवत्ता—सब मोर्चों पर विफल साबित हो रही है, लेकिन सरकार नई-नई परीक्षाओं और प्रयोगों की घोषणाएँ कर केवल “खानापूर्ति” में लगी हुई है।

*राजस्थान सरकार और शिक्षा विभाग पर संघ के गंभीर आरोप*

संयुक्त अभिभावक संघ ने कहा— “राजस्थान सरकार बच्चों को सुरक्षित वातावरण, गुणवत्तापूर्ण शिक्षा और जवाबदेह स्कूल देने में पूरी तरह विफल रही है।” स्कूलों में बच्चों की सुरक्षा पर कोई नियंत्रण नहीं। पिछले पाँच वर्षों में 520 से अधिक बाल सुरक्षा उल्लंघन मामले इस बात की गवाह है कि प्रदेश में शिक्षा व्यवस्था पूरी तरह से लचर चल रही किंतु सरकार अपनी व्यवस्थाओं पर ही ध्यान आकर्षित करना नहीं चाहती है इसलिए मुद्दों को भटकाने की साजिश हर स्तर पर रची जा रही है। आरटीआई के 44,000 से अधिक बच्चे आज भी स्कूलों में नियमित शिक्षा से वंचित। शिक्षकों के व्यवहार पर लगातार शिकायतें, पर विभाग के पास न निगरानी प्रणाली, न प्रशिक्षण का ढांचा। निजी स्कूलों की मनमानी, फीस वसूली, परिवहन सुरक्षा घोटाले—सब कुछ जारी है, पर विभाग मौन है।

*प्रदेश महामंत्री संजय गोयल का आरोप* — “शिक्षा मंत्री हर रोज़ नए-नए प्रयोगों की घोषणा कर रहे हैं जबकि जमीनी हकीकत बदतर है” “जब राज्य के स्कूलों में शिक्षक ही नहीं, सुरक्षा बंदोबस्त ही नहीं, मानसिक स्वास्थ्य काउंसिलर नहीं, लैब-लाइब्रेरी नहीं—तो दो-दो बोर्ड परीक्षा लेकर आखिर क्या सुधार होगा?”

राज्य में 13,800 शिक्षकों की कमी

51% सरकारी स्कूलों में साइंस-मैथ्स विषय के नियमित शिक्षक नहीं

बच्चों की सुरक्षा के SOP का 70% स्कूल पालन नहीं कर रहे

ऐसे में “बेस्ट ऑफ टू अटेम्प्ट” का मॉडल केवल कागज़ी सुधार साबित होगा।

*प्रदेश प्रवक्ता अभिषेक जैन बिट्टू ने कहा कि* – “बच्चों की सुरक्षा, मानसिक स्वास्थ्य और शिक्षण गुणवत्ता पूरी तरह चरमरा चुकी है—लेकिन शिक्षा मंत्री रोज़ नई घोषणा कर सुर्खियाँ बटोरने में लगे हैं। यह बच्चों के भविष्य के साथ अत्यंत खतरनाक खिलवाड़ है।” “राजस्थान का शिक्षा विभाग आज केवल नोटिस जारी करने वाला विभाग बनकर रह गया है। निगरानी, नियंत्रण, जिम्मेदारी—तीनों खत्म।”

“स्कूलों में बच्चों के साथ दुर्व्यवहार, प्रिंसिपलों की मनमानी, सुरक्षा मानकों की धज्जियाँ—इन पर सरकार खामोश है, लेकिन परीक्षा के नए प्रयोगों पर भाषण देने में सबसे आगे।”

“जब बच्चों की निजता, सुरक्षा और अधिकार ही सुरक्षित नहीं, तो दो बार बोर्ड परीक्षा किसके लिए?”

“सरकार पहले यह बताए कि—
बच्चों की सुरक्षा के 99% केसों में जांच रिपोर्ट अभी तक क्यों लंबित है?”

*संघ की मांग*

1. स्कूल सुरक्षा एवं बाल अधिकार आयोग से अनिवार्य तिमाही ऑडिट क्यों नहीं हो रही है ?

2. शिक्षकों के व्यवहार और काउंसिलिंग संबंधी शिकायतों के लिए राज्यस्तरीय हेल्पलाइन क्यों जारी नहीं है ?

3. आरटीई के 44,090 बच्चों को तत्काल स्कूलों में वास्तविक प्रवेश और नियमित शिक्षा क्यों उपलब्ध नहीं करवाई जा रही है ?

4. शिक्षा मंत्री द्वारा की जा रही घोषणाओं पर तत्काल रोक लगाई जाए, जब तक बुनियादी संरचना सुधर न जाए तब तक नई घोषणाएं बैन की जाए

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