बीकानेर,पीबीएम पीडियाट्रिक हॉस्पिटल का कमरा नंबर 18 यहां इंजेक्शन लगवाने वालों की कतार लग गई है। पता चला कि ये सभी कुत्ते के काटने से पीड़ित हैं। इनमें ज्यादातर छोटे बच्चे हैं।पूछने पर नर्सिंग स्टाफ ने कहा, आमतौर पर रोजाना 8 से 10 डॉग बाइट के मामले आते हैं। इन दिनों यह संख्या 15 से अधिक हो रही है।
कुत्ते के काटने के शिकार लोगों के आंकड़े खंगाले गए तो पता चला कि दिसंबर माह में ही पीबीएम अस्पताल के पीएसएम विभाग में कुत्ते के काटने के इलाज के लिए 351 लोग पहुंच चुके हैं. जिले के शेष सरकारी अस्पतालों में इस माह के चार सप्ताह में 51 मरीजों के रिपोर्ट आने की जानकारी सामने आई है. ऐसे में अकेले एक महीने में कुत्तों के काटने के 402 मामले सामने आना हैरानी भरा है. पूरे साल यानी साल 2022 की बात करें तो पीबीएम में 3415 और जिले के अन्य सरकारी अस्पतालों में 1166 कुत्तों के काटने के मामले सामने आए. यानी पूरे साल में 4581 लोग कुत्तों के गुस्से का शिकार हो चुके हैं.इतने मामलों की वजह पूछने पर वेटरनरी यूनिवर्सिटी के सीनियर प्रोफेसर डॉ. हेमंत दाधीच ने कहा, इसके दो कारण हैं. यह फर्स्ट-स्ट्रीट डॉग में घरघराहट की अवधि है। यानी इन महीनों में मादा गर्भवती होती है और बच्चों को जन्म देती है। ऐसे में असुरक्षा की भावना आक्रामक हो जाती है। दूसरी वजह बढ़ती ठंड है। अत्यधिक ठंड हो या अत्यधिक गर्मी, दोनों ही मौसम में आवारा कुत्तों के व्यवहार में बदलाव आ जाता है। वे आक्रामक हो जाते हैं। गर्मियों में किसी ठंडे स्थान पर छाया, पानी आदि के साथ बैठकर हम मौसम के साथ तालमेल बिठा लेते हैं। जब वे सर्दियों में गर्मी के लिए घरों में प्रवेश करते हैं, तो उन्हें दूर धकेल दिया जाता है। ऐसे में राहगीरों का गुस्सा फूट पड़ता है। इसमें भी छोटे बच्चे आसानी से शिकार हो जाते हैं।