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Bikaner, मेरा अहंकार मरा नहीं है। व्यवहार में पवित्रता आई नहीं है। जानबूझ अपने स्वार्थों औऱ हितों के लिए हर किसी की उपेक्षा मेरा स्वभाव है। तौलता रहता हूँ मेरा फायदा किसमें औऱ किससे है वो ही करता हूँ। इससे किसको क्या आघात पहुंचे मुझे चिंता नहीं है। फिर भी हर साल पर्युषण महापर्व पर सांवत्सरिक क्षमा याचना की औपचारिकता करता हूँ। दिखावे के लिए अन्तःकरण से क्षमा मांगता हूं। पिछले पर्युषण पर्व के दिन जिससे मेरी नाराजगी थी। क्षमा याचना की थी। वर्ष पर्यंत उसकी आलोचना करता रहा। पूरा व्यवहार ईर्ष्या द्वेष का रहा। आज फिर पर्युषण पर्व हैं लोक दिखावे के लिए फिर मिच्छामि दुक्कड़म करूँगा पर मैं वास्तव में बदला नहीं हूं।। अजैन भी आज जैन धर्म की परंपरा के अनुसार क्षमा मांगने का दिन मनाते है पर्युषण पर्व से समाज में क्षमा याचना की चेतना आई है। जिन्होंने धर्म के इस निहितार्थ को आत्मसात किया है उनका जीवन बदल गया है। वे समाज के आदर्श बने हैं। आत्म कल्याण की तरफ बढ़े हैं। केवल मात्र औपचारिकता से जीवन नहीं बदल सकता। क्षमा अहंकार के जाने आती है। फिर भी पर्युषण महापर्व पर क्षमा याचना का भाव हमारी अहंकारी चेतना को झकझोरने का काम तो करती ही है।

मैनें मेरे अहंकार से यदि किसी को नीचा दिखाया हो तो क्षमा मांगता हूं।। मेरे क्रोध से यदि किसी को दुःख पहुचाया हो तो भी क्षमा मांगता हूँ। मेरे कारण किसी को कोई परेशानी हुई हो तो क्षमा याचना करता हूँ। मेरे व्यवहार, कार्य में सहयोग नहीं करने से, चालाकी से किसी के कार्य को विफल करने का प्रयास करने से, किसी की सेवा में,दान में बाधा पहुंचाई हो तो क्षमा चाहता हूं । मेरे हर एक कण कण से जो मैने किसी को निराश किया हो तो क्षमा चाहता हूं।मेरे शब्दों से जो किसी के हृदय को ठेस पहुचाई हो तो भी क्षमा चाहता हूं। जाने अनजाने में यदि मैं आपके कष्ट का कारण बना हूँ
तो मैं मेरा मस्तक झुकाकर, हाथ जोड़कर, सहृदयता से क्षमा मांगता हूँ। क्योंकि मैं ऐसा करता ही रहता हूँ। क्षमा प्रार्थी हूँ। खमतखमणा।

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