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बीकानेर,ग्रामीण संस्कृति और लोकाचार भले ही आधुनिक काल में प्रासंगिक नहीं माने जाते हैं लेकिन उनके मूल में छिपे वास्तविक तत्व आज सालों बाद भी जीवन से बहुत अधिक संबद्धता लिए हुए हैं। महाशिवरात्रि से प्रारम्भ हो कर होली तक चलने वाला हरदड़ा नामक प्रसिद्ध प्राचीन ग्रामीण खेल आज भी लूणकरनसर कस्बे सहित हर गांव और गली गुवाड़ में खेला जाता है। सही मायनों में वर्तमान क्रिकेट और हॉकी का समावेश है।

हर एवम दड़ा शब्दों का विवेचन करें तो “हर” का तात्पर्य प्रेम है वहीं “दड़ा” गेंद का प्रतीक है,यानी प्रेम का खेल गेंद के साथ। “गुड़ा नाख, चिबले, मार टोरो, पीदीजग्यो, ठीयो” जैसे कितने ही अपभ्रंश शब्दों के सम्बोधन फाल्गुन के महीने में हर गांव, गली, गुवाड़ में सुनाई दे रहे हैं। गांव की गुवाड़ और गलियों में परम्परागत खेल ‘हरदड़ै’ की धाक देखने को मिल रही है।

लूणकरणसर इलाके के विभिन्न गाँवों में जगह-जगह टोलियां बनाकर लोग इस खेल का आनंद आज भी उसी शिद्दत के साथ उठा रहे हैं जैसे बरसों पहले उठाते थे। बच्चों से लेकर बूढ़ों तक की उम्र के लोग उत्साह के साथ हाथ में दड़ी (कपड़े से बनी गेंद) लिए कहीं न कहीं दिखाई दे ही जाते हैं। इन दिनों गांवों की शामें और चांदनी रातें भी सही मायनों में गुलज़ार है। संस्कृति और संस्कारों की साख भरता यह ग्रामीण खेल अडबळी, खटकण, हिंगदड़ा नामों से भी जाना पहचाना जाता है। वस्तुतः यह पीढ़ी दर पीढ़ी चली आ रही शानदार विरासत है।

इस खेल में दो टीमें बनाकर बराबर संख्या में खिलाड़ी शामिल होते हैं। जमीन के समानांतर दो ठीयों (ईंट या भाटा) पर लम्बा बांस रखकर काफी दूर से कपड़े की गेंद से निशाना लगा कर उसे नीचे गिराने का प्रयास किया जाता है। जो टीम सभी खिलाड़ियों को निर्धारित समय में पहले आउट कर देती है, वही विजेता बनती है। विजेता टीम पराजित टीम को आगे खुले मैदान में फील्डिंग के लिए मजबूर कर देती है आगे और विजेता दल के खिलाड़ी डंडे से गेंद के शॉट जिन्हें अमाड़ै अथवा टोरे भी कहते है ,लगाते हैं।

वास्तव में देखा जाए तो यह खेल मौज-मस्ती, भाईचारे और आपसी मेल-मिलाप का बेहद शालीन प्रतीक है। लगभग ‘पन्द्रह दिन तक चलने वाले इस खेल का आरम्भ महाशिवरात्रि को होता है और होलिका दहन के साथ ही कपड़े की उस गेंद का भी दहन कर दिया जाता है। राजस्थानी सभ्यता और संस्कृति को प्रस्तुत करता यह परंपरागत खेल व्यायाम,शारीरिक शौष्ठव,टीम भावना, निशानेबाजी, ताकत आदि का सम्बलन करता है। सबको जोड़कर रखने वाला सुव्यवस्थित खेल है जो आज भी बदस्तूर गांवों में खेला जाता है।

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