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बीकानेर,विश्व प्रकृति संरक्षण दिवस के अवसर पर वर्तमान बढ़ते प्रदूषण एवं प्रकृति के विभिन्न अंगों को हो रही क्षति को रोकने के प्रयासों को बढ़ावा देने की आवश्यकता को ध्यान रखते हुए सोमवार को मल्टी स्किल डेवलपमेंट एसोसिएशन द्वारा “विश्व प्रकृति संरक्षण दिवस” विषयक ऑनलाइन काव्य गोष्ठी का आयोजन किया गया । काव्य गोष्ठी का संयोजन एसोसिएशन के सी ई ओ और पूर्व प्रिंसिपल प्रोफेसर डॉ नरसिंह बिनानी ने किया । उन्होंने बताया कि इस काव्य गोष्ठी में अनेक वरिष्ठ व नवोदित रचनाकारों ने अपनी उत्कृष्ट रचनाएं प्रस्तुत की ।
इस काव्य गोष्ठी के प्रारंभ में वरिष्ठ कवि व साहित्यकार मोहन लाल जांगिड़ ने प्रकृति को मानव की जननी बताते हुए उसके संरक्षण की महत्ता उजागर की । इस तथ्य को काव्यमय शब्दों में बांधते हुए उन्होने अपनी रचना -प्रकृति जननी प्रथम सदा,रखिए माँ सा मान- की शानदार प्रस्तुति दी । गोष्ठी का संयोजन करते हुए प्रोफेसर डॉ नरसिंह बिनानी ने अपने कुछ हाइकु – संरक्षित हो, प्राकृतिक साधन, मानव द्वारा – जैसे प्रस्तुत किए ।
वरिष्ठ कवि व साहित्यकार जुगल किशोर पुरोहित ने धरती को माता माना और उसके संरक्षण को प्राथमिकता देते हुए अपनी रचना -“हरी-भरी हो धरती माता, जन-जन का है इससे नाता” प्रस्तुत की । काव्य गोष्ठी में युवा कवयित्री सरिता तिवाड़ी पारीक ने प्रकृति संरक्षण के लिए वृक्षारोपण के महत्व को उजागर करते हुए अपनी रचना – ऐसा संकल्प हमें लेना है,जाकर हर गली हर घर, वृक्षारोपण का संदेश देना है- शानदार शब्दों में प्रस्तुत की । इसी क्रम में वरिष्ठ कवि व साहित्यकार डा. कृष्णलाल बिश्नोई ने अपनी विशिष्ट रचना- अनमोल तोहफा है प्रकृति का,हरियाली का जीवन में आना- प्रस्तुत कर मानवीय जीवन में हरियाली के महत्व को स्पष्ट किया ।
गोष्ठी में हिस्सा लेते हुए कवि-कथाकार उमाशंकर बागड़ी ने अपनी रचना में ये शब्द – एक बोतल पानी से, मैं गाड़ी को बहुत अच्छे ढंग से साफ कर लेता हूं – जोड़कर मनुष्य जीवन में पानी के उपयोग की मितव्ययता रखने की बात कही । इसी प्रकार काव्य गोष्ठी में पीबीएम हॉस्पिटल के पूर्व नर्सिंग अधीक्षक व वरिष्ठ कवि डॉ. जगदीश दान बारहठ ने पृथ्वी पर हो रहे पर्यावरण प्रदूषण की तुलना अमावस्या की अंधी रात से की । उनकी रचना के ये शब्द – धरती को ज्वालामुखी की भांति उगलते देखा – प्रकृति संरक्षण दिवस के महत्व की वर्तमान समय में सार्थकता सिद्ध करते हैं । काव्य गोष्ठी के संयोजक पूर्व प्रिंसिपल, चिंतक व लेखक प्रोफेसर डॉ नरसिंह बिनानी थे । अंत में वरिष्ठ कवि व साहित्यकार जुगल किशोर पुरोहित ने सभी की रचनाओं को शानदार और सराहनीय बताते हुए धन्यवाद ज्ञापित किया ।

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