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बीकानेर,सपूर्ण भारत कार्तिक माह की पूर्णिमा को सिख धर्म के जन्म दिवस को ‘प्रकाश पर्व के रूप में उत्साह व श्रद्धा के साथ मनाता है। गुरु नानक देव 15वीं सदी के उन भारतीय महापुरुषों व समाज सुधारकों में गिने जाते हैं, जिनका प्रभाव संपूर्ण विश्व पर रहा है। उनके द्वारा दी गई शिक्षा व किए गए समाज सुधार के कार्य आज भी अपनी महत्वता रखते हैं। वे बचपन से ही बहुत धार्मिक व रूहानी प्रवृत्ति के इंसान थे। पारिवारिक मोह माया में लगाव नहीं था। विभिन्न सामाजिक समस्याओं, कुरीतियों के प्रति चिंतित रहना व मानवता की सेवा दिनचर्या के भाग थे।

उन्हें विभिन्न भाषाओं का ज्ञान था। उनका यह अटूट विश्वास भी था कि भगवान का एक ही रूप है, पर उसे अलग-अलग नामों से माना व पूजा जाता है । 15वीं सदी के भारतीय समाज में गुरु नानक की स्वीकार्यता तत्कालीन संपूर्ण समाज व सभी प्रचलित धर्मों में रही। उन्होंने अपने द्वारा रचित वाणी व भजनों के माध्यम से समाज की विभिन्न समस्याओं पर प्रहार किया। इनमें सांप्रदायिकता, जातिवाद, आर्थिक संपन्नता के हिसाब से ऊंच-नीच, मूर्ति पूजा, ईश्वर के नाम पर प्रचलित

विभिन्न तरह के आडंबर आदि। गुरु नानक ने अपने जीवन में विभिन्न 1499 से 1524 तक के 25 वर्षों में तकरीबन 28000 किलोमीटर की यात्राएं की। इन यात्राओं में पूर्वी भारत, दक्षिण भारत, श्रीलंका, अफगानिस्तान, तिब्बत, चीन व अरब देशों के क्षेत्र मुख्य हैं। उन्होंने अपनी यात्राओं के माध्यम से हिंदू और मुसलमान के मध्य किसी भी तरह के भेद को खत्म करने पर जोर दिया।

सिख धर्म को गुरु नानक देव ने तीन मुख्य सिद्धांतों पर कार्य करने को कहा है। जिनमें एक ईश्वर पर विश्वास रखना, ईमानदारी से रोजगार कमाना व अपनी आय का निश्चित भाग को परोपकारी सेवाओं व गरीबों के हित में लगाना। गुरु नानक देव का विवाह सुलखनी देवी के साथ हुआ था। उनके दो पुत्र भी थे। अपने जीवन के अंतिम वर्षों में गुरु नानक देव करतारपुर साहिब में रहे थे।

डॉ.पीएस वोहरा
शिक्षाविद

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