गुरुदेव तुलसी और आचार्य महाप्रज्ञ जी के युगीन चिंतन ने जन-जन को प्रभावित किया, जैन-अजैन सभी श्रद्धालु बनें। यह सब आचार्य श्री महाश्रमण जी अपनें दोनों गुरुओं की छत्र छाया में रहकर देखते ही नहीं रहे बल्कि इसको और व्यापक कैसे बनाया जा सकता है उस पर गहराई से चिंतन मंथन करते रहते थे।आचार्य श्री तुलसी और आचार्य श्री महाप्रज्ञ जी ने अपने महाश्रमण को इस प्रकार तैयार किया कि आचार्य श्री महाश्रमण जी ने दस आचार्यों द्वारा किये गये सुश्रम और कार्यों की सुरक्षा करते हुए कई और नये आयाम चलाकर संघ की गरिमा महिमा को जो शिखर चढ़ाया है। वह आज सबके सामने है।
वर्तमान युग में गुरुदेव की चर्या को देखकर लगता है कि इस पाँचवें आरे में चौथे आरे सी साधना केवल आगमों में ही नहीं है उसे साकार रूप में देखा जा सकता है। इस यान वाहन के युग में पैदल चलना और इतना श्रम करना कोई साधारण व्यक्ति के वश की बात नहीं है। घरों में दस व्यक्तियों को एक साथ रखना मुश्किल प्रतीत हो रहा है और गुरूदेव के साथ निरंतर सैंकड़ों साधु-साध्वी ही नहीं हजारों श्रावक-श्राविकाएँ देखे जा सकते हैं।यह सब गुरूदेव की प्रबल पुण्याई का साक्षात नमूना है। गुरूदेव के दीक्षा कल्याण वर्ष के उपलक्ष्य में देश विदेश में एक अच्छा आध्यात्मिक वातावरण बना है। पूरे वर्ष धर्म संघ में तपस्या साधना का विशेष रंग खिला नज़र आ रहा है। दीक्षा स्वर्ण जयंती पर हम यह मंगल कामना करते हैं कि युगों-युगों तक हमें आपका मार्गदर्शन मिलता रहे जिससे हम भी अपने समय शक्ति और पुरुषार्थ के द्वारा स्व-पर कल्याणकारी बन सके।