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बीकानेर,भारतीय मजदूर संघ की स्थापना शून्य से सृष्टि रचना का संकल्प था। इसकी स्थापना का उद्देश्य था मजदूर क्षेत्र में एक ऐसे श्रमिक संगठन का गठन करना जो ‘मजदूरों का, मजदूरों द्वारा मजदूरों के लिए’ सिद्धान्त पर राष्ट्रहित, उद्योगहित व मजदूरहित के लिए कार्य करे। हर प्रकार के बाहरी प्रभाव जैसे नियोजकों का प्रभाव, सरकार और राजनीतिक दलों का प्रभाव, व्यक्तिगत नेतागिरी व विदेशी विचारधारा के प्रभाव से मुक्त होकर राष्ट्रहित के अन्तर्गत स्वतन्त्र स्वायत्तरूप से संगठनात्मक तथा आन्दोलनात्मक गतिविधियों का संचालन करे। भारतीय संस्कृति एवं परम्पराओं तथा भारतीय अर्थ चिंतन भारतीय अर्थव्यवस्थाओं का आधार लेकर चले। भारतीय मजदूर संघ’ वर्ग संघर्ष’ जैसे साम्यवादी विचार को नहीं मानता। उसका मानना है कि सभी भारत माता के सपूत और सन्तानें हैं। वर्ग संघर्ष नहीं, अपितु अन्याय, शोषण, आर्थिक व सामाजिक विषमता के विरुद्ध संघर्ष ही इसे मान्य है । यह संघर्षवादी अथवा समन्वयवादी न होकर संघर्षक्षम व समन्वयक्षम है। जहां संघर्ष की आवश्यकता होगी। वहां संघर्ष और जहां समन्वय की आवश्यकता होगी वहां समन्वय करेगा। नियोजक और सरकार यदि विरोध करे तो यह भी विरोध करेगा और अगर वे सहयोग करें तो यह भी सहयोग करेगा। भारतीय मजदूर संघ ने इसे ‘प्रत्युत्तरीय सहयोग’ ( रिस्पान्सिव कोआपरेशन) का नाम दिया और नियोजकों व सरकार को इसे अपनाने का आवाहन किया। ‘राष्ट्र का औद्योगिकीकरण, उद्योगों का श्रमिकीकरण तथा श्रमिकों का राष्ट्रीयकरण’ – इन तीन सूत्रों में भारतीय मजदूर संघ ने अपने उद्देश्य को स्पष्ट किया है। ‘धन की पूँजी, श्रम का मान – कीमत दोनों एक समान’, ‘देश के हित में करेंगे काम, काम के लेंगे पूरे दाम’, ‘बी.एम.एस. की क्या पहचान – त्याग, तपस्या और बलिदान’ तथा कम्युनिस्टों के ‘दुनिया के मजदूरों एक हो जाओ’ के स्थान पर भारतीय मजदूर संघ ने नारा दिया – ‘मजदूरों दुनिया को एक करो’ तथा कम्युनिस्टों के ‘इन्कलाब’ और ‘ लाल सलाम’ के स्थान पर भारतीय मजदूर संघ ने ‘भारत माता की जय’ तथा ‘वन्देमातरम्’ के उद्घोष दिए जिनसे मजदूर क्षेत्र पूर्णतया अपरिचित था। भारतीय मजदूर संघ ने लाल के स्थान पर भगवा ध्वज को अपना स्फूर्ति केन्द्र माना और हंसिया हथौड़े के स्थान पर मानवीय अँगूठे व उद्योग चक्र को अपना प्रतीक चिन्ह बनाया। साम्यवादियों के ‘मई दिवस’ के स्थान पर ‘विश्वकर्मा जयन्ती’ (17 सितम्बर) को श्रमिकों का राष्ट्रीय श्रम दिवस घोषित किया गया। इस प्रकार धीरे – धीरे आगे बढ़ते हुए भारतीय मजदूर संघ ने साम्यवादियों के लाल किले पर लाल निशान के मन्सबों को धराशायी कर दिया। जब 1955 में श्री दत्तोपंत ठेंगड़ी द्वारा भोपाल मध्यप्रदेश में भारतीय मजदूर संघ की स्थापना की गई तब विश्व तथा भारत में भी साम्यवाद अपने चरम पर था। दूसरी ओर भारतीय मजदूर संघ का निर्माण शून्य से हुआ, तब भारतीय मजदूर संघ के पास न कोई यूनियन, न कोष, न कार्यालय और न ही कोई कार्यकर्ता था और विरोधी संगठनों, सरकार, नियोजकों व सत्ता प्रतिष्ठानों द्वारा इस नवोदित संगठन को प्रारंभ में ही कुचल देने की बहुत सारी कुचेष्टायें भी की थी। इन सब के बावजूद चोंतीस वर्ष की सफल सतत संगठन यात्रा के पश्चात् भारतीय मजदूर संघ देश में कार्यरत सभी विरोधी संगठनों को पछाड़ते हुए सन 1989 में प्रथम स्थान पर सबसे बड़ा केन्द्रीय श्रमिक संगठन बन गया जो श्रमऋषि माननीय दत्तोपंत ठेंगड़ी जी के कुशल, कर्मठ और चमत्कारिक नेतृत्त्व का ही परिणाम था। स्थापना के समय जिसकी सदस्यता शून्य थी जो आज 68 वर्ष बाद सन 2023 में तीन करोड़ से अधिक सदस्यता के साथ यह संगठन भारत ही नहीं अपितु चीन जैसे देश के सरकारी श्रमिक संगठन को छोड़कर विश्व का सबसे बड़ा स्वायत्त स्वतन्त्र श्रमिक संघ है।

भारतीय मजदूर संघ से संबंद्ध राजस्थान राज्य खान एवं खनिज कर्मचारी संघ राजस्थान सर्कल के कार्यकारी प्रदेशाध्यक्ष सह भारतीय खनिज धातु मजदूर महासंघ के राष्ट्रीय कार्यसमिति सदस्य देवेन्द्र सारस्वत ने बताया कि 23 जुलाई 1955 को प्रसिद्ध श्रमिक नेता स्वर्गीय दत्तोपंत ठेंगड़ी के नेतृत्व में भारतीय मजदूर संघ की स्थापना मध्‍य प्रदेश के भोपाल में की गई थी। उस समय देश में चार प्रमुख केंद्रीय श्रमिक संगठन एटक, इंटक एचएमएस, और यूटीयूसी का श्रमिक बहुल क्षेत्र में दबदबा था। कोयला, इस्पात, बैंक, बीमा, रेल आदि सरकारी उपक्रम के क्षेत्रों में इन्हीं की तूती बोलती थी। ऐसे में भारतीय मजदूर संघ ने बिना किसी प्रवाह के क्षेत्र में अपनी उपस्थिति दर्ज कराई। श्री सारस्वत ने आगे कहा कि वर्ष 1989 का दौर भारतीय मजदूर संघ के लिए अविस्मरणीय रहा। वर्ष 1955 से 1989 तक 34 वर्षों में ही सभी केंद्रीय श्रम संगठनों को पीछे छोड़ते हुए अपने काम के बल पर पहली बार भारतीय मजदूर संघ देश का नंबर एक श्रमिक संगठन बन गया। गौरतलब है कि किसी राजनीतिक पार्टी से जुड़े नहीं रहने के बावजूद हमेशा स्वदेशी विचारधारा को अपनाया। साथ ही राष्ट्र, उद्योग और मजदूर हित को सर्वोपरि मानकर जो अपना सफर शुरू किया तो फिर पीछे मुड़कर नहीं देखा। आज यह संगठन शून्य से शिखर तक पहुंच चुका है। अपने देश में श्रमिक संगठनों का इतिहास सैकड़ों वर्ष पुराना है। एटक देश का सबसे पुराना श्रमिक संगठन है। 31 अक्टूबर 1920 को इसका गठन हुआ। इसके बाद 3 मई 1947 को इंटक, 29 दिसंबर 1948 को एचएमएस तथा 30 अप्रैल 1949 को यूटीयूसी का गठन हुआ। कहा कि इन तमाम स्‍थापित केंद्रीय श्रमिक संगठनों के कई वर्षों बाद प्रभाव में आए भारतीय मजदूर संघ ने अपनी स्पष्ट नीति के कारण ही लोगों के बीच जगह बनाई। श्री सारस्वत ने बताया कि केंद्रीय श्रम संगठनों के दोबारा सदस्यता सत्यापन में सन 2007 में तथा 2017 में तीसरी बार सदस्यता सत्यापन में भी भारतीय मजदूर संघ को ही प्रथम स्थान मिला। उल्लेखनीय है कि जी-20 देशों के श्रम संगठन प्रतिनिधियों लेबर-20 से बातचीत के उपरांत अंतरराष्ट्रीय श्रम संगठन आइएलओ द्वारा जारी की गई एक रिपोर्ट में बताया गया है कि वैश्विक श्रम आन्दोलन को गति देने का काम भारतीय मजदूर संघ कर रहा है। अन्य श्रमिक संगठनों से जहां संबद्धता दहाई से नीचे है वहीं भारतीय मजदूर संघ से प्रतिवर्ष 150 से 160 श्रमिक संघ संबद्धता प्राप्त कर रहे है।

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