
बीकानेर,देवी सिंह भाटी सरकार के समक्ष जनहित के मुद्दों को लेकर विधानसभा पर धरने की घोषणा से वे फिर राजस्थान की राजनीति में चर्चा में रहे। सत्ता में रहने वाली पार्टी के नेता अपनी सरकार को चुनौति देकर इस तरह से कोई जनहित के मुद्दे उठाते नहीं है। यहां जनसमस्या या जनता का कोई मुद्दा बाद में पार्टी और अपनी पार्टी की सरकार पहले होती है। इसके उलट अपनी ही पार्टी की सरकार के समक्ष विधानसभा के सामने धरना देने की चुनौती देकर भाटी जनता की आवाज बनने में सफल रहे। यह कोई पार्टी विरोधी आवाज या सरकार की खिलाफत नहीं, बल्कि जनता की आवाज बुलंद करने का उपक्रम रहा। किसानों की आवाज सिंचाई का पानी देने, बार दाना उपलब्ध करवाने, मूंगफली की खरीद और खाद बीज की उपलब्धता के मुद्दे पर सरकार को आगाह किया। सोलर प्लांट लगाने में खेजड़ी की अवैध कटाई रोकने के मुद्दे पर भी सरकार से बात की। भाटी ने पश्चिमी राजस्थान में खेजड़ी बचाओ आंदोलन से जुड़े हजारों लोगों की भावनाओं का प्रतिनिधित्व किया। इंदिरा गांधी नहर के पानी की मांग की आवाज को भी संबल दिया। वे किसानों की आवाज बने। इन सबके साथ आईपीएस अधिकारी का बीकानेर से स्थानांतरण करवाने की मुख्यमंत्री से सहमति करवाई। आईपीएस के लंबे समय से एक ही जगह टिके रहने और उनके कार्यों की सारी फेहरिस्त सरकार के सामने रखी दी। भाटी की राजनीति में अपनी कार्यशैली है। वे मुद्दों की राजनीति करते आएं है। इसी राजनीति के चलते सीएमओ के अधिकारी ने उन्हें मुख्यमंत्री के साथ बातचीत का न्योता दिया। वाकायदा मुख्यमंत्री के साथ उनकी ओर से रखे सभी मुद्दों पर बातचीत हुई। नहर से पानी, बार दाने की आपूर्ति, खेजड़ी की कटाई रोकने के संबंध में अधिकारियों को बातचीत के दौरान ही निर्देशित किया गया। खजेडी की कटाई के ज्वलंत और चर्चित मुद्दे पर प्रमुख शासन सचिव शिखर अग्रवाल को निर्देशित किया कि खेजडी की कटाई रुकनी चाहिए। भले ही सरकार और पार्टी के लोग भाटी के इस कदम के कुछ भी मायने निकाले। देवी सिंह भाटी अपने प्रयास में सफल रहे। नई पीढ़ी के नेता तो अपने आकाओं की परिक्रमा करना ही राजनीति करना समझते हैं। जनहित के मुद्दों को उठाने की उनमें क़ुबत ही नहीं है। वे जनता का हित साधना सीखे तभी जनप्रिय नेता बन पाएंगे।