बीकानेर,पश्चिमी राजस्थान में क्या आने वाले दशकों में खेजडी, फोग, खींप, बोरटी,बावलिया,सेवण, भूरट, धामण, और अनके तरह की रेगिस्तान वनस्पति, चिडियां, कौवे, कागडोड, चिल, अन्य प्रजाति के पक्षी, कीट पतंगे, सुक्ष्म जीव और रेगिस्तानी वन्य जीव हिरण, लोमडी, खरगोश, आदि कम या नष्ट हो जाएंगे। सोलर हब बनने से विकास के ये पारिस्थितिकीय दुष्प्रभाव कमोबेश आने सुनिश्चित है। सोलर प्रोजेक्ट तो समय की मांग और जरूरत है। प्रोजेक्ट लगाने से नहीं रोक सकते, बल्कि इनके पारिस्थितिकीय दुष्प्रभावों को कम किया जाना संभव है। जिन गांवों के पास सोलर प्रोजेक्ट लगे हैं। वहां ग्रामीणों के पालतू पशु गाय, भेड बकरी, ऊंट को विचरण की जगह ही नहीं बची है। पक्षियों के झुड के झुड गायब हो गए हैं। पक्षियों को घोसलें बनाने और बैठने को पेड़ ही नहीं है। वन्य जीवों के विचरण को जगह नहीं है। एक खेजड़ी के पेड़ पर जहां पक्षियों के घोंसले, पशुओं का चारा छाया और कीट पतंगों का आश्रय और भोज्य स्थल है। एक खेजड़ी का वृक्ष सैकड़ों नहीं हजारों जीव जन्तु का आश्रय व
भोजन देता है। इसका पूरा एक पारिस्थितिकी चक्र है। जो अध्ययन से ही समझा जा सकता है।
पश्चिमी राजस्थान और बीकानेर सोलर हब बन गया है और बनता ही जा रहा है। सौर ऊर्जा उत्पादन की दिशा में तेजी से काम और आगे बढ़ रहा है। कई बड़ी कंपनियां नए – नए प्रोजेक्ट लगा रही है। देश के विकास में सौर ऊर्जा से विद्युत उत्पादन महत्वपूर्ण सैक्टर है। इससे देश ऊर्जा के सैक्टर में आत्म निर्भर बनाने की दिशा में आगे बढ़ रहा है। उष्ण कटिबंध वाले इस मरूस्थलीय में सौर ऊर्जा से विद्युत उत्पादन को गलत नहीं ठहराया जा सकता। पश्चिमी राजस्थान और खासतौर से बीकानेर में सौर ऊर्जा परियोजना से मरूस्थलीय पारिस्थितिकी तंत्र पर गहरा संकट आने वाला है। योजनाकारों और सरकारों को अभी से इस पर ध्यान देने की जरूरत है। सौर ऊर्जा प्रोजेक्ट क्रियान्वयन में तय मानकों की पालना नहीं हो पा रही है। वहीं पारिस्थितिकी तंत्र के दूरगामी परिणामों को अनदेखा किया जा रहा है। इसकी सार्वाधिक मार मरूस्थलीय वनस्पति और जीव जन्तुओं पर पड़ रही है। इसे आज न तो कोई महसूस कर रहा है और न कोई समझने को तैयार है।
सौर ऊर्जा प्रोजेक्ट लगाने से पहले भूमि सुधार में वृक्षों का सफाया किया जा रहा है। बाद में भू स्तरीय और मझोली वनस्पति समाप्त होती जा रही है। सबसे ज्यादा नुकसान राज्य वृक्ष खेजड़ी को हुआ है और होता जा रहा है। कायदे से तो प्रोजेक्ट लगाने से पहले कुल प्रोजेक्ट के एरिया के 30 प्रतिशत भाग ग्रीन बैल्ट बनाना होता है। इस प्रोजेक्ट का छतरगढ़ रोड पर बीकानेर के पास ऐसा भी प्रोजेक्ट है जिसमें एक भी खेजड़ी काटी नहीं गई है, बल्कि जहां खेजड़ी है वहां जगह छोड़ दी गई है। खेजड़ी की छंगाई कर दी गई है। इससे ज्यादा धूप भी नहीं रूकती और हर साल छंगाई से चारा उत्पादन भी होता है। पर्यावरण का भी ज्यादा नुकसान नहीं होता। खेजड़ी राज्य वृक्ष है। सौर ऊर्जा प्रोजेक्ट में खेजड़ी की कटाई को रोकने के उपायों पर विचार होना चाहिए। जिन खेतों से खेजड़ी कटाई होती है उस काश्तकारों की खातेदारी निरस्त करने, खेजड़ी की अवैध कटाई करने के हर स्तर पर कार्रवाई करने, शख्त सजा का प्रावधान करने, खेजड़ी की जीओ टेगिंग करवाने इसके अलावा सौर ऊर्जा प्रोजेक्ट एरिया में ग्रीन बैल्ट में स्थानीय प्रजाति की वनस्पति का संरक्षण और संर्वधन को प्राथिमकता देने की जरूरत है। थोडे लाभ के खातिर इकोलोजी को दीर्घकाल तक भारी नुकसान नहीं हो इस बात को प्रोजेक्ट रिपोर्ट का हिस्सा बनाएं। राज्य सरकार, प्रशासन और जनप्रतिनिधियों को मरूस्थल के बडे भू भाग पर सौर ऊर्जा प्रजोक्ट लगाने से जीव जगत, प्रकृति, पर्यावरण और समग्र पारिस्थितिकी पर होने वाले प्रभावों पर सजगता से विचार करना चाहिए। अगर खेजड़ी जैसे पेड़ से रेगिस्तान विहिन हो गया तो समझ लेना बादल नहीं आएंगे। बारिश नहीं होगी तो इलाका वीरान होता जाएगा। केवल जीवनहीन सौर ऊर्जा किस काम की।