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बीकानेर,बुधवार को हमेशा की तरह गणेश मंदिर दर्शन कर मंदिर की छत पर बैठे पक्षियों को दाना डालने पहुंचा तो देखता हूं, गुमसुम सी मंदिर की छत के एक कोने में दुबकी बैठी बहन महंगाई दिखाई दी। दूर से देखने पर लग रहा था कि उसकी आंखों में आसुंओं की बूंदें टपक रही हैं। मैंने पक्षियों को दाना डाला और धीरे से उसके पास जाकर बैठ गया। समझ में नहीं आ रहा था कि उससे कैसे पूछूं कि आप इतनी उदास क्यों हैं और गजानन गणेश मंदिर के मुख्य द्वार के ऊपर बैठकर रो क्यूं रही हो?

कुछ देर नीचे मुंह कर के सुबकने के बाद बहन महंगाई ने मेरी ओर देखते हुए कहा…आप यहां क्यों आए हैं। मैंने कहा…वो आपको इस हालत में देख कर सोचा आपसे पूछूं कि आप इतनी उदास क्यों हैं?

महंगाई ने जवाब दिया “जब मेरे कारण विकासशील देश होने का दंभ भरने वाले इस देश की आधी आबादी को दो समय की रोजी-रोटी के लिए तरसना पड़ रहा है तो ऐसे में कोई उदास नहीं होगा तो क्या होगा!”

जो दाल रोटी पहले गरीबों की थाली की शान होती थी वो आज मेरे कारण गरीबों से दूर हो कर बड़े व वीवीआईपी लोगों की थाली की शोभा बनकर इतरा रही है। मुझे पता है कि इसके लिए कुछ बड़े स्तर की कालाबाजारी करने वाले लोग जिम्मेदार हैं जो माल गोदामों में दबाये बैठे हैं, लेकिन बदनाम मैं हो रही हूं।

मेरे कारण नींबू व प्याज के तो आजकल नाज नखरे ही बदल गये हैं। वो भी खुश हो रहै है कि उसका गरीबों की थाली से पीछा छूटा। आज हमें भी पैसे वालों की थाली में विराजमान होने का मौका मिला है।

बेचारे दिहाड़ी वाले मजदूर अपने दोपहर का खाना इस प्याज के टूकड़े को रोटी के ग्रास में डालकर अपनी भूख मिटाते थे। आज उन्हें रोटी पर तेल के साथ नमक-मिर्च लगाकर या सस्ते चिकनाई मुक्त भुजियों से अपनी पेटपूजा करनी पड़ रही है। और तो और गंदे पानी से तैयार होने वाली सब्जियों को भी दूकानदार अच्छे पानी की बताकर मेरा रोना रोते महंगे दामों पर बेचकर आम-आदमी को लूट रहे हैं।

मुझे तो सबसे ज्यादा अफसोस इस बात का है कि जिस गंवार फली के भाव को स्थानीय खेतों की सब्जी के कारण गरीब भी तवज्जो नहीं देता था। भाव चार से पांच रुपये किलो होते थे। ये भी मेरे नाम का बहाना लेकर आज चालीस-पचास रूपये किलो के भाव से बिक कर फूली नहीं समा रही हैं।

बेचारे गरीब आदमी के लिए फल सेब, संतरा, मौसमी और अनार पहले भी कभी सस्ते नहीं रहे। केवल उन्हें बीमारी के कारण कमजोर हुई सेहत को वापस पाने के लिए डाॅक्टर की सलाह पर ही खाने को मजबूर होना पड़ता था। आज तो ये फल गरीब तो क्या मध्यम वर्ग के परिवार के लिए भी खरीद कर खाना आसान नहीं रहा है।

आज देश की सभी पार्टियां चुनावों के दौरान अपने चुनावी एजेंडे में मुझे मुख्य मुद्दे के रूप में शामिल कर आप लोगों के सामने सभी को मेरे से मुक्त करवाने का आश्वासन देते हैं। कोई कहता है कि गेहूं, चावल दो रुपये किलो में हम उपलब्ध करवाएंगे। तो दूसरी पार्टी वाले कहते हैं कि हम दाल, रोटी, तेल, घी, चीनी और पेट्रोल के भाव कम कर इस देश के प्रत्येक गरीब को मुझसे मुक्त करवाएंगे। लेकिन मजे की बात यह है कि यह सब अब तक आपके साथ छलावे के अलावा कुछ नहीं रहा है।

अभी तो सबसे ज्यादा पेट्रोल डीजल के भावों ने मुझे बहुत ज्यादा शर्मिंदा कर रखा है। तेल कारोबारी कंपनियां सरकारी दबाव में चुनावों के समय या महिने के आखिरी दिन पेट्रोल व डीजल के भाव एक रुपये कम करके आपको खुशी की गोली चुसा देते हैं। लेकिन कुछ दिन बाद ही अंतरराष्ट्रीय स्तर पर तेल के महंगे होने का इंजेक्शन देकर सीधे तीन रुपये बढ़ाकर आपकी बोलती बंद कर देते हैं। आपके लिए इसे निराश मन से स्वीकार करने के अलावा कुछ विकल्प नहीं होता। यह बात अलग है कि साईकिल चलाने वाले कुछ गरीब लोग ही इस झटके से बचे रहते हैं।

आज तुम कह सकते हो कि बहन महंगाई आप निराश क्यों हो रही हो। आप का तो स्तर ऊपर ही उठ रहा है। विकास की राह पर हैं। लेकिन मुझे पता है कि आज गरीब व मध्यम वर्ग के आदमी के लिए एक आशियाना बनाने के लिए, अपनी लाडली बेटी के हाथ पीले करने के लिए उसे पैसों के जुगाड़ के लिए कितने लोगों के सामने झोली फैलानी पड़ती है। कितने कर्ज देने वालों के मोटे ब्याज की मार को सहना पड़ता है। इसीलिए मेरे पास इस मंदिर की छत पर प्रायश्चित्त करने के अलावा कोई विकल्प नहीं बचा।

मैंने कहा “बहन महंगाई, आप की बात तो सही है। जब भी कर्मचारियों के नये वेतनमान बढ़ने की बात शुरु ही होती है बाजार के कर्णधार अपने-अपने कब्जे वाली वस्तुओं के भाव आसमान पर चढ़ा देते हैं। यह नहीं सोचते कि सरकारी जंवाई तो देश भर में दो करोड़ ही नहीं होंगे। बाकी देश की मध्यम व गरीबी रेखा पर विराजमान सत्तर करोड़ लोगों का क्या कसूर है?”

मेरा तो यही कहना है कि इसके लिए उदास होकर रोना तो कोई हल नहीं है। इस देश में अभी भी न्याय के मंदिर हैं, जो बड़ी से बड़ी समस्या के हल के लिए सरकारी नुमाइंदों के गलत फैसलों के विरोध में जनता के पक्ष में फैसले देते रहे हैं।

आप देश के कुछ बड़े ऐसे लोगों के दिल में घुसकर उनके दिमाग में इस चीज की खुजली पैदा करो कि वो आप यानी महंगाई के बढ़ने के खिलाफ न्याय के मंदिर में जाकर ’स्टे’ लेकर आएं ताकि न्याय के अधिपति देश को चलाने वालों को यह आदेश दें कि आप अब महंगाई को नहीं बढ़ा सकते हैं। इस बिना सिर पैर के सुझाव के अलावा मेरे पास भी आपके विकास को रोकने का कोई विकल्प नहीं है। आप रोना बंद करें। रोने से आपका ही नुकसान होगा। दूसरों की सेहत पर इसका कोई असर नहीं होगा। मैं अब चलता हूं। जय गणेश। जय हिंदुस्तान।

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