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जिले में २७ थाने, २७ थार जीप, ९ बोलेरो
केस एक छतरगढ़ थाना क्षेत्र में १३ अक्टूबर, १९ की रात को पुलिस को अवैध मादक पदार्थ तस्करी की सूचना मिली। पुलिस ने नाकाबंदी की। तभी जोधपुर की तरफ से एक लग्जरी कार आई। कार चालक नाकाबंदी तोड़कर गाड़ी भगा ले गया। कार सवार बदमाशों ने पुलिस पर फायर भी किए। बदमाशों की गाड़ी पीछा कर रही पुलिस की गाड़ी के रेडिएटर की पाइप फट गई। इसके बाद छतरगढ़ थानाधिकारी सुरेन्द्र बारुपाल ने निजी वाहनों से बदमाशों का पीछाा किया। ग्रामीणों की मदद से पुलिस तस्करों को दबोच पाई।
केस दो करीब एक साल पहले १७ जून, २० को नापासर थाना क्षेत्र के खारडा गांव में दो गाडिय़ों में आए बदमाशों ने एक सुनार की दुकान में डकैती की। नापासर एसएचओ संदीप बिश्नोई को सूचना मिली। तब उन्होंने मुखबीरों से पता कर बदमाशों का पीछा करते श्रीडूंगरगढ़ पहुंचे। वहां से बदमाशों के तौलियासर सिंगल मार्ग पर जाने की इत्तला पर नापासर एसएचओ व श्रीडूंगरगढ़ के तत्कालीन एसएचओ सत्यनारायण गोदारा पीछे लगे रहे। तब नापासर एसएचओ की जीप खराब हो गई। इस पर उन्होंने ग्रामीणों की गाड़ी से पीछा कर छह आरोपियों को दबोचा।
बीकानेर। पुलिस थानों की गश्त और अपराधियों को पकडऩे वाली गाडिय़ों की सांसे फूल रही है। दम फुलती सरकारी गाडिय़ों को चिढ़ाकर अपराधी बच निकलते हैं। विशेष तौर से मादक पदार्थ तस्करों के सरपट दौड़ते वाहनों को पकडऩे के लिए पीछा करने में पुलिस की खटारा जीपें मुंह की खा रही है। पुलिस की खटारा जीपों का फायदा अपराधी उठा रहे हैं। मजेदार पहलू तो यह है कि थानाप्रभारियों पर अपराधियों को पकडऩे का जिम्मा है, उनके पास गाडिय़ों के नाम पर खटारा वाहन है, जबकि पुलिस अफसर लग्जरी गाडिय़ों में घूम रहे हैं। वारदात का सुनकर ही पुलिस थानों की गाडिय़ां हांफने लगती है, जिससे अपराधी बच कर निकल पड़ते हैं।
जुगाड़ से चलता काम
मादक पदार्थ की सूचना या वारदात कर भाग रहे अपराधियों का पीछा करने के लिए थाने की खटारा व वर्षों पुरानी गाडिय़ों से पीछा करना पड़ता है। कई बार थानेदार निजी वाहन एवं ग्रामीणों से वाहन लेकर बदमाशों का पीछा करते हैं। हालात यह है कि ग्रामीण क्षेत्र के थानों में जुगाड़ से काम चल रहा है। ऐसे में थानेदारों को अपनी जेब से भी पैसा खर्च करना पड़ता है।
जान जोखिम में, जेब पर भी भार राजमार्ग स्थित थानों को सबसे अधिक परेशानियों का सामना करना पड़ता है। महीने में जितना डीजल पुलिस मुख्यालय की ओर से गाड़ी में दिया जाता है, वह कुछ दिनों में ही खत्म हो जाता है। ऐसे में निजी साधनों में डीजल या पेट्रोल थानेदारों को अपनी जेब से भरवाना पड़ता है। राजमार्ग के थानों के थानेदारों की जान भी जोखिम में रहती है। अक्सर बड़े कुख्यात अपराधियों के वारदात कर भागने पर नाकाबंदी करनी पड़ती है। नाकाबंदी तोड़कर भागने वालों को दबोचने के लिए पुलिस को एडी-चोटी का जोर लगाना पड़ता। इस दरम्यिान खटारा गाडिय़ों से कई बार नाकामी भी मिलती है।
पुलिस में वाहनों के लिए समय सीमा और किलोमीटर निर्धारित है। इन दोनों में से अगर कोई एक नियमों से बाहर हो जाए तो गाड़ी बदलने का प्रावधान है। यह सही है कि थानों में थार गाडिय़ां है जो सुरक्षा की दृष्टि से भी ठीक नहीं है। थानों में बदमाशों को पकडऩे के लिए सुविधाजनक व लग्जरी गाड़ी मुहैया कराने का मामला पुलिस मुख्यालय स्तर का है।
शैलेन्द्रसिंह इंदौलिया, कार्यवाहक पुलिस अधीक्षक
एक नजर इधर..
जिले में थाने :- २७
थार जीप :- २२
बोलेरो :- ९
प्रति माह :- थाने के एरिया के लिहाज से २०० से २५० लीटर डीजल
अतिरिक्त भार :- हर माह थाने की गाडिय़ों में १०० से १५० लीटर डीजल अधिक खर्च
क्लेम तक नहीं :- अतिरिक्त खर्च होने वाले डीजल का पुलिस अधिकारी-कर्मचारियों को करना पड़ता है वहन, जिसका कोई क्लेम नहीं होता

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