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बीकानेर। कर्मों की विचित्र दशा होती है। सामान्य घर में भी जब बालक जन्म लेता है, कांसे की थाली बजाई जाती है। महिलाएं मंगल गीत गाती है। हर्षोल्लास छाया रहता है। लेकिन जब श्री कृष्ण ने जन्म लिया तो ना थाली बजाई गई, ना कोई मंगल गीत गाने वाले थे। उनका जन्म तो जेल की सलाखों के पीछे हुआ था। और जब उनकी मृत्यु हुई तब भी उनके पास कोई रोने वाला नहीं था। श्री शान्त क्रान्ति जैन श्रावक संघ के 1008 आचार्य श्री विजयराज जी महाराज साहब ने शुक्रवार को जन्माष्टमी पर अपने नित्य प्रवचन के दौरान भगवान श्री कृष्ण के व्यक्तित्व एवं कृतित्व के साथ उनके मामा कंश के जीवन चरित्र पर विस्तारपूर्वक जानकारी देकर श्रावक- श्राविकाओं को जीवन चरित्र में संस्कृति और संस्कारों को समावेशित करने की बात कही। महाराज साहब ने कहा कि हमारा भारत देश पर्व प्रधान देश है। इस देश में अनेक तरह के पर्व मनाए जाते हैं। कुछ पर्व महापुरुषों से जुड़े हैं। जैसे महावीर जयंती भगवान महावीर के अवतरण दिवस पर, भगवान श्री राम से रामनवमी, जन्माष्टमी और कई ऐसे पर्व हैं जो मनाए जाते हैं। इनमें से ही आज के दिन मध्यरात्रि में श्री कृष्ण का जन्म हुआ और जन्माष्टमी पूरे देश में मनाई जाती है। भादवा जब भी आता है, श्री कृष्ण की स्मृतियों को लेकर आता है। भारत की तीन प्रमुख पुरातन संस्कृति जैन, बौद्ध, वैदिक तीनों में समानता है। इन तीनों ही संस्कृति में भी श्री कृृष्ण को लेकर भी समानता है। तीनों ही संस्कृति में श्री कृष्ण का वर्णन मिलता है और तीनों में ही माना भी जाता है। श्रीकृष्ण के जीवन को पढक़र कहा जा सकता है कि वे संस्कृति पुरुष थे। जो अपने कर्तव्य और कृतित्व से हमारी संस्कृति की रक्षा करता है वह सांस्कृतिक पुरुष होता है, और यह कार्य श्री कृष्ण ने किया था। हजारों साल पहले कंश, जरासंध, शिशुपाल के आंतक से दुनिया आतंकित थी। उस वक्त श्रीकृष्ण ने अपने लोगों की रक्षा कर उन्हें उनके आंतक से मुक्ति दिलाई, इतना ही नहीं जब श्री कृृष्ण को इस बात का पता चला कि द्वारिका नहीं रहेगी, डूब जाएगी तब उन्होंने अनेकों द्वारिकावासियों से संत जीवन जीने के लिए दीक्षा का मार्ग बताया था। इसका उल्लेख भी साहित्य में मिलता है।
महाराज साहब ने कहा कि मन का और तन का गहरा संबंध होता है। मन का कोई विचार पूरा नहीं होता है तो तन कांतिहीन हो जाता है। मन और तन के गहरे संबंध को परिभाषित करते हुए कंस के जन्म की कथा और फिर उसके मृत्यु तक का वृृतांत बताया। महाराज साहब ने बताया कि कंस कौन था..?, कैसे राजपरिवार में जन्म लेने के बाद भी मछुआरे के पास पहुंचा, फिर मछुआरे से सेठ के पास और फिर वहां से राजा वासुदेव के यहां पला बढ़ा और अंत में फिर से राजा बना, राजा बनने के बाद कृष्ण के हाथों क्यों मरा…?।
आचार्य श्री ने कहा कि श्री कृष्ण एक व्यक्ति नहीं संस्कृति है। दुनिया के लोगों के लिए वह भगवान हैं। श्री कृष्ण के गुणों को गाएं नहीं, उनके कर्तव्य को धारण करना चाहिए। उनका जीवन बहुआयामी था, हर कोई ऐसे महापुरुष नहीं बनते जो राजनैतिक ही नहीं धार्मिक दृष्टि से उदात पुरुष थे। हमें उनके गुणों से सीख लेनी चाहिए और जीवन में आगे बढऩा चाहिए।

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