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बीकानेर शहर कांग्रेस अध्यक्ष की सीट पर यशपाल गहलोत को रिपीट करने के निर्णय के साथ ही नगर विकास न्यास अध्यक्ष की सूची से यह नाम बाहर आ गया है, लेकिन इस नाम के बाहर निकलने के साथ ही जो दूसरा नाम यूआईटी चैयरमैन के लिए शामिल हुआ है, उसने बड़े-बड़े धनपतियों की नींद उड़ा दी है।
पिछले विधानसभा चुनाव में कांग्रेस के लिए बीकानेर विधानसभा पूर्व से चुनाव लड़ चुके कन्हैया लाल झंवर का नाम न सिर्फ संभावितों की सूची में आ चुका है बल्कि बहुत आगे भी है। इस नाम का मुकाबला अब सिर्फ सुशील थिरानी से है, जो कल्ला- कैम्प से माने जाते हैं, लेकिन उनकी राजनीतिक महत्वाकांक्षा सिर्फ डॉ. बी.डी. कल्ला के इच्छा व निर्देश पर है जबकि कन्हैया लाल झंवर की महत्वाकांक्षा प्रबल है। पिछले विधानसभा चुनाव में भाजपा की परंपरागत सीट मानी जाने वाली बीकानेर विधानसभा पूर्व पर कांग्रेस के सिंबल पर झंवर ने इतना शानदार चुनाव लड़ा की सिद्धिकुमारी के लिए खतरा बन गए। हालांकि, झंवर हार गए, लेकिन उन्होंने अपना दमखम दिखा दिया। यही वजह है कि जब कांग्रेस लोकसभा चुनाव जीतना चाह रही है तो कन्हैया लाल झंवर को राजनीतिक नियुक्ति का लाभ देना होगा।
इससे वैश्य वर्ग को नगर विकास न्यास का अध्यक्ष बनाने की मांग भी पूरी हो जाएगी। हालांकि, झंवर नाम के आने के बाद रामेश्वर डूडी गुट के प्रभावी होने की संभावना है, लेकिन जिस तरह बीकानेर शहर कांग्रेस जिलाध्यक्ष पद पर यशपाल गहलोत को रिपीट करके कल्ला गुट को कमजोर करने का काम किया गया है, कोई बड़ी बात नहीं कि देहात में भी डूडी की मर्जी से अध्यक्ष बने। झंवर की नजदीकियां पहले से ही डूडी के साथ है। झंवर के अशोक गहलोत से भी अच्छे संबंध है।

परिणाम स्वरूप कल्ला-गुट कमजोर ही होगा। इन संभावनाओं के चलते युआईटी चेयरमैन के दावेदार चौकन्ने हो गए हैं। गोविंद मेघवाल को आपदा प्रबंधन मंत्री बनाने के बाद यशपाल गहलोत को शहर अध्यक्ष बनाना कल्ला – गढ़ को ध्वस्त करने की रणनीति का ही हिस्सा बताया जा रहा है, जो कांग्रेस ने ही रची है। अगर इस प्रक्रिया में नगर विकास न्यास अध्यक्ष भी कल्ला की मर्जी से नहीं बना तो सियासी समीकरण पूरी तरह से बदल जाएंगे।

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