बीकानेर। नवरात्रा के अवसर पर बीकानेर में शनिवार को डॉ.अर्जुनदेव चारण की कृति ‘जगदम्बा : सृष्टि की आद्या शक्ति’ का लोकार्पण हुआ। प्रख्यात आलोचक डॉ.उमाकांत गुप्त, संस्कृति के विद्वान डॉ.रजनीरमण झा, वरिष्ठ रंगकर्मी, पत्रकार व साहित्यकार मधु आचार्य ‘आशावादी’ व गायत्री प्रकाशन की गायत्री शर्मा ने कृति का लोकार्पण किया। नागरी भंडार परिसर स्थित नरेंद्रसिंह ऑडिटोरियमें आयोजित इस समारोह से पूर्व कृति देशनोक स्थित करणीमाता के मंदिर में लेखक डॉ.अर्जुनदेव चारण ने भेंट की।
राष्ट्रीय नाट्य विद्यालय के उपाध्यक्ष, कवि-आलोचक डॉ. अर्जुनदेव चारण ने लेखकीय वक्तव्य में कहा कि सामान्यतौर पर शिव और शक्ति की जब बात होती है तब हम इन दोनों को पति-पत्नी मान लेते हैं, लेकिन ऐसा है नहीं। शिव की बहन शक्ति है, जिसे हम अंबा कहते हैं। कालांतर में यही शक्ति जगह की मां के रूप में जगदम्बा नाम से पहचानी जाती है। इस तरह के कई संदर्भ है, जिसकी हमें जानकारी नहीं होने की वजह से हमने धारणाएं बना ली है। इसे जानने के लिए हमें भारतीय ज्ञान परंपरा को समझना होगा, लेकिन हम इसका तिरस्कार कर रहे हैं, जो गलत है। खासतौर से पाश्चात्य प्रभाव वाले विद्वानों ने हमारी ज्ञान परंपरा को काफी नुकसान पहुंचाया है। इसे मिथ या माइथोलोजी कहते हुए जिस तरह से परिभाषित किया जाता है, वह इतिहास के साथ छेडख़ानी है। इतिहास का मतलब है होना है जबकि लोग इसे था से समझते हैं। हमें अपनी ज्ञान परंपरा को समझने की जरूरत है।
पूर्व प्राचार्य व आलोचक डा.उमाकांत गुप्त ने कहा कि जगदम्बा के होने का अर्थ ही यह है कि हम मुस्कराते रहें। जगदम्बा हमें जीवन की ऊर्जा देती है। यह किताब पढ़ते हुए हम स्वत: ही ध्यान में चले जाते हैं। डॉ.चारण के लेखन कौशल की प्रशंसा करते हुए डॉ.उमाकांत ने कहा कि क्योंकि डॉ.चारण एक रंगकर्मी हैं, इसलिए किताब में नाटकीयता और कथातत्त्व की मौजूदगी है, जो पाठकों को बांधे रखने में सक्षम है। यह किताब संदेश है कि अगर बुराइयों से लडऩा है तो सकारात्मक ऊर्जा वालों को एक होना होगा। मनुष्य में यह एक्य जागृत होना जरूरी है।
संस्कृत के विद्वान व उपन्यासकार डॉ.रजनीरमण झा ने कहा कि हमारे ग्रंथों व पुराणों में अनेक सूत्र बिखरे हैं, जो विज्ञान के लिए भी आधार का काम कर सकते हैं। सारी सृष्टि एक ऊर्जा तत्त्व से संचालित है। हमारे अंदर भी एक ऊर्जा ही है, जिसे हम ईश्वरीय तत्त्व के रूप में भी समझते हैं। उन्होंने लोकार्पित कृति ‘जगदम्बा’ की भाषा को सरल और ग्राह्य बताते हुए कहा कि यह किताब काफी उपयोगी साबित होगी। उन्होंने कहा कि हम जैसे-जैसे विस्तार करते हैं तो जगत में और हमारे में भेद नहीं होता। यह किताब दुर्गा के अनेक रूपों का वर्णन करते हुए अनेक संदर्भों को भी जोड़ती है। यह किताब किसी खजाने से कम नहीं है।
वरिष्ठ रंगकर्मी, पत्रकार, साहित्यकार मधु आचार्य ‘आशावादी’ ने कहा कि पहले ‘पंचम वेद’ और अब ‘जगदम्बा’ के रूप में डॉ.अर्जुनदेव चारण ने पाठकों को सरल हिंदी में वह साहित्य उपलब्ध करवाया है, जो हजारों साल से जन सामान्य से दूर था। गायत्री प्रकाशन का ‘जन तक सृजन’ अभियान को इन दोनों किताबों से बल मिलेगा।
प्रारंभ में पत्रकार धीरेंद्र आचार्य ने लोकार्पित हो रही किताब के लिए कहा कि यह किताब अनेक संदर्भों को समेट है। निश्चित रूप से इस किताब से निकलते हुए जितना जानने का संतोष होगा, उससे अधिक जानने की जिज्ञासा होगा। स्वागत वक्तव्य राजेंद्र जोशी ने देते हुए कहा कि नवरात्रा के अवसर पर देवी को नये सिरे से जानने के लिए आई इस कृति का स्वागत होना चाहिए। यह कृति स्वयं को खोजने की प्रक्रिया सिखाती है। कार्यक्रम का संचालन हरीश बी. शर्मा ने किया। इस अवसर पर कृति का आवरण चित्र बनाने वाले पेंटर धर्मा का अभिनंदन किया गया।
पूर्व प्राचार्य व आलोचक डा.उमाकांत गुप्त ने कहा कि जगदम्बा के होने का अर्थ ही यह है कि हम मुस्कराते रहें। जगदम्बा हमें जीवन की ऊर्जा देती है। यह किताब पढ़ते हुए हम स्वत: ही ध्यान में चले जाते हैं। डॉ.चारण के लेखन कौशल की प्रशंसा करते हुए डॉ.उमाकांत ने कहा कि क्योंकि डॉ.चारण एक रंगकर्मी हैं, इसलिए किताब में नाटकीयता और कथातत्त्व की मौजूदगी है, जो पाठकों को बांधे रखने में सक्षम है। यह किताब संदेश है कि अगर बुराइयों से लडऩा है तो सकारात्मक ऊर्जा वालों को एक होना होगा। मनुष्य में यह एक्य जागृत होना जरूरी है।
संस्कृत के विद्वान व उपन्यासकार डॉ.रजनीरमण झा ने कहा कि हमारे ग्रंथों व पुराणों में अनेक सूत्र बिखरे हैं, जो विज्ञान के लिए भी आधार का काम कर सकते हैं। सारी सृष्टि एक ऊर्जा तत्त्व से संचालित है। हमारे अंदर भी एक ऊर्जा ही है, जिसे हम ईश्वरीय तत्त्व के रूप में भी समझते हैं। उन्होंने लोकार्पित कृति ‘जगदम्बा’ की भाषा को सरल और ग्राह्य बताते हुए कहा कि यह किताब काफी उपयोगी साबित होगी। उन्होंने कहा कि हम जैसे-जैसे विस्तार करते हैं तो जगत में और हमारे में भेद नहीं होता। यह किताब दुर्गा के अनेक रूपों का वर्णन करते हुए अनेक संदर्भों को भी जोड़ती है। यह किताब किसी खजाने से कम नहीं है।
वरिष्ठ रंगकर्मी, पत्रकार, साहित्यकार मधु आचार्य ‘आशावादी’ ने कहा कि पहले ‘पंचम वेद’ और अब ‘जगदम्बा’ के रूप में डॉ.अर्जुनदेव चारण ने पाठकों को सरल हिंदी में वह साहित्य उपलब्ध करवाया है, जो हजारों साल से जन सामान्य से दूर था। गायत्री प्रकाशन का ‘जन तक सृजन’ अभियान को इन दोनों किताबों से बल मिलेगा।
प्रारंभ में पत्रकार धीरेंद्र आचार्य ने लोकार्पित हो रही किताब के लिए कहा कि यह किताब अनेक संदर्भों को समेट है। निश्चित रूप से इस किताब से निकलते हुए जितना जानने का संतोष होगा, उससे अधिक जानने की जिज्ञासा होगा। स्वागत वक्तव्य राजेंद्र जोशी ने देते हुए कहा कि नवरात्रा के अवसर पर देवी को नये सिरे से जानने के लिए आई इस कृति का स्वागत होना चाहिए। यह कृति स्वयं को खोजने की प्रक्रिया सिखाती है। कार्यक्रम का संचालन हरीश बी. शर्मा ने किया। इस अवसर पर कृति का आवरण चित्र बनाने वाले पेंटर धर्मा का अभिनंदन किया गया।