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बीकानेर,अजित फाउण्डेशन द्वारा आयोजित ‘‘स्वतंत्रता सेनानी: शौकत उस्मानी‘‘ कार्यक्रम के अतंर्गत आज संवाद श्रृंखला के अन्तर्गत मुख्य वक्ता के रूप में अपनी बात रखते हुए सुप्रसिद्ध समाजसेवी अविनाश व्यास ने कहा कि सन् 1901 में पैदा हुए शौकत उस्मानी अन्तर्राष्ट्रीय स्तर के क्रांतिकारी बने। पैदा होते ही माता-पिता का साया उठने के बाद दादी से फिंरगियों के जुल्मों के खिलाफ 1857 के संघर्ष की कहानियां सुनते-सुनते उनमें अंग्रेजों के खिलाफ विद्रोह के अंकुर फूटे, जिसे कालान्तर में डूंगर मेमोरियल विद्यालय में राष्ट्रवादी प्राचार्य तिवाड़ी जी और सम्पूर्णानन्द जी के सान्निध्य में राष्ट्रप्रेम की भावना जागृत हुई। शौकत उस्मानी परीक्षा देने अजमेर गये तब उन्होंने पहली स्वंत्रत राजनैतिक कार्यवाही देखी।
अविनाश व्यास ने बताया कि अजमेर की इस प्रेरणा से उन्होंने मई 1920 में भारत की आजादी का सपना लेकर बीकानेर त्याग दिया। अफगानिस्तान के रास्ते होते हुए विभिन्न कठनाईयों, प्रयलकांरी जलप्रवाहों को चीरते हुए वे खिलाफत आन्दोलन के साथियों के साथ रूस पहुंचते है, और वहां उनकी मुलाकात पहले से मौजूद भारतीय क्रांतिकारियों से होती है। जिसमें एम.एन.राय आदि प्रमुख थे। उनमें बेचेनी थी वे सोवियत संघ सहायता चाहते थे लेकिन स्टालिन ने यह कहते हुए ‘‘गांधीजी इसके पक्ष में नहीं है’’ उस्मानी भारत लौट आते है। इस घटना का जिक्र उन्होंने अपनी पुस्तक ‘‘मैं स्टालिन से दो बार मिला’’ में किया है।
व्यास ने कहा कि 22 जनवरी 1922 को मुम्बई पहुंचने के बाद वे कानपुर गये। वहां उनका सम्पर्क उनके पुराने प्राचार्य सम्पूणानन्द जी से हुआ, उन्होंने महान स्वतंत्रता सेनानी गणेश शंकर विद्यार्थी से उनकी भेंट करवाई। इसी दरम्यान मई 1923 उन्हें पेशावर केस में गिरफ्तार कर लिया। उसके बाद सन् 1929 में बिट्रिश सरकार ने 33 मजदूर नेताओं को मेरठ केस के नाम से गिरफ्तार किया जिसमें तीन अंग्रेज थे। इसी दौरान बिट्रिश सरकार तीन काले कानून लाई जिसके विरोध में भगतसिंह ने असेम्बली में बम फैंका था। हिरासत के दौरान ही शौकत उस्मानी को सर साईमन के खिलाफ इंग्लैड की स्पेनवैली संसदीय क्षेत्र से उम्मीदवार बनाया गया।
इस प्रकार शौकत उस्मानी कुल 16 वर्ष जेलों में रहे। आजादी के बाद उन्होंने इंग्लैण्ड में रहकर एक पुस्तक लिखी जो आहार विज्ञान से संबंधित है। उनकी पहली पुस्तक गणेश शंकर विद्यार्थी ने प्रकाशित की। काहीरा में रहकर उन्होंने पत्रकारिता। अपने नाटकीय और संघर्षशील जीवन में उन्होंने जेल यातनाओं के साथ युद्ध के विरूद्ध एवं सामाजिक विषयों पर विभिन्न पुस्तके लिखी। सन् 1920 में बीकानेर छोड़ने के बाद वे 1976 में बीकानेर आए जहां उनका नागरिक अभिनन्दन हुआ। महान स्वतंत्रता सेनानी बीकानेर का यह सपूत 26 फरवरी 1978 को दुनिया से अलविदा कर गया।
कार्यक्रम के आरम्भ में संस्था समन्वयक संजय श्रीमाली ने कहा कि अजित फाउण्डेशन निरन्तर ऐसे महानुभवों पर आयोजन करता आया जिससे युवाओं को प्रेरणा मिले। समाज में नई ऊर्जा का संचार फैले।
कार्यक्रम कें अंत में उर्दू साहित्यकार जाकीर अदीब ने संस्था की तरफ से सभी का आभार एवं धन्यवाद ज्ञापित किया।
कार्यक्रम में कार्यक्रम में कमल रंगा, डॉ. अजय जोशी, सलीम उस्मानी, दीपचंद सांखला, हनीफ उस्ता, भगवती प्रसाद पारीक, जाकिर अदीब, महेश उपाध्याय, रविदत्त व्यास, विशन मतवाला, गिरिराज पारीक, कासीम बीकानेरी, कविता व्यास, इन्द्रा व्यास, योगेन्द्र पुरोहित, राजाराम स्वर्णकार, सहित कई गणमान्य व्यक्ति उपस्थित रहे।

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