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बीकानेर अन्नाराम सुदामा आधुनिक राजस्थानी साहित्य के उज्ज्वल नक्षत्र रहे हैं। उन्होंने राजस्थानी साहित्य की सभी विधाओं में उल्लेखनीय सृजन किया। युवा रचनाकारों को सुदामा द्वारा रचित साहित्य से सदैव प्रेरणा मिलती रहेगी।

ये विचार साहित्यकारों ने सोमवार को राजस्थानी के वरिष्ठ साहित्यकार अन्नाराम सुदामा की 99वीं जयंती पर राजस्थानी भाषा, साहित्य एवं संस्कृति अकादमी तथा श्री नेहरू शारदापीठ पीजी महाविद्यालय के संयुक्त तत्वावधान में महाविद्यालय परिसर में आयोजित ‘अन्नाराम सुदामा की राजस्थानी साहित्य को देन’ विषयक संगोष्ठी में व्यक्त किये।
इस अवसर पर महाविद्यालय प्राचार्य डॉ. प्रशांत बिस्सा ने कहा कि सुदामा का पहला उपन्यास ‘मैकती काया- मुळकती धरती’ सन् 1966 में प्रकाशित हुआ था, जिसमें नारी संघर्ष का चित्रण है। उनके उपन्यास अनेक विश्वविद्यालयों के पाठ्यक्रमों में शामिल रहे हैं। कवि-कथाकार राजेन्द्र जोशी ने कहा कि सुदामा ने राजस्थानी में उपन्यास, कहानी, कविता, नाटक, निबंध, यात्रा संस्मरण, बाल साहित्य सहित सभी विधाओं में विपुल साहित्य की रचना करी। उनका साहित्य सभी को सदैव प्रेरित करता रहेगा। अकादमी सचिव कथाकार शरद केवलिया ने कहा कि सुदामा ने अपनी रचनाओं में ग्राम्य जनजीवन, महिला सशक्तीकरण, राजनीति, अकाल, सामाजिक कुरीतियों आदि अनेक विषयों का जीवंत चित्रण किया है। महाविद्यालय के राजस्थानी विभागाध्यक्ष डॉ. गौरीशंकर प्रजापत ने कहा कि सुदामा को उनकी सुदीर्घ साहित्य-सेवा के लिए अनेक संस्थाओं द्वारा सम्मानित व पुरस्कृत किया गया। उन्होंने अपनी रचनाओं में राजस्थानी कहावतें-मुहावरों, विशिष्ट भाषा-शैली का प्रयोग किया। साहित्यकार डॉ. अजय जोशी ने कहा कि सुदामा की राजस्थानी के साथ-साथ हिन्दी में भी अनेक पुस्तकें प्रकाशित हुई हैं। साहित्यकार राजाराम स्वर्णकार ने कहा कि सुदामा की अनेक रचनाओं का विभिन्न भारतीय भाषाओं में अनुवाद हुआ है।
इस अवसर पर डाॅ. यज्ञेश नारायण पुरोहित, डाॅ. गोपाल कृष्ण व्यास, केशव जोशी, अमित पारीक, कमल आचार्य, मनोज मोदी, मोहित गज्जाणी, हड़मान महात्मा, बलदेव पुरोहित, प्रताप सिंह बड़गूजर ने भी सुदामा को पुष्पांजलि अर्पित की।

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