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बीकानेर,आज राष्ट्रीय प्रेस दिवस है। यह दिन पत्रकारिता करने वाले के लिए आईना हो सकता है बेशर्त वे उसमें झांक कर देखें? क्या लोकतंत्र में पत्रकारिता धर्म की वे जिम्मेदारी निभा पा रहे हैं ? समाज के हितों की कितनी पैरवी कर पा रहे है। अन्याय, अत्याचार, भ्रष्टाचार और निरंकुशता के खिलाफ पत्रकारिता की चुनौती बरकरार है? अगर ऐसा नहीं है तो पत्रकार और पत्रकारिता के फिर मायने ही क्या रह गए हैं। पत्रकारिता सत्ता और नेताओं के हाथों की कठपुतली तो नहीं बनती जा रही है। भारतीय लोकतंत्र में पत्रकारिता अपने मूल्य तो नहीं खोती जा रही है। भारत जैसे विविधता वाले लोकतंत्र में मूल्य आधारित सशक्त पत्रकारिता की क्या दशा ठीक है? आज से ठीक चार दिन पहले प्रदेश के वरिष्ठ पत्रकारों के बीच जयपुर में एक समारोह के दौरान अनौपचारिक रूप से हुई चर्चा में पत्रकारिता के गिरते स्तर, नैतिक पतन और गैर पत्रकारों का पत्रकारिता पर हावी होने से गिरती साख पर चिंता जताई गई। पत्रकारिता के गिरते इन हालातों को सुधार का संकल्प भी वरिष्ठ पत्रकारों ने जताया । इस बातचीत में वरिष्ठ पत्रकार गुलाब बत्रा, अनु अग्रवाल, राजीव जैन , आनंद जोशी, हेम शर्मा, शंकर नागर समेत कई वरिष्ठ पत्रकार शामिल थे। बातचीत में बताया गया कि पत्रकारों के एक संगठन में केटरिंग करने वाला व्यक्ति, टैक्सी ड्राइवर सदस्य व पदाधिकारी है। ऐसे कई लोग जो गैर पत्रकार है पत्रकार संगठनों के सदस्य बने हुए हैं और तथाकथित रूप से पत्रकार का पहचान पत्र लेकर घूम रहे हैं। उन्हें पत्रकारिता के मूल्यों के प्रति कतई जिम्मेदारी नहीं है। ऐसे लोग पत्रकारिता के नाम पर फायदा उठाते हैं। नेताओं और अफसरों की जी हजूरी, सूचनाओं और घटनाओं को भुनाते फिरते हैं। पत्रकारिता में इस तरह का कॉकस अपने स्वार्थों के चलते सशक्त हो गया है जो मूल पत्रकारिता पर हावी है।सरकार या जन संपर्क विभाग गैर पत्रकारों के मुद्दे पर चुप है, बल्कि अप्रत्यक्ष में बढ़ावा देते है। ये करते क्या है? जांचने और समझने की बात है जो वास्तव में पत्रकारिता करते है उन पर ऐसे लोग सवाल बने हुए हैं। उनकी साख पर बट्टा लगा रहे हैं। मेरे पास एक वरिष्ठ फोटो पत्रकार का फोन आया कि भाई साहब दीपावली पर एक नेता ने उनको बताया कि तीन पत्रकार संगठनों की ओर से उनके पास लिस्ट आई है कि इन सूचीबद्ध पत्रकारों के मिठाई के पैकेट उनको दे दिए जाए …। भाजपा के एक नेता ने बताया कि एक तथाकथित पत्रकार मिठाई की दुकान पर पहुंचा और मिलावट की शिकायत की धमकी दी और मिठाई का पैकेट लेकर चलता बना। ऐसे लोग पत्रकार तो नहीं हो सकते। कोई भी पत्रकार ऐसा नहीं कर सकता। ये वे गैर पत्रकार हैं जो पत्रकार बनकर पत्रकारिता की साख और स्तर को गिराते हैं। राष्ट्रीय पत्रकारिता दिवस पर पत्रकारिता की साख गिराने वाले तथाकथित गैर पत्रकारों के खिलाफ दबंगता से अभियान चलाने की जरूरत है। जो युवा वास्तव में पत्रकारिता करना चाहते है उनको समर्थन और सहयोग की जरूरत है। ऐसा युवाओं को सहयोग करके ही पत्रकारिता के मूल उद्देश्य को आगे बढ़ाया जा सकता है। युवा पीढ़ी को पत्रकारिता में आगे बढ़ने में वांछित सहयोग नहीं मिल पा रहा है। वे पत्रकारिता करना चाहते हैं पर उचित मंच नहीं मिलने से दिग्भ्रमित है। राष्ट्रीय प्रेस दिवस के मायने ध्येय को उचित दिशा देना ही हो सकता है। पत्रकारिता करने में आगे आने वाले युवाओं को सम्मान और सहयोग मिले। पत्रकारिता की साख गिराने वालों को हतोत्साहित किया जाए। इस दिन की सही मायने में पत्रकारिता करने वालों को यही शुभ कामनाएं है।

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