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बीकानेर,जैनाचार्य श्रीपूज्य जिनचन्द्र सूरिश्वर के सान्निध्य में, यति अमृत सुन्दर, यति सुमति सुन्दर व आर्या मुक्ति प्रभाश्री, आर्या समकित प्रभा के नेतृत्व में आठ दिवसीय पर्युषण पर्व तथा दस दिवसीय सत्य साधना शिविर रांगड़ी चौक के बड़ा खेयदा, कोलकाता में शुरू होगा। बड़ा उपासरा में पर्युषण पर्व पर विशेष प्रवचन सुबह नौ बजे व दोपहर साढ़े तीन बजे शुरू होंगे।

जैनाचार्यश्री पूज्य जिनचन्द्र सूरिश्वरजी ने बड़ा उपासरा में शुक्रवार को प्रवचन में कहा कि महापर्व पयुर्षण स्वयं देखने, तराशने, आत्म निरीक्षण व परीक्षण तथा आत्म साधना का महापर्व है। इस पर्व में रीति, क्रिया, विधि-विधान नहीं सत्य साधना के माध्यम से आत्म-परमात्म के स्वरूप् को जानने का अवसर मिलता है। उन्होंने कहा कि धर्म-आध्यात्म की दिशा साधक, आराधक व भक्त में आत्मानंद को बढ़ाती है, वहीं बाहर की सांसारिक क्रियाएं व दिशाएं आनंद को घटाती है।
उन्होंने कहा प्रभु महावीर बुद्ध है। वे सभी साधकों को बुद्ध व मुक्त और सर्वज्ञ बना देते है। प्रभु महावीर के अनमोल वचन का स्मरण दिलाते हुए कहा कि व्यक्ति स्वयं अपना मित्र व शत्रु है, लेकिन सत्य साधना के अभाव में दूसरों को मित्र व शत्रु समझ रहा है। उन्होंने कहा कि तुम्ही मूर्तिकार स्वयं का, तूहीं पाषाण, तूही छैनी हथौड़ी, कर खुद का खुद में निर्माण। अपनी मूर्ति को स्वयं गढ़ना शुरू कर दो तब वह अनमोल होगी। जब मूल का मोल किया जाता है तो वह अनमोल हो जाता है। जब व्यक्ति अपने भीतर की ओर झांकने की दिशा में बढ़ाता है तब अनमोल ंबनता है। लोग अपनी जिन्दगी का प्रतिबिंब व छाया को देखने में ही खो रहे है। अपने प्रतिबिम्बों में चंद्रमा को खोज रहे हे, इन प्रतिबिम्बों में चन्द्रमा किसी को मिला न किसी को मिलेगा। चन्द्रमा की तरह षोडश कलाओं व अमृत की वर्षा करने वाले, सर्व कल्याणकारी परमात्मा प्राप्ति की दिशा में जाना होगा। आत्म-परमात्मा के दर्शन करने होंगे।

यतिश्री अमृत सुन्दरजी ने भक्तामर स्तोत्र की 23-24 गाथा वाचन विवेचन करते हुए परमात्मा मृत्युंजय है । परमात्मा सच्चे साधक, आराधक व भक्त के मृत्यु के भय को दूर कर देते है। मृत्यु के समय तीन बातों का ध्यान रखना होता है, आत्मा गिरती नही ंना ही उसका पतन होता, आत्मा अक्षत है। शरीर का प्राण आत्मा ही है। जो अपने आत्म-परमात्म स्वरूप् में रमण करता है उसकी देह मरती है, उसकी आत्मा नहीं ।
उन्होंने कहा कि परमात्मा का स्वरूप ज्ञान, दर्शन व चारित्र है। हृदय में परमात्मा को धारण कर साधक पवित्र, प्रशंसनीय व मोक्ष मार्ग का गामी बन जाता है। जाने-अनजाने में पूर्व व वर्तमान भव में हुए पापों का स्मरण कर प्रायश्चित करने वाला, पाप नहीं करने के दृढ संकल्प पर कायम रखने वाला, पाप कर्मों से बच सकता है। वह सत्य साधना के मार्ग पर चलकर धर्म, अर्थ, काम व मोक्ष् के परम पुरुषार्थ को प्राप्त कर सकता है।
यति सुमति सुन्दरजी 18 पापों में माया मिशावाद यानि झूठ के साथ माया का वर्णन करते हुए इस पाप से बचने की सलाह दी। उन्होंने कहा कि जीवन को सही बनाने के लिए हमें उसको सही सेफ देते हुए उपवन बनाने का प्रयास व पुरुषार्थ करें। दूसरों के साथ मैत्री व प्रेम भाव रखें ।
यतिनि समकित प्रभा ने महावीर अष्टक का स्तोत्र का व्याख्या करते हुए कहा कि सत्य साधना साधक के भीतर के भय को समाप्त करती है। भगवान महावीर की शरण लेने वाले साधक भव भय मुक्त होकर मोक्ष व परम गति को प्राप्त करते है। उन्होंने भजन ’’तेरी साधना ही मेरी जिन्दगी हो, रजा हो जो तेरी, वो मेरी खुशी हो। तेरी साधना ही मेरी जिन्दगी हो सुनाया।
आयोजन से जुड़े एस.के.डागा व विपिन मुसरफ ने बताया कि महापर्व पर्युषण पर्व व सत्य साधना शिविर में बीकानेर सहित देश के इंदौर आदि स्थानों से आएं जैन-अजैन हिस्सा लेंगे। बाहर से आने वाले श्रावक-श्राविकाओं के लिए अलग अलग स्थानों पर ठहरने की व्यवस्था की गई है। साधक मौन रहकर, उपवास सहित परमात्मा की विभिन्न साधना, आराधना व भक्ति के साथ सत्य साधना शिविर में हिस्सा लेंगे।

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