









बीकानेर,बीकानेर में सबद साख कार्यक्रम के अंतर्गत संजय पुरोहित ने अपनी रचनाओं का पाठ किया जिसमें व्यंग्य ,कहानी ,हिंदी एवं राजस्थानी कविताएं और कहानी ,लघु कथा का वाचन किया । आंख भर आई, जब संजय ने कहानी सुनाई!
सबद साख: ..ज्योंहि संजय ने खत्म की कहानी, दिल में हूक उठी, आंख में आया पानी ।
‘वह अभी किशोरपन की उम्र में पहुंचा था। गांव में रहता था। पापा घर आ रहे थे। बस देर रात को गांव से दूर पक्की सड़क पर ठहरती है। कच्चे रास्ते में पीपल के पेड़ सहित अंधेरे का डर हर बच्चे की तरह उसके मन में भी था। मां की सीख थी। पिता ने डर को निकालने के संस्कार दिये थे। हालांकि यह भी कहा था कि तुम रात को मुझे लेने साइकिल पर मत आना, मैं खुद घर पहुंच जाऊंगा। फिर भी पापा के प्यार और खुद को निडर साबित करने वह साइकिल लेकर निकल पड़ा। जंगल के रास्ते में डर ने घेरा। गिर गया। घबरा गया। आखिर हिम्मत तब आई तब पीछे-पीछे मां आ गई। मां ने उठाया। उससे बातें करता-करता पक्की सड़क पर पहुंच गया। बस आई। पिताजी हैरान कि इतनी रात को यह अकेला कैसे आ गया। उसने बताया, मां साथ आई है। और जब पिता ने कहा, बेटे तुम जानते हो तुम्हारी मां का स्वर्गवास दो साल पहले ही हो चुका है..’
यह उस कहानी का सारांश है जो ख्यातनाम साहित्यकार संजय पुरोहित ने पाठकों को सुनाई। कहानी यहां खत्म हो गई लेकिन संजय ने इसे जिस कलात्मकता से गुंथा उससे कई कदम आगे बढ़ते हुए इस तरह डूबकर सुनाया कि आखिरी वाक्य के साथ रोंगटे खड़े हो गये। कइयों की आंखें नम हो गई। दिल मंे हूक उठ गई। भीतर सवालों के बादल घुमड़ने लगे ‘इसे दुखांत कहें..सुखांत कहें…दर्दांत कहे…या क्या कहें। भूत का भय होने के बावजूद भूत-प्रेतों की मायावी दुनिया का इसमें कहीं जिक्र नहीं था। बाल मनोविज्ञान के हर पहलू को इस कदर समाहित किया गया कि सहजता से बात जेहन में उतरती गई। मसलन, डर, हौसला, मां का प्यार, पिता से प्रेरणा और उनके रास्ते पर चलने का जुनून और इन सबके बीच पूरी संजोकर रखा गया बचपन सबकुछ एक बालक के चरित्र के जरिये अभिव्यक्त कर दिया गया था। पुरोहित ने इस कहानी के साथ ही कुछ चुनिंदा कविताएं, लघु कथाएं भी सुनाई।
लेखन पर टिप्पणी करते हए वरिष्ठ साहित्यकार बुलाकी शर्मा को कहना पड़ा ‘बिज्जी (विजयदान देथा) ने एक बार कहा था कि मैं कहानी लिख सकता हूं लेकिन उसे सुना नहीं सकता।’ आज जब संजय पुरोहित ने कहानी सुनाई तो लगा कि उनके पास लिखने के साथ ही कहने का भी खास अंदाज है। वरिष्ठ साहित्यकार-पत्रकार मधु आचार्य ‘आशावादी’ ने कहा, संजय पुरोहित जितना अच्छा लिखते है उतना ही बेहतर प्रजेंटेशन है। वे बहुआयामी लेखक हैं जो कहानीकार, कवि, व्यंग्यकार, स्तंभकार के साथ ही एक बेहतर उद्घोषक भी इसलिए हैं क्योंकि संवेदना को अभिव्यक्त करने में शब्द सामर्थ्य रखते हैं।
दरअसल यहां बात उस ‘सबद साख’ नामक आयोजन की हो रही है जो रविवार शाम को बीकानेर स्थित सुदर्शना कुमारी कला दीर्घा में हुआ। स्व.डा.भगवानदास किराडू ‘नवीन’ समिति ने यह आयोजन किया। समिति के सचिव साहित्यकार नगेन्द्र नारायण किराड़ू ने बताया, यह एक मासिक कार्यक्रम की पहल है। सबद साख में हर महीने एक साहित्यकार पर केन्द्रित बात होगी। इसमें बीकानेर, प्रदेश और देश के लेखक भी शामिल होंगे। साहित्यकार अपनी चुनिंदा रचनाएं सुनाएंगे। वरिष्ठ लेखक-समीक्षक इस पर टिप्पणी करेंगे और वरिष्ठ साहित्यकार अपनी बात रखेंगे।
कार्यक्रम का संचालन कवि-शायर रवि शुक्ला ने किया। नदीम अहमद नदीम ने लेखक परिचय दिया।
सरल विशारद बोले-अरसे बाद अनूठा आयोजन:
अस्वस्थता और उम्र संबंधी परेशानियों के बावजूद कार्यक्रम में शिरकत करने पहुंचे वरिष्ठ साहित्यकार सरल विशारद ने कहा, बीकानेर में अरसे बाद साहित्यिक कार्यक्रम में एक ताजगी के झोंके-सा अहसास हुआ। आमतौर पर पुस्तकों के लोकार्पण आयोजन होते हैं जिनमें संबंधित किताब पर पत्रवाचन के साथ औपचारिक भाषण होते हैं। ऐसे आयोजन में लेखक अपने संपूर्ण कृतित्व में वे वह चुनिंदा प्रस्तुत करता है जिसे खुद श्रेष्ठ मानता है। इसी तरह टिप्पणीकार को भी त्वरित टिप्पणी करनी होती है ऐसे में तयशुदा फार्मेट मंे बात करने की बजाय विधा की बारीकियों पर सधी हुई बात होती है। पाठकों के लिए भी यह एक अच्छा अनुभव होता है। यहां जरूरत इस बात की है कि आयोजन की निरंतरता बनी रहे और लेखक चयन में सावधानी बरती जाएं। युवा, वरिष्ठ सभी को समान अवसर मिले। ऐसे करने से यह कहने-सुनने के साथ ही सीखने-सिखाने का मंच भी बन सकेगा।
खचाखच हॉल, सुनने से जी नहीं भरा:
आयोजन के प्रति पाठकों-साहित्यप्रेमियों और साहित्यकारों की रुचि का अनुमान इसी से लगाया जा सकता है कि महारानी सुदर्शना कला दीर्घा का हॉल श्रेताओं से भरने के बाद बाहर की गैलरी में अतिरिक्त लगाई गई कुर्सियां भी भर गई। कुछ लोगों ने खड़े रहकर भी संजय की कहानी-कविताएं सुनीं। श्रोताओं मंे वरिष्ठ उद्घोषक साहित्यकार प्रभात गोस्वामी, वरिष्ठ साहित्यकार-पत्रकार हरीश बी.शर्मा, नीरज दैया, कमल रंगा, राजेन्द्र जोशी, नवनीत पांडे, अमित गोस्वामी, असित गोस्वामी, ख्यातनाम चित्रकार योगेन्द्र के.पुरोहित, पत्रकार दीपचंद सांखला, ऋतु शर्मा, गंगाबिशन बिश्नोई, डॉ.नमामी शंकर, मनीष जोशी, विप्लव व्यास आदि मौजूद रहे।
