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बीकानेर राजस्थान विश्वविद्यालय एवं महाविद्यालय शिक्षक संघ ( राष्ट्रीय ) ने राजस्थान सरकार के नवीन राजकीय महाविद्यालयों का संचालन राजस्थान कॉलेज एज्युकेशन सोसाइटी (Raj-CES) के द्वारा करने के निर्णय का कड़ा विरोध किया है। संगठन के महामंत्री डॉ. सुशील कुमार बिस्सू ने बताया कि राज्य सरकार ने हाल ही में 2020 से 2022 तक खोले गये 163 राजकीय महाविद्यालयों तथा आगे खोले जाने वाले राजकीय महाविद्यालयों को राजस्थान कॉलेज एज्युकेशन सोसाइटी के माध्यम से चलाने का आदेश प्रसारित किया है जिससे राज्य की उच्च शिक्षा का सम्पूर्ण ढांचा ध्वस्त होने की आशंका है। डॉ. बिस्सू ने बताया कि इन महाविद्यालयों एवं भविष्य में इस व्यवस्था के तहत खुलने वाले महाविद्यालयों के शिक्षक एवं कर्मचारी संविदा पर होंगे। इससे पूर्ववर्ती 300 राजकीय महाविद्यालयों में स्थायी पदों पर कार्यरत शिक्षकों एवं कर्मचारियों की सेवा-शर्तों एवं सेवा-सुरक्षा की अपेक्षा संविदा कर्मियों की सेवा शर्तें उनमें हीन भावना एवं कुंठा जागृत करेगी, जिससे महाविद्यालयों के शैक्षिक वातावरण के दुष्प्रभावित होने के साथ ही संविदा पर लगे शिक्षकों एवं कर्मचारियों का शोषण भी होगा। इन संस्थानों में प्राचार्य पद पर भी स्थायी नियुक्ति का प्रावधान नहीं है। ऐसी स्थिति में इन महाविद्यालयों का सुचारु संचालन संभव ही नहीं है। बड़ी बिडम्बना है कि उच्च शिक्षा के विकास के नाम पर गठित इस सोसाइटी के शासी निकाय (गवर्निंग बॉडी) के 10 पदों में से मात्र एक पद पर कोई कॉलेज प्राचार्य और कार्यकारी समिति (एग्जीक्यूटिव काउंसिल) के 7 पदों में से मात्र एक पद पर कोई प्राचार्य सरकार द्वारा मनोनीत होगा। इसके अतिरिक्त इस सोसाइटी में सभी सदस्य ‘ब्यूरोक्रेट्स’ ही रखे गए हैं। शिक्षा एवं शिक्षा के प्रसार के नाम पर गठित इस सोसाइटी में उच्च शिक्षा में पूरी तरह से अनुभवी और प्रशिक्षित शिक्षाविदों को नज़रअंदाज़ कर उच्च शिक्षा जैसे संवेदनशील विषय को नौकरशाही और लालफ़ीताशाही के हवाले करना निश्चित ही राज्य की उच्च शिक्षा को गर्त में ले जाने वाला कदम है।

संगठन के अध्यक्ष डॉ. दीपक कुमार शर्मा ने बताया कि इस सोसाइटी के अधीन संचालित महाविद्यालयों में प्रतिनियुक्ति पर लगे स्टाफ के अतिरिक्त स्टाफ का वेतन भी विश्वविद्यालय अनुदान आयोग के मापदण्डानुसार न होकर वित्त विभाग द्वारा निर्धारित दरों से देने का उल्लेख है, जो स्पष्टतः संविदा पर लगे कार्मिको के वित्तीय शोषण का द्योतक है। सरकार द्वारा प्रसारित आदेश में इन संस्थानों के प्रबन्धन हेतु निजी सहभागिता पर विचार स्पष्टतः राज्य सरकार की उच्च शिक्षा के निजीकरण की सोच को दर्शा रहा है। आश्चर्य है कि 2010 में वर्तमान नेतृत्व की ही सरकार ने अनुदानित निजी संस्थाओं का अनुदान बन्द करके उनके सात सौ से अधिक कॉलेज-शिक्षकों को राजकीय सेवा में लिया था और उन संस्थाओं की हजारों करोड़ की सम्पत्ति को उन निजी संस्थाओं को ही सौंप दिया था।आखिर अब सरकार एक बार फिर से उसी अन्तर्विरोध अनुदान-व्यवस्था को किस मंशा से लागू करना चाह रही है? यह समझ से परे है |

संगठन यह आगाह करता है कि सोसाइटी द्वारा कॉलेज संचालन की व्यवस्था का प्रयोग पहले भी इंजिनीयरिंग और मेडीकल कॉलेजों में असफल सिद्ध हो चुका है तो फिर वही प्रयोग उच्च शिक्षा में इतने व्यापक स्तर पर क्यों दोहराया जा रहा है ?
संगठन का अभिमत है कि उच्च शिक्षा को तदर्थवाद की ओर धकेलने वाला यह निर्णय राज्य की उच्च शिक्षा को घोर पतन की ओर लिए जाने वाला है, अतः राजस्थान विश्वविद्यालय एवं महाविद्यालय शिक्षक संघ ( राष्ट्रीय) इस सोसाइटी व्यवस्था का पुरज़ोर विरोध करते हुए राज्य सरकार से मांग करता है कि उच्च शिक्षा के हित में इस निर्णय पर पुनर्विचार करते हुए हुए छात्रों तथा शिक्षकों के लिए घोर प्रतिगामी इस आदेश को प्रत्याहरित किया जाए ।

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