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बीकानेर,21 जुलाई, 2025 को न्यू जलपाईगुड़ी रेलवे स्टेशन पर एक सामान्य दोपहर थी। ट्रेनों की भीड़, घोषणाएं और भागते हुए यात्रियों की यह गतिविधि एक ऐसे अन्जाने पहलू को झुठला रही थी जो अक्सर साफ नजर आता है – वो पहलू है मानव तस्करी। एक गुप्त सूचना पर, रेलवे सुरक्षा बल (आरपीएफ) की महिला सब इंस्पेक्टर सारिका कुमारी, आरपीएफ और राजकीय रेलवे पुलिस (जीआरपी) के अधिकारियों के साथ तुरंत हरकत में आईं। ट्रेन संख्या 13245 डाउन के कई डिब्बों में एक सिलसिलेवार, समन्वित तलाशी शुरू की गई और इस दौरान जो मिला वह चौंकाने वाला था।
भ्रमित और अपनी यात्रा के उद्देश्य के बारे में अनिश्चित 56 युवा वयस्क लड़कियों को दो व्यक्तियों – जितेंद्र कुमार पासवान और चंद्रिमा कार – द्वारा ले जाया जा रहा था, जिन्होंने दावा किया कि वे इन 56 लड़कियों को बेंगलुरु में मोटर पार्ट्स और मोबाइल फोन कंपनियों में काम करने के लिए ले जा रहे थे। उन्होंने सभी से छिपाने के लिए, लड़कियों को विभिन्न डिब्बों में फैला दिया था। पूछताछ करने पर, लड़कियां अपनी यात्रा या रोजगार के बारे में विवरण नहीं दे सकीं और यहां तक कि उनके माता-पिता भी इनके बारे में कुछ नहीं जानते थे। उनके कोच और बर्थ नंबर उनके हाथों पर स्याही से लिखे गए थे – इस बात से पता चलता है कि इस तरह के अपराध कितने व्यवस्थित हो गए हैं। तस्कर कोई भी वैध दस्तावेज दिखाने या विश्वसनीय स्पष्टीकरण देने में विफल रहे। उचित प्रक्रिया के बाद, दोनों आरोपियों को बच्चों की तस्करी से संबंधित कानून के प्रासंगिक प्रावधानों के तहत गिरफ्तार किया गया और बचाई गई लड़कियों को सत्यापन के बाद रिहा कर दिया गया।
इस सफलता के पीछे सिर्फ अधिकारियों की एक टीम नहीं थी, बल्कि एक सतर्क सुरक्षा तंत्र था जो यह सुनिश्चित करने के लिए दृढ़ था कि विशाल भारतीय रेलवे नेटवर्क – देश की जीवन रेखा – को मानव के शोषण का माध्यम न बनने दिया जाए।

जीवन की सुरक्षा में आरपीएफ की बढ़ती भूमिका
आरपीएफ के लिए, यह मौन और दृढ़ सेवा का एक और दिन था। इसकी पुरानी जिम्मेदारियों-यात्रियों की सुरक्षा सुनिश्चित करना, रेलवे संपत्ति की रक्षा करना और व्यवस्था बनाए रखना- में पिछले एक दशक में एक और भूमिका जो तेजी से अहम हो गई है। वह है मानव तस्करी की रोकथाम।
अपनी 13,000 ट्रेनों, 7,500 स्टेशनों और अनुमानित 2.3 करोड़ दैनिक यात्रियों के साथ, भारतीय रेल भारत के सुदूर कोनों को शहरी केंद्रों से जोड़ने वाला एक यातायात का एक सशक्त माध्यम है। लेकिन जो चीज इसे आवागमन के लिए एक वरदान बनाती है, वही अपराधियों को भी आकर्षित करती है, जो रेलवे प्रणाली की सामर्थ्य, पहुंच और गुमनामी का फायदा उठाकर अपने शिकारों की तस्करी करते हैं। खासकर समाज के हाशिए पर रहने वाली महिलाओं और बच्चों को नौकरी, शिक्षा या शादी के झूठे वादों का शिकार बनाया जाता है और बाल श्रम, वेश्यावृत्ति और भीख मांगने के धंधे में धकेला जाता है।
आरपीएफ यह सुनिश्चित करने में एक महत्वपूर्ण शक्ति के रूप में उभरी है कि तस्कर इस सार्वजनिक ढांचे का दुरुपयोग न करें। निरंतर खुफिया सूचनाओं पर आधारित अभियानों और सिविल पुलिस, गैर-सरकारी संगठनों और अन्य एजेंसियों के साथ समन्वय के माध्यम से, आरपीएफ ने मानव तस्करी के खिलाफ राष्ट्र की लड़ाई में खुद को एक प्रमुख हितधारक के रूप में स्थापित किया है।
*पुलिसिंग से सुरक्षा तक: तस्करी-मुक्त नेटवर्क का निर्माण*
तस्करी से निपटने में आरपीएफ की सक्रिय भूमिका रातोंरात नहीं उभरी है। इसका विकास रणनीतिक, व्यवस्थित और प्रतिबद्ध रहा है।
यह परिवर्तन 2020 में शुरू किए गए *ऑपरेशन नन्हे फरिश्ते* से शुरू हुआ, जिसका उद्देश्य खोए हुए, परित्यक्त, भागे हुए या शोषणकारी परिस्थितियों में फंसे बच्चों को बचाना था। हालांकि शुरुआत में यह अभियान नाबालिगों पर केंद्रित था, लेकिन इससे तस्करी के व्यापक तंत्र की एक झलक सामने आई – जिससे न केवल बच्चों, बल्कि महिलाओं और अन्य कमजोर वयस्कों को भी निशाना बनाने वाले नेटवर्क को खत्म करने पर संस्थागत ध्यान केंद्रित हुआ।
*नन्हे फरिश्ते* ऑपरेशन एक निर्णायक पहल साबित हुआ है जिसने पिछले साढ़े चार वर्षों में *64,000 से ज्यादा बच्चों – 43,493 लड़के और 20411 लड़कियों* – को बाल श्रम, संगठित भीख मांगने के गिरोहों और जबरन दासता से बचाया है। बचाव के बाद, बच्चों को *बाल कल्याण समितियों (सीडब्ल्यूसी)* के समक्ष पुनः मां-बाप के साथ एकीकरण या सुरक्षित संस्थागत देखभाल के लिए पेश किया जाता है, जहां *चाइल्ड हैल्प डेस्क (सीएचडी) और जिला बाल संरक्षण इकाइयों (डीसीपीयू)* का महत्वपूर्ण सहयोग मिलता है। ये कार्यक्रम *135 प्रमुख रेलवे स्टेशनों* पर शुरू किए गए हैं और इन्हें आगे और व्यापक बनाने की योजना है।
इसकी सफलता के आधार पर, आरपीएफ ने 2022 में औपचारिक रूप से *ऑपरेशन आहट (मानव तस्करी के विरुद्ध कार्रवाई)* शुरू किया, जिसके तहत भारतीय रेल नेटवर्क में *750 मानव तस्करी विरोधी इकाइयां (एएचटीयू)* बनाई जाएंगी। ये इकाइयां खुफिया जानकारी के आधार पर अभियान चलाती हैं, निगरानी अभियान चलाती हैं और गैर-सरकारी संगठनों (एनजीओ) व स्थानीय पुलिस के साथ मिलकर बचाव अभियान चलाती हैं। *राष्ट्रीय महिला आयोग और आरंभ इंडिया (एक गैर-सरकारी संगठन)* के साथ रणनीतिक समझौता ज्ञापनों पर हस्ताक्षर किए गए, जिससे क्षमता निर्माण, वास्तविक समय में सूचनाओं का आदान-प्रदान और संरचित पुनर्वास सहायता संभव हो सके।
*रणनीतिक इंटेलिजेंस और तकनीकी बढ़त: पता लगाने की प्रक्रिया*
तस्करी के खिलाफ लड़ाई अब केवल सतर्कता तक सीमित नहीं है; यह सटीकता, पूर्वानुमान और एकीकरण पर आधारित है। आरपीएफ की पता लगाने की प्रक्रिया में अब एक बहुआयामी, तकनीक के मामले में सक्षम रणनीति शामिल है जो मानवीय खुफिया जानकारी को डिजिटल निगरानी के साथ जोड़ती है।
*अग्रिम पंक्ति के रेलकर्मियों* – टिकट परीक्षकों, कुलियों, ऑन-बोर्ड हाउसकीपिंग कर्मचारियों – को खतरों को पहचानने के लिए संवेदनशील और प्रशिक्षित किया जाता है। साथ ही, डेटा एनालिटिक्स पर आधारित *सीसीटीवी सर्विलांस और एआई-आधारित चेहरे की पहचान प्रणाली (एफआरएस)* आवाजाही के पैटर्न और ज्ञात डेटाबेस के आधार पर तस्करों और संभावित पीड़ितों की पहचान करने में मदद करती है। *सोशल और डिजिटल मीडिया प्लेटफॉर्म* के इस्तेमाल ने पहचान को और भी आधुनिक बना दिया है। ट्विटर, व्हाट्सएप हेल्पलाइन और यहां तक कि क्राउडसोर्स्ड अलर्ट जैसे प्लेटफॉर्म के माध्यम से दर्ज किए गए मामलों से बचाव में मदद मिली है। यह विकसित हो रहा सर्विलांस इकोसिस्टम यह सुनिश्चित करता है कि तस्कर अब सबसे व्यस्त और सबसे अव्यवस्थित पारगमन बिंदुओं पर भी बेखौफ होकर काम नहीं कर पाएंगे।

*बचाव, गिरफ्तारियां और सुधार: मापने योग्य प्रगति, वास्तविक जीवन*
2021 से 2025 के मध्य तक 54 महीनों में, आरपीएफ द्वारा *2,912 मानव तस्करी पीड़ितों* को बचाया गया, जिनमें *2,600 से अधिक नाबालिग और 264 वयस्क* शामिल थे। इसी अवधि में, 701 तस्करों को गिरफ्तार किया गया। बल ने बांग्लादेश और म्यांमार से आए अवैध प्रवासियों की पहचान करने में भी महत्वपूर्ण भूमिका निभाई है, जिनमें से कई ऐसे तस्करी गिरोहों के शिकार थे जिन्होंने काम या शरण देने का वादा किया था। 2022 और 2024 के बीच ऐसे 580 से अधिक मामले सामने आए। ये आंकड़े केवल सांख्यिकी के लिहाज से मील के पत्थर नहीं हैं; ये ध्वस्त नेटवर्क, शोषण की टूटी हुई जंजीरों और सुरक्षित जीवन की बहाली का प्रतिनिधित्व करते हैं।
लेकिन बचाव इस समीकरण का केवल एक हिस्सा है। आरपीएफ यह सुनिश्चित करती है कि पीड़ितों को एनजीओ, सीडब्ल्यूसी और आश्रय गृहों के साथ समन्वित कार्रवाई के माध्यम से परामर्श, सहायता और पुनर्वास मिले। *मुजफ्फरपुर से सिकंदराबाद, कटिहार से अजमेर तक*, तस्करी के ज्ञात मार्ग बाधित हो गए हैं। *गोरखपुर-सिकंदराबाद एक्सप्रेस, राजेंद्रनगर-अजमेर एक्सप्रेस और न्यू जलपाईगुड़ी-अमृतसर एक्सप्रेस* जैसी ट्रेनें निगरानी का केंद्र बिंदु बन गई हैं।

*रक्षा की पहली पंक्ति के रूप में रोकथाम*
भले ही, बचाव और अभियोजन महत्वपूर्ण हैं, फिर भी रोकथाम एक प्रभावी तस्करी-विरोधी रणनीति की आधारशिला बनी हुई है। व्यापक सरकारी पहलों के साथ, आरपीएफ ने पूरे रेलवे तंत्र में एक जन-पहुंच और जागरूकता अभियान चलाया है।
रेलवे स्टेशनों पर छोटे नुक्कड़ नाटकों से लेकर पोस्टर, बैनर और स्टैंडी तक और जन संबोधन प्रणालियों और रेल डिस्प्ले नेटवर्क के माध्यम से संदेश प्रसारित करने तक, इसका उद्देश्य प्रत्येक यात्री को सतर्कता में भागीदार बनाना है। “तस्करी रोकें: क्योंकि हर बच्चा आजाद होने का हकदार है” जैसे नारे शब्दों से कहीं बढ़कर हैं – ये शोषण को पहचानने और उसकी रिपोर्ट करने की सांस्कृतिक बदलाव का हिस्सा हैं।
इसके अलावा, सामुदायिक सहभागिता-सोशल मीडिया अभियानों, स्कूलों तक पहुंच और नागरिक समाज के साथ साझेदारी के माध्यम से-को निवारक ढांचे में मुख्यधारा में लाया जा रहा है। 1098 और 112 जैसी हेल्पलाइनों का एकीकरण यह सुनिश्चित करता है कि शिकायतों पर तुरंत कार्रवाई की जा सके।
ये सभी प्रयास मिलकर पुलिस थानों को सुरक्षा क्षेत्रों में बदल रहे हैं, जो ऐसे स्थान हैं जहां तस्कर अब अदृश्य नहीं हैं और पीड़ित कभी अकेले नहीं हैं।

*साथ मिलकर, डटे रहें*
मानव तस्करी के इस विश्व निषेध दिवस पर, न्यू जलपाईगुड़ी में बचाई गई 56 लड़कियों की कहानी कोई अपवाद नहीं है – यह मानवता के सबसे गंभीर अपराधों में से एक से निपटने के लिए एक राष्ट्रव्यापी, अथक प्रयास का प्रतिबिंब है।
लेकिन तस्करी एक सक्रिय खतरा है। यह प्रगति को सक्षम करने वाली प्रणालियों में खुद को ढालती है, स्थानांतरित करती है और छुपाती है। इसलिए, चुनौती जारी है। इसके लिए निरंतर सतर्कता, अंतर-एजेंसी तालमेल, नीतिगत नवाचार और सबसे बढ़कर, एक साझा सामाजिक संकल्प की आवश्यकता है।
असल में, मानव तस्करी रोकना केवल आरपीएफ का कर्तव्य नहीं है – यह एक सामूहिक जिम्मेदारी है। और, हर बार जब कोई ट्रेन शोषण के कारण किसी की जान गए बिना स्टेशन पर रुकती है, तो हम एक सुरक्षित, स्वतंत्र भारत के एक कदम और करीब पहुंच जाते हैं।

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