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बीकानेर,परिवहन मंत्रालय के साथ ही उपमुख्यमंत्री का पद भार सम्हाले हुए डॉ प्रेम चन्द बैरवा ने विधान सभा में रोडवेज के बारे में बोल कर जैसे सम्मा ही बांध दिया और वो भी ऐसा जैसा कि उनके बोलने के साथ ही रोडवेज में अल्लादीन का चिराग” जल उठेगा और वेतन, पेंशन और टायर ट्यूब और डीजल भुगतान के लिए यदा कदा ही नहीं सर्वदा तरसने वाले रोडवेज रूपी पंखेरू के स्वर्ण पंख लग जाएंगे और यातायात रूपी नीले गगन में राजस्थान रोडवेज छा जाएगी! यही तो वो जादू हैं जो सरकार और यूनियन के नेताओं की जुबान में बसता हैं और जिससे जनता और विभाग भाव विभोर हो उठते हैं पर हाथ में “फूटी कौड़ी” भी नहीं देख पाते और उल्टे “पाई पाई” को भी तरसते रहते हैं..

अच्छा होता मंत्रीजी विधान सभा में बताते कि रोडवेज में वेतन पेंशन में विलम्ब का क्या कारण हैं और वो एवम उनकी सरकार इसे तत्काल नियमित करने जा रही हैं. वो ये बताते कि 21 माह हुए सेवा निवृत हो चुके पूर्व निगम कर्मियों के बकाया सेवानिवृति हित लाभ यथा उपदान, अवकाश नगदीकरण, अधिश्रम सहित इसी प्रकार के भुगतान सरकार तत्काल कर रही हैं और वो विभाग के मंत्री के नाते अब तक हुए विलंब के लिए खेद प्रकट भी करते ! पर नहीं ! उन्हें तो आंकड़ों का खेल जो दस बारह वर्षों से चल रहा हैं उसे दोहराना था! सो वो वही बोल कर गए जैसा अधिकारियों ने उन्हें (रटाया) बताया था. नई बसों का सब्जबाग दिखा गए .. बसें आ रही हैं.. पर जितनी बसें आनी हैं उससे कहीं अधिक बसें तो इन कथित बसों की आमद से पूर्व ही चलन से बाहर होने वाली हैं! फिर भी उन्हें धन्यवाद कि बसों की “खरीदी” को तो वो “स्वरुचि” से आश्वस्त कर ही गए.
सालाना लगभग एक हजार को रिटायर करने वाली रोडवेज का मानव संसाधन का कलेवर कभी “बाइस हजारी” हुआ करता था जो आज आधा रहने के साथ ही हर महीने मुट्ठी से रेत की तरह फिसलता जा रहा हैं और मंत्री ने अपने बजटीय अधिकारियों की कागजी कसरत के पश्चात 1650 कार्मिक लिए जाने की घोषणा की हैं और फरमान की माफिक ये भर्ती हुई भी और कोई न्यायिक विवाद नहीं भी हुआ तो भी वास्तविक कार्मिक मिलने तक इससे कहीं अधिक तो रिटायर हो चुके होंगे! आश्चर्य तो तब हुआ जब एक यूनियन ने मंत्री की शान में कशीदे पढ़े पर वे वेतन पेंशन के लिए ताइद न कर सके!
मौजूदा सताधारी दल के पिछले कार्यकाल में ये महकमा सम्हालने वाले मंत्री जी लोक परिवहन के पक्ष में बोले और जम कर अपने तर्क रखे! जानकार समझ सकते हैं कि बोल भले ही इनके मुंह से निकले हो पर यह तो सताधारी दल की ही मौलिक सोच हैं. आज नहीं तो कल अगले चार वर्षों में ये तो होना तय ही मानिए! रोडवेज बस स्टेंड पर निजी वाहन भी चलाने के लिए बस अड्डा प्राधिकरण की सक्रियता का कभी भी आहिस्ता आहिस्ता क्रियान्वयन होता दिखाई दे तो आश्चर्य मत करिएगा!

सेवानिवृतो को जरा सोचना चाहिए कि जब भी वेतन/ पेंशन जारी होने की फुसफुसाहट होती हैं तो यूनियन वाले तारीख बदली कर एक पुराना पत्र वित्तीय सलाहकार को थमा आते हैं कि वेतन पेंशन का भुगतान करो और एक माह का सेवानिवृति वाला भुगतान भी करो! दूसरे तीसरे दिवस जब वेतन पेंशन का भुगतान हो जाता है तो एक विज्ञप्ति आ जाती हैं कि ये भुगतान हमारे पत्र के दबाव के कारण हुआ हैं.

आंसू तमाम शहर की आंखों में है मगर
हाकिम बता रहा हैं, सब कुछ ठीक ठाक हैं!

पर अफसोस! कभी भी 21 माह से बकाया हो रहे सेवानिवृति भुगतान के नाम पर वापस नहीं बोलते. बस “कागज” दिया और फ्री..

रोडवेज से रिटायर हो चुके बकाया भुगतान वालों को अब समझ लेना चाहिए कि उनके हिस्से की लड़ाई उनको खुद को ही लड़नी पड़ेगी नहीं तो ये बकाया रहने वाला भुगतान इस बार पिछले समय के लगभग पांच वर्षों तक भुगतान नहीं करने के रिकार्ड को अवश्य तोड़ेगा!..

आंसू निकले तो खुद ही पोंछना
दूसरे पोछेंगे तो ,सौदा होगा!

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