बीकानेर,विकेंद्रीकरण की बजाय केंद्रीयकृत ज्यादा, जोनल स्तर से बंद कर कई काम जयपुर में होने से बढ़ेगी व्यापारी वर्ग की दिक्कत, विवादों के कोर्ट तक पहुंचने की संभावनाएं भी ज्यादा।
– विभाग के महत्वपूर्ण काम को निजी कंपनी के हाथों में सौंपने से व्यापार की गोपनीयता भंग होने की आशंका।
-टैक्सपेयर्स केयर युनिट का गठन तो किया है, लेकिन मौजूदा जीएसटी पोर्टल पर भी केंद्र सरकार द्वारा बनाई गई हेल्प डेस्क भी व्यवहारियों की समस्याओं का निराकरण करने में विफल ही रही है। उन परेशानियों को स्टेट टैक्स डिपार्टमेंट के संभाग मुख्यालयों पर स्थित कार्यालयों के जरिए ही हो रहा है।
– रेवेन्यू कलेक्शन के लिए स्टेट टैक्स डिपार्टमेंट की महत्वपूर्ण शाखाएं जैसे बिजनेस ऑडिट, एनफोर्समेंट विंग, बिजनेस इंटेलिजेंस युनिट को केंद्रीकृत करके जयपुर में रखने से टैक्स चोरी की घटनाएं तो बढ़ेगी ही, साथ ही साथ ईमानदार करदाताओं के हित भी प्रभावित होंगे।
– प्रदेश के क्षेत्रफल व क्षेत्रवार व्यवहारियों की संख्या के अनुपात में नए पद सृजन में भी तर्कसंगत बढ़ोतरी नहीं। रीस्ट्रक्चरिंग के बाद सामान्य घटों को ही ऑडिट और करचोरी रोकने की गतिविधियाँ करना है जबकि वो पहले से ही ज़्यादा संख्या में करदाता होने से अन्य राजस्व कार्यों बोझ में है। प्रत्येक अधिकारी के पास फ़ाइल की संख्या कम करके अधिकारियों की संख्या में वृद्धि करनी चाहिए थी। ये समस्त कार्य घट स्तर पर कर पाना असम्भव है।
– केंद्र सरकार ने रिस्ट्रक्चरिंग की प्रक्रिया में देश के प्रमुख व्यापारिक व टैक्स प्रैक्टिशनर्स एसोसिएशन के प्रतिनिधियों को कमेटी में जोड़ लिए थे सुझाव, राजस्थान में किसी से चर्चा तक नहीं की।
– पंजीयन जैसे काम को भी मुख्यालय स्तर पर केंद्रीकृत करने से व्यापारियों को हर छोटी-बड़ी समस्या के निराकरण के लिए जाना पड़ेगा जयपुर
– बिजनेस ऑडिट युनिट को भी सभी क्षेत्रीय स्तर से खत्म कर जयपुर में केंद्रीकृत करने का निर्णय भी तर्कसंगत नहीं, क्योंकि बिजनेस ऑडिट में चयनित व्यापारियों को बार-बार भारी भरकम रिकॉर्ड लेकर जयपुर जाना पड़ेगा।
– राज्य में क़म सेक़म पाँच लाख करदाता है। यदि धारा 65 के तहत न्यूनतम 5% की ऑडिट भी प्रस्तावित हो तो 25000/- करदाता की ऑडिट करनी होगी। नई व्यवस्था ऑडिट केंद्रिकृत है जिसमें 18 टीम मुख्यालय में बड़े करदाता की ऑडिट करेगी। यदि मुख्यालय न्यूनतम 10000/- करदाता की ऑडिट करे तो यह कैसे सम्भव होगा? पदों कम सृजन और सृजित पद मुख्यालय पर होने से व्यवहरियों को असीम समस्याओं का सामना करना होगा। क्या करदाता मुख्यालय के चक्कर ही काटेगा या अपना व्यापार करेगा? ऑडिट बेहद लम्बी प्रक्रिया है और इसमें सभी दस्तावेज जाँच आवश्यक है लेकिन प्रावधान अनुसार ऑडिट को वर्तमान व्यवस्था से कैसे सम्भव होगा? लोकतांत्रिक राज्य में यह निर्णय प्रतिगामी है।
– रोड चैकिंग के मामलों में सुनवाई के लिए संबंधित व्यापारी को औसतन 5 बार, तो सर्वे के मामलों में औसतन 10 से 15 बार विभागीय अधिकारियों के समक्ष अपना पक्ष रखने या अधिकारियों द्वारा चाही गई सूचनाएं पेश करने के लिए जाना पड़ता है। यही व्यवस्था केंद्रीकृत होने से व्यवहारियों को जयपुर जाना पड़ेगा, जो आसान नहीं होगा।
क्या होना चाहिए था:
१. प्रगतिशील राज्य अनुसार एक विकेंद्रीकृत और करदाता सुविधा उन्मुखि व्यवस्था होनी चाहिए थी।
२. कर व्यवस्था राज्य की प्रगति का आधार है और बेहतर कर व्यवस्था हो जिसमें सही काम करने वाले करदाता के साथ धोखा ना हो । राज्य करचोरी पर प्रभावी नियंत्रण कर सके। अत: नियंत्रण के लिए एंटीएवेजन की विकेंद्रीकृत व्यवस्था हो । वर्तमान व्यवस्था के साथ प्रत्येक ज़ोन में एंटीएवेजन के लिए कम से एक CTO और तीन ACTO हो।
३. प्रत्येक 500 करदाता पर एक अधिकारी हो ताकि राजस्व का प्रभावी पर्यवेक्षण कर सके । अतः इस अनुपात में अधिकारियों की संख्या बढाई जानी चाहिए थी। GST से पूर्व में सिर्फ़ वस्तुओं पर राज्य कर वसूल करता था अब GST ने सेवाये भी कर दायरे में आयी है अतः करदाताओं की संख्या में अप्रत्याशित वृद्धि हुई है जबकि अधिकारियों की संख्या में पूर्व दस वर्ष में कोई वृद्धि नहीं की गयी जिसका निस्सन्देह प्रतिकूल प्रभाव होगा ।सामान्य घटों की संख्या को बढ़ाया जाना चाहिए।
४. ऑडिट GST का आधार है और ज़ोन स्तर पर ऑडिट को और सशक्त करना चाहिए था क्योंकि वैट काल की तरह कोई नियमित कर निर्धारण की व्यवस्था ना होने से ऑडिट ही एकमात्र कर दायरे को बनाये रखने का तरीका है । यदि प्रत्येक ज़ोन में मात्र एक ACTO और एक CTO ऑडिट का होगा तो ओसतन 50000 प्रत्येक ज़ोन में पत्रावली होती है । जिसमें यदि 5% की ऑडिट की जाए तो भी एक ACTO एक CTO इन 2500 पत्रावली की ऑडिट कभी नहीं कर पाएगा । यदि अत्यल्प ऑडिट होगी ।
५. पंजीयन: वर्तमान में पंजीयन का प्रभारी ACTO के पास है और प्रत्येक वार्ड में न्यूनतम 5 आवेदन रोज़ आते है। यदि इसे राज्य स्तर पर सोचे तो प्रत्येक दिन न्यूनतम 2000 आवेदन आएँगे जिसे मात्र एक CTO और 6 ACTO को सम्पादित करना है । यह कैसे सम्भव है कि इतने बड़े कार्य को निर्बाध किया जा सकेगा? साथ ही, करदाता के लिए कितना मुश्किल होगा कि वो अपनी किसी सद्भावपूर्ण बात को कहने के लिए जयपुर जाए। अतः पंजीयन के लिए प्रत्येक ज़िले में पृथक से एक CTO और एक ACTO की टीम होनी चाहिए ।