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बीकानेर। देशभर में हो रहे लकवे के शिकार मरीजों पर शोध किया जाएगा। इसके बाद लकवे के कारण व उसके प्रभाव का अध्ययन कर इलाज के बेहतर उपयोग तलाशे जाएंगे। अखिल भारतीय आयुर्विज्ञान संस्थान (एम्स) की ओर से इमपेटस स्ट्रोक नामक प्रोजेक्ट शुरू किया गया है। यह प्रोजेक्ट दो साल तक चलेगा। प्रोजेक्ट के तहत देशभर के करीब 22 सेंटर पर लकवे के ग्रसित मरीजों का डेटा संग्रहित कर रिसर्च की जाएगी। एसपी मेडिकल कॉलेज में इस प्रोजेक्ट के तहत न्यूरो लॉजिस्ट सह आचार्य डॉ. इन्द्रपुरी के नेतृत्व में रिसर्च होगी।
यह होगा काम

प्रोजेक्ट के तहत अस्पताल में आने वाले लकवे के मरीजों का डेटाबेस तैयार किया जाएगा। लकवे के कारणों का पता करेंगे। साथ ही लकवा ग्रसित मरीज की अस्पताल में भर्ती होने से लेकर डिस्चार्ज के तीन माह तक पूरा विवरण दर्ज किया जाएगा। लकवा का अटैक आने के बाद से ठीक होने तक क्या-क्या असर हुआ। मरीज कितना ठीक हुआ। यह काम 22 सेंटरों तीन माह तक लगातार होगा। इसके बाद हर छह माह में दिल्ली से टीम आएगी जो मरीजों की रिपोर्ट का विश्लेषण करेंगी।

इसलिए पड़ रही जरूरत

देश में प्रतिवर्ष 15.16 लाख लोग इसकी चपेट में आते हैं। लकवे के कारण हर साल करीब सात से आठ लाख लोगों की मौत हो जाती है। इन मौतों पर अंकुश लगाने के लिए एम्स दिल्ली की विख्यात प्रोफ़ेसर और विभागाध्यक्ष पद्मश्री डॉ. पद्मा श्रीवास्तव तथा प्रोफ़ेसर डॉ. रोहित भाटिया के नेतृत्व में डिपार्टमेंट ऑफ हेल्थ रीसर्च की ग्रांट इन एड (जीआईए स्कीम) के वित्तपोषण से यह प्रोजेक्ट शुरू किया जाएगा।

हर माह जा रही 12 मरीजों की जान
उपलब्ध आंकड़ों के आधार पर पीबीएम अस्पताल में हर माह लकवे के शिकार होकर 38 से 40 मरीज पहुंचते हैं जिनमें से औसत: 12 मरीजों की इलाज या डिस्चार्ज के बाद मौत हो जाती है। इनमें अमुमन 15 प्रतिशत ब्रेन हेमरेज और 85 प्रतिशत खून का थक्का जमने से होने वाली स्ट्रोक के रोगी शामिल हैं।

किया जाएगा जागरूक

डॉण् पुरी बताते हैं कि एम्स के इस दो साल के प्रोजेक्ट के तहत मरीजों की पूरी हिस्ट्री संधारित करने के साथ-साथ मरीज़ के तीमारदारों और चिकित्सकों.नर्सिंगकर्मियों को जागरूक व शिक्षित किया जाएगा। पीबीएम अस्पताल टर्सरी केयर सेंटर है यहां पर एज्युकेशन भी होना बेहद जरूरी है।

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