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बीकानेर,री’ट लेवल-2 आखिरकार रद्द हो गई जबकि रीट लेवल-1 यथावत रखी गई है। दोनों परीक्षा एक ही दिन हुई। पेपर एक ही जगह रखे गए थे। परीक्षा करवाने वाले कर्मचारी भी एक ही थे। और तो और, दोनों परीक्षाएं करवाने के जिम्मेदार भी एक ही थे। इन तमाम समानताओं के बावजूद सरकार ने माना कि धांधली हुई लेकिन वह लेवल-2 में ही हुई। अब धांधली का आधार क्या है? वह कहां-कहां हुई? कितने लोग इसमें शामिल थे? जो पकड़े गए उनके तार कहां-कहां से जुड़े थे? इसके मुख्य सूत्रधार कौन थे? ये सवाल एक तरह से अभी तक अनुत्तरित ही हैं। परीक्षा निरस्त होने से लाखों अभ्यर्थियों के न केवल सपने टूटे हैं, बल्कि उनको इस मामले के अंतिम सच का पता भी नहीं चल सका है। इस धांधली का जांच के बाद जो सच अभी तक सामने आया है वह केवल इतना ही है कि यह पेपर तीन सौ लोगों तक पहुंचा और सरकार ने इसकी पड़ताल करते हुए 40 गिरफ्तारियां कीं, बोर्ड अध्यक्ष को बर्खास्त किया तथा सचिव सहित ‘तीन जनों को निलंबित किया।

परीक्षा रद्द होने से यही साबित होता है कि चंद बेईमानों की करतूत की सजा लाखों ईमानदारों को मिल गई। ईमानदारों का दर्द दो तरह का है एक तो उनको बिना कुछ किए ही सजा भी मिली और दूसरी यह कि गलत काम करने वाले असली सूत्रधारों का पता नहीं चला। इधर पैसे देकर पेपर खरीदने वालों की हालत तो. सांप छछूंदर जैसी है। वे न तो किसी के सामने रो सकते और न ही हंस सकते। और तो और जैसी आशंका है कि तीन सौ के अलावा जहां-जहां जिन-जिन के पास पेपर पहुंचा, वे भी अब कुछ बताने से रहे। हां, कुछ अंकों से पिछड़ने वाले जरूर मुस्करा सकते हैं कि उनको इस बहाने एक मौका और मिल जाएगा।

अब इस मामले में जो सियासत हो रही है उसका तो कहना ही क्या? आरोप-प्रत्यारोप का खेल चरम पर है। पक्ष एसओजी की जांच से संतुष्ट है तो विपक्ष चाहता है कि मामले की जांच सीबीआई से कराई जाए। वैसे बिना जांच किए आरोपों की हकीकत सामने आखिर आएगी भी कैसे? बहरहाल, सरकार ने आनन-फानन में परीक्षा रद्द कर भले ही पारदर्शी शासन का संदेश देना चाहा हो लेकिन आम जनता एवं अभ्यर्थियों के मन में यह सवाल जरूर कौंधता रहेगा कि लेवल-2 की परीक्षा में गड़बड़ी हुई तो लेवल-1 को क्लीन चिट कैसे मिली?

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