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बीकानेर,हिजरी सन् मुस्लिम कैलेंडर का नौवां महीना रमज़ान शरीफ़ का महीना कहलाता है। इस्लाम के पॉंच सुतून(महत्वपूर्ण स्तंभ) होते हैं, जिनमें कलमा, नमाज़, रोज़ा, ज़कात और हज शामिल है। रमज़ान शरीफ़ के महीने में रखे जाने वाले रोज़े इस्लाम का एक ख़ास सुतून है। रमज़ान शरीफ़ के इस मुक़द्दस महीने में अल्लाह तआ़ला की रहमत की घटाएं झूम झूम कर बरसती है। इस पाक महीने में अल्लाह तआ़ला के नेक बंदे पूरे महीने (29 या 30 दिन) तक रोज़े रखकर अपने रब को राज़ी करने का काम करते हैं। हर तंदुरुस्त और सेहतमंद बालिग मुसलमान पर रोज़े रखना फ़र्ज़ है। रोज़ा एक छुपी हुई इबादत है, जिसका तअ़ल्लुक मौला और उसके बंदे के बीच होता है। हर रोज़ेदार अल्लाह की रज़ा के लिए सुबह सादिक़(सूरज निकलने के पहले) से लेकर शाम को मग़रिब के वक़्त (सूरज डूबने तक) न सिर्फ भूख और प्यास की शिद्दत को ख़ुशी ख़ुशी सहन करता है बल्कि अपने मन की तमाम ख़्वाहिशों को भी अपने क़ाबू में कर लेता है। रोज़ा सिर्फ भूखे-प्यासे रहने का नाम नहीं है बल्कि शरीर के हर अंग का रोज़ा होता है। जैसे दिमाग़ का रोज़ा यह होता है कि वह ग़लत ख्याल अपने तसव्वुर में भी नहीं लाए, किसी के बारे में न तो बुरा सोचे और न ही किसी का बुरा करे। ज़बान का रोज़ा यह होता है कि ज़बान से कोई ग़लत लफ़्ज़ नहीं बोले जाएं, कान का रोज़ा यह होता है कि कान से कोई ग़लत बात नहीं सुनी जाए, आंख का रोज़ा यह होता है कि आंख से कोई ग़लत या बुरी चीज़ न देखी जाए। हाथ का रोज़ा यह होता है कि हाथों से कोई ग़लत काम न किया जाए और पॉंव का रोज़ा यह होता है कि पॉंवों से किसी ग़लत जगह पर नहीं जाया जाए। भूखा प्यासा रहना तो फिर भी आसान है लेकिन अपने मन को क़ाबू में रखना बहुत मुश्किल है और रोज़ेदार यह काम अल्लाह की रज़ा के लिए बख़ूबी करता है, इसलिए रोज़े का सवाब अल्लाह तआ़ला हर रोज़ेदार को भरपूर देता है।
रोज़ा सही मायनों में एक बहुत बड़ी तपस्या है, जिसमें अपने अल्लाह को मनाने के लिए रमज़ान शरीफ के महीने में मोमिन हर वक़्त अल्लाह की इबादत में मशगूल रहते हैं।
रमज़ान शरीफ़ में लोग कसरत से नमाज़ें पढ़ते हैं, रोज़े रखते हैं और अपना ज़ियादातर वक़्त ज़िक्रो-तस्बीह में बिताते हैं। घर घर में बच्चे, बूढ़े, जवान और औरतें तिलावते-कलामे-पाक करते हैं। कलाम पाक पढ़ने और रोज़े रखने की वजह से रोज़ेदारों के घरों में रहमतों एवं बरकतों का नुज़ूल होता है। रोज़ेदारों पर अल्लाह तआ़ला का कितना बड़ा करम है कि इस महीने में हर इबादत का 70 गुना सवाब(पुण्य)मिलता है।
रमज़ान शरीफ़ और रोज़ों के बारे में कुछ ख़ास बातें आप सबके सामने पेश करने जा रहा हूं-
*1.) रमज़ान शरीफ़ के अशरे*:-
रमज़ान शरीफ़ के तीन अशरे होते हैं। पहला अशरा ‘रहमत’ दूसरा अशरा ‘मग़फ़िरत’ और तीसरा अशरा ‘जहन्नुम से आज़ादी’ होता है। शुरुआती दोनों अशरे दस-दस दिन के होते हैं और आख़री अशरा नौ या दस दिन का होता है। मग़फ़िरत के अशरे में आने वाला 14वां रोज़ा मंझला रोज़ा कहलाता है। वैसे तो रमज़ान शरीफ़ का चांद नज़र आने से लेकर ईद का चांद नज़र आने तक हर अशरे में इबादतों की धूम होती है मगर तीसरे अशरे की 5 ख़ास रातें 21वीं, 23वीं, 25वीं, 27वीं और 29वीं होती है, जिन्हें लैलतुल क़द्र यानी क़द्र वाली रात कहा जाता है।
*(अ) लैलतुल क़द्र* :-
जैसा कि ऊपर बताया गया है कि लैलतुल क़द्र क़द्र वाली रात को कहते हैं। अल्लाह तआ़ला ने क़ुरआ़न शरीफ़ में सूरह क़द्र में फ़रमाया है कि लैलतुल क़द्र एक ऐसी रात है जिस में इबादत करने का सवाब हज़ार महीनों की इबादत करने से भी ज़ियादा मिलता है। रमज़ान शरीफ़ के आख़िरी अशरे ‘जहन्नुम से आज़ादी’ की पांच रातों में से एक रात लैलतुल क़द्र की रात होती है। इस रात को अल्लाह तआ़ला की किताब क़ुरआ़न शरीफ़ को हज़रत जिब्रील अलैहिस्सलाम के ज़रिए उतारा गया था। जो इस्लाम के आख़री पैग़म्बर हजरत मोहम्मद मुस्तफ़ा सल्लल्लाहो अलैही वसल्लम के पास अल्लाह तआ़ला की तरफ से वही लेकर आते थे। इस रात में इबादत करने वालों के हक़ में दुआ़एं करने के लिए आसमान से फ़रिश्ते ज़मीन पर उतर आते हैं और अल्लाह तआ़ला से सभी इबादत करने वाले नेक बन्दों के हक़ में ख़ूब ख़ूब दुआएं करते हैं और उस मालिक-ए-हक़ीक़ी के दरबार में ये दुआ़एं क़बूल होती हैं। लैलतुल क़द्र की इन पांच रातों में 27वीं रात को सबसे आला मुक़ाम हासिल है। 27वीं शब को मस्जिदों एवं घरों में कलाम पाक मुकम्मल किया जाता है। 27वीं शब को दरूद भेजकर और फ़ातिहा लगाकर अपने घर और खा़नदान के जो अफ़राद गुज़र चुके हैं, उनकी मग़फिरत और बुलंद दर्जात के लिए दुआ़एं की जाती हैं।
*2.) तरावीह की नमाज़*:-
रमज़ान शरीफ़ के महीने में की जाने वाली इबादतों में तरावीह की नमाज़ को ख़ास मुक़ाम हासिल है। रमज़ान शरीफ़ में रमज़ान शरीफ़ का चांद नज़र आने वाली रात से लेकर रमज़ान शरीफ़ की आख़री रात तक एक ख़ास नमाज़ अदा की जाती है जिसे तरावीह की नमाज़ कहते हैं। तरावीह की नमाज़ में हर रात ईशा की नमाज़ के साथ 20 रकात नमाज़-ए-तरावीह अदा की जाती है। तरावीह की नमाज़ में हाफ़िज़ साहब द्वारा क़ुरआ़न शरीफ़ सुनाया जाता है, जिसे रमज़ान शरीफ़ की 27वीं शब को मुकम्मल किया जाता है। हर मुसलमान को तरावीह की नमाज़ ज़रूर पढनी चाहिए।
*3.)सदक़-ए-फ़ितर*:-
रमज़ान शरीफ़ के महीने में ईद की नमाज़ से पहले पहले हर मुसलमान के लिए सदक़-ए-फितर अदा करना लाज़िम है। सदक़-ए-फ़ितर के तौर पर परिवार के हर सदस्य के नाम से किसी ग़रीब या ज़रूरतमंद व्यक्ति को 1 किलो 633 ग्राम गेहूं या उसके बराबर राशि सदक़-ए-फ़ितर के रूप में देना ज़रूरी होता है।
*4.) ज़कात*:- ज़कात एक ऐसे दान को कहते हैं जो हर मुसलमान के लिए अपनी सालाना आय का चालीसवां हिस्सा या’नी ढाई परसेंट देना ज़रूरी होता है। ज़कात देना
हर साहिबे-निसाब मुसलमान के लिए ज़रूरी है। साहिबे-निसाब का मतलब किसी ऐसे व्यक्ति से है जिसके पास साढे सात तोला सोना या साढे बावन तोला चांदी या इन दोनों को मिलाकर उतनी रकम हो जो साढे सात तोला सोना या साढे बावन तोला चांदी के बराबर बैठती हो,या फिर पास में इतनी रकम जमा हो जिसकी मिक़दार ऊपर बताई गई तादाद के बराबर बैठती हो। ऐसे व्यक्ति को साहिबे-निसाब कहा जाता है और उस पर ज़कात देना फ़र्ज़ है।
*5.)ऐतकाफ़*:-
रमज़ान शरीफ़ के महीने में की जाने वाली इबादतों में ऐतकाफ़ भी एक विशेष तरह की इबादत है। जिसमें रमज़ान शरीफ़ के आख़री अशरे के 9 या 10 दिन तक रमज़ान शरीफ़ की 21वीं शब से लेकर ईद का चांद नज़र आने तक मोहल्ले या शहर के किसी शख़्स द्वारा मुहल्ले की मस्जिद में रहकर एक विशेष तरह की इबादत की जाती है, जिसे ऐतकाफ़ कहते हैं। ऐतकाफ़ करने वाला शख़्स मस्जिद के किसी हिस्से में दिन रात अल्लाह की इबादत करके अपना वक़्त बिताता है। इस इबादत का सवाब बहुत ज़ियादा बताया गया है। किसी मोहल्ले के किसी एक शख़्स द्वारा ऐतकाफ़ की इबादत करने पर अल्लाह तआ़ला की तरफ से पूरे मोहल्ले की हिफ़ाज़त की जाती है।
*6.)जुमातुल-विदा*:-रमजान शरीफ के महीने में आने वाले आख़री जुम्मे को जुमातुल-विदा कहा जाता है। जुम्मे को वैसे भी छोटी ईद कहा जाता है। आख़री जुम्मे को की जाने वाली इबादत के रूप में नए कपड़े पहन कर अल्लाह की इबादत के लिए मस्जिद में जाकर जुम्मा की नमाज़ अदा की जाती है।
रमज़ान शरीफ़ अल्लाह तआ़ला की तरफ से मुसलमानों को अता किया गया एक ऐसा पाक महीना है जिसमें हर पल अल्लाह की रहमतों और बरकतों की बरसात होती रहती है। हमें रमज़ान शरीफ़ के महीने का पूरा पूरा अहतराम करना चाहिए। हमें इस महीने रोज़े रखने के साथ-साथ कसरत से नमाज़ें भी अदा करनी चाहिए। साथ ही तरावीह की नमाज़, जुमातुल-विदा की नमाज़, 27वीं शब को होने वाली नमाज़ और तरावीह के साथ-साथ रोज़ाना होने वाली पांच वक़्त की नमाज़ें भी बा-जमाअत अदा करनी चाहिए। इसके अलावा ग़रीबों,यतीमों और ज़रूरतमंदों को ज़कात, फ़ितरा और ख़ैरात देकर उनकी इमदाद करके एक अच्छे और सच्चे इंसान होने का फ़र्ज़ निभाना चाहिए। रमज़ान शरीफ़ की फ़ज़ीलतें बेशुमार हैं । आख़िर में माहे-रमज़ान की आमद पर कहे गए ख़ाकसार के इन अशआ़र के साथ अपनी बात को ख़त्म करना चाहूंगा-
आलम को हों रहमत के ये अय्याम मुबारक
रमज़ान की हर सुब्ह हरिक शाम मुबारक

इस माहे-मुबारक के हरिक पल का है पैग़ाम
बा’द इसके भी करते रहो हर काम मुबारक

इस माह में है जोश में अल्लाह की रहमत
मौला की रज़ा का है ये इनआ़म मुबारक

बेकार की बातों से ज़बाँ रोक के अपनी
अल्लाह का लेना है सदा नाम मुबारक

जो प्यास की शिद्दत पे यहाँ सब्र करेगा
कौसर से वहाँ पाएगा वो जाम मुबारक

आया जो हिलाल आज नज़र हम को फ़लक पर
यूँ समझो के रहमत का है पैग़ाम मुबारक

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