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बीकानेर,लूणकरणसर,मैं कतरा गंग नहर का हूं जो सबकी प्यास बुझाता है, मैं खुशबू ताजे फूलों की जो बिछुड़ा प्रेम मिलाता है, स्वर्ण सरीखे धोरों वाली उजली एक कहानी हूं, दिल में हिंदुस्तान संभाले मैं एक राजस्थानी हूं.!’ राजूराम बिजारणियां की कविता से निकलकर यह पँक्तियां मंच से श्रोताओं तक पहुँची तो श्रोताओं ने तालियों से स्वागत किया। अवसर था राजस्थान के अलवर स्थित निर्वाणवन फाउंडेशन में भारत परिवार के तीन दिवसीय राष्ट्रीय सम्मेलन में आयोजित कवि सम्मेलन का। जिसमें लूणकरणसर उपखंड के राजूराम बिजारणियां ने शिरकत की। बिजारणियां ने ‘तेज तपिश में छाँव सी, भरी ठण्ड में धूप। बीवी, बहना, बेटियां, कितने तेरे रूप।’ तथा ‘मिलो ना कभी फिर उसी मोड़ पर।’ इत्यादि गीत सुनाकर श्रोताओं का मन मोहा वहीं श्रीगंगानगर के संदेश त्यागी ने ‘तरकी संकरी गलियों में आकर हार जाती है, जहां तक कार जाती है वहीं सरकार जाती है’ ग़ज़ल को ‘सभी कुछ जीत सकता है किसी की आंख का आंसू, जहां तक यह पहुंचता है, कहां तलवार जाती है।’ शेर के साथ मुक़म्मल किया और खूब दाद पाई। त्यागी ने ‘थमाकर हाथ में पानी की बोतल यह कहा उसने, कि पैसे प्यास के होते है, पानी के नहीं होते।’ शेर से श्रोताओं का दिल जीता। इस दौरान अलवर और अलवर के बाहर से आए कवियों ने अपनी कविताओं से बदलती परिस्थितियों पर करारा व्यंग्य किया। वहीं उत्तराखंड से आई कवयित्री प्रियंका ने अपनी कविताओं से भारत परिवार को जोड़ने का प्रयास किया साथ ही उनके कार्यों को आमजन की पीड़ा को समझने वाला बताया। भारत परिवार के वीरेन्द्र सिंह ने सभी का स्वागत किया। सरिता भारत ने आयोजन के उद्देश्यों पर प्रकाश डाला। कार्यक के दौरान रचनाधर्मियों का माल्यार्पण द्वारा अभिनंदन किया गया।

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