बीकानेर ,राजस्थान के सीकर जिले में शनिवार को गैंगस्टर राजू ठेहट की हत्या कर दी गई।पांच-छह बदमाशों ने राजू को उसके घर के पास ही गोली मार दी। लॉरेंस बिश्नोई गैंग के रोहित गोदारा ने इस हत्याकांड की जिम्मेदारी ली है। रोहित गोदारा ने राजू ठेहट की हत्या को आनंदपाल और बलबीर की हत्या का बदला बताया है।
राजू ठेहट सीकर का रहने वाला था। वह लग्जरी लाइफ जीने का शौकीन था। उसके पास कई महंगी गाड़ियां और बाइकें भी थी। बताया जा रहा है कि राजू ठेहट बिना नंबर की फॉर्च्यूनर गाड़ी में रहता था। उसकी तीन गनमैन लगे हुए थे जो हमेशा उसके साथ रहते थे। गैंगस्टर राजू का अपराधा की दुनिया में बड़ा नाम था, आसपास पास के इलाके में उसका खौफ था।
अब वह अपने वर्चस्व को और बढ़ाना चाहता था, इसके लिए उसने राजनीति में आने की प्लानिंग की थी। बीतें दिनों हुए छात्र संघ चुनाव में भी वह एक्टिव नजर आ रहा था। राजस्थान विश्वविद्यालय के छात्र संघ अध्यक्ष निर्मल चौधरी के साथ उसकी सोशल मीडिया पर कई तस्वीरें भी हैं। राजू ठेहट चाकसू विधानसभा यूथ कांग्रेस अध्यक्ष कैलाश चौधरी और महेश नगर के पूर्व भाजपा विधायक प्रेम सिंह बाजोर का भी करीब बताया जा रहा है। उसने नेताओं की तरह कपड़े पहनना भी शुरू कर दिए थे। हालांकि, राजनीति में कदम रखने से पहले ही उसकी हत्या कर दी गई।लॉरेंस बिश्नोई गैंग के रोहित गोदारा ने राजू ठेहट की हत्या की जिम्मेदारी ली है। इसके पीछे की दुश्मनी सालों पुरानी है। दरअसल, राजू ठेहट और आनंदपाल के बीच की दुश्मनी के कारण शेखावटी की जमीन पर कई गैंगवार हुए। राजू ठेहट ने 1995 के दौर में अपराध की दुनिया में कदम रखा था। उस समय भाजपा की भैरोसिंह सरकार संकट में थी। राजस्थान में राष्ट्रपति शासन लागू था। सीकर का एसके कॉलेज शेखावाटी के राजनीति का केंद्र था। इसी कॉलेज के एबीवीपी के कार्यकर्ता गोपाल फोगावट शराब के धंधे से जुड़ा हुआ था। उसके संरक्षण में राजू ठेहट भी शराब का अवैध कारोबार करने लगा।
भेभाराम हत्याकांड के बाद सीकर में शुरू हुई गैंगवार
गोपाल फोगावट के संरक्षण में राजू का दबदबा कायम होने लगा। इसी दौरान उसकी मुलाकात दूध का व्यापार करने वाले बलबीर बानुडा से हुई। राजू का सीकर में दबदबा और पैसा देखकर बलबीर बानूडा का भी लालच जगा। उसने राजू के साथ कारोबार करने की मंशा जाहिर की। जिसके बाद राजू ठेहट के साथ मिलकर शराब का कारोबार करने लगा। साल 1998 में बलबीर बानुडा और राजू ठेहट ने मिलकर सीकर में भेभाराम हत्याकांड को अंजाम दे दिया। यहीं से शेखावाटी में गैंगवार की शुरुआत हो गई। 1998 से लेकर 2004 तक बानुडा और राजू ठेहट ने शेखावाटी में शराब के अवैध कारोबार के बादशाह बन बैठे। अगर कोई इस धंधे में शामिल उनकी जी हजूरी नहीं करता तो दोनों उसे रास्ते से हटा देते।
बलबीर बानुडा से दोस्ती दुश्मनी में बदली
2004 में राजस्थान मे शराब के ठेकों की लॉटरी निकाली गई। जिसमें जीण माता में शराब की दुकान राजू ठेहट और बलबीर बानुडा को मिली। दुकान शुरू हुई और उस पर बलबीर बानुडा का साला विजयपाल सेल्समैन के तौर पर रहने लगा। दिनभर में हुई शराब की खपत का हिसाब शाम को विजयपाल बानुडा और ठेहट दोनों को देता था। दुकान से जिस प्रकार की बचत राजू ठेहट चाहता था, वह बचत उसे मिल नहीं रही थी। ठेहट को शक हुआ कि विजयपाल दुकान की शराब बेचने की बजाय ब्लैक में शराब बेचता है। इसी बात को लेकर राजू ठेहट और विजयपाल में कहासुनी हो गई। जिसके बाद राजू ठेहट ने अपने साथियों के साथ मिलकर विजयपाल की हत्या कर दी। विजयपाल की हत्या के बाद राजू ठेहट और बलबीर बानुडा की दोस्ती अब दुश्मनी में बदल गई। बलबीर बानुडा अब अपने साले विजयपाल की हत्या का बदला लेने पर उतारू हो गया।बानूडा से दुश्मनी और सीकर गोलियों से दहलने लगा
राजू ठेहट पर गोपाल फोगावट का हाथ था। इसलिए बलबीर बानुडा का ठेहट से बदला लेना इतना भी आसान नहीं था। बदला लेने के लिए बलबीर बानुडा ने नागौर जिले के सावराद गांव के रहने वाले आनंदपाल सिंह से हाथ मिलाया। राजू ठेहट आर्थिक रूप से आनंदपाल और बलबीर बानुडा के मुकाबले मजबूत था। बदला लेने के लिए आर्थिक रूप से भी मजबूत होना बेहद जरूरी था। इसलिए आनंदपाल और बलबीर बानुडा ने शराब और माइनिंग का कारोबार शुरू किया। जिसमें दोनों को फायदा भी मिला और इसी क्रम में चलते-चलते अपनी गैंग को भी मजबूत बना लिया। दोनों गैंग के गुर्गों के बीच लगातार गैंगवार होती रही और दोनों तरफ खून की नदियां बहती रही।
आनंदपाल और बलबीर ठेहट की शराब को ट्रकों को लूट लेते
राजू का शराब का कारोबार राजस्थान के अलावा हरियाणा तक फैल चुका था। ठेहट को राजनीति से सरंक्षण था। इसलिए एक राज्य से दूसरे राज्य में शराब के ट्रक बिना रोक टोक जाने लगे। आनंदपाल और बलबीर बानुडा राजू ठेहट के शराब के भरे ट्रकों को ही लूटने लगे। जिसके चलते ठेहट को आर्थिक रूप से संकट झेलना पड़ा।राजू के संरक्षक की हत्या से बानुडा ने लिया बदला
आनंदपाल और बानूडा ने जून 2006 में राजू ठेहट के सरंक्षक गोपाल फोगावट को गोली मार दी। अब गोपाल फोगावट की हत्या का बदला लेने के लिए राजू ठेहट छटपटाने लगा लेकिन साल 2012 में दोनों गैंग को अंडरग्राउंड रहना पड़ा।
जेल में राजू ठेहट पर करवाया गया हमला
2012 में बलबीर बानुडा, आनंदपाल और राजू ठेहट की गिरफ्तारी हुई तो तीनों में बदले की आग फिर सुलग गई। बानुडा के खास दोस्त सुभाष बराल ने 26 जनवरी 2013 को सीकर जेल मे बंद राजू ठेहट पर हमला कर दिया लेकिन इस हमले में राजू ठेहट बच गया।राजू ने भाई को सौंप दी थी गैंग की कमान
जेल में हमले के बाद राजू ठेहट ने अपनी गैंग की कमान अपने भाई ओमप्रकाश उर्फ ओमा ठेहट को सौंप दी। इसी दौरान आनंदपाल और बलबीर बानुडा बीकानेर जेल मे बंद थे। संयोग से ओमा ठेहट का साला जयप्रकाश और रामप्रकाश भी बीकानेर जेल मे ही बंद थे। बदला लेने के लिए दोनों के पास हथियार पहुंचाए गए।
राजू ठेहट ने जेल में मरवाया था बलबीर बानुडा को
24 जुलाई 2014 को बीकानेर जेल में ओमा ठेहट के कहने पर बलवीर बानुडा और आनंदपाल पर हमला बोला गया। इस हमले में आनंदपाल तो बच गया लेकिन बलवीर बानुडा मारा गया। जिसके बाद आनंदपाल ने राजू ठेहट को मौत के घाट उतारने की कसम खा ली। दोनों गैंगों में गैंगवार होने लगी। इसी बीच एनकाउंटर में आनंदपाल मारा गया। अब ठेहट की घर के बाहर गोली मारकर हत्या कर दी गई।