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बीकानेर, एस पी मेडिकल कॉलेज और संबद्ध पी बी एम अस्पताल की नियंत्रक राजस्थान मेडिकेयर रिलीफ सोसायटी चिकित्सा संसाधनों के अपव्यय , छीजत और चोरी को रोकें। जनता के धन से रोगियों की चिकित्सा के लिए उपलब्ध ससाधनों का समुचित उपयोग सुनिश्चित करें। हाल ही में हुई सोसायटी की मीटिंग से लगता है सोसायटी अध्यक्ष और सदस्यों का मूल मुद्दों की तरफ ध्यान ही नहीं गया है। जो भी प्रस्ताव अनुमोदित किए गए वो प्रशासनिक औपचारिकता से ज्यादा कुछ नहीं है। सोसायटी चेयरपर्सन जब डा. नीरज के पवन हो तो उम्मीदें कुछ और भी रहती है। मेडिकल सामग्री और संसाधनों का कितना अपव्यय, दुरुपयोग, चोरी, छीजत हो रही है राजस्थान मेडिकेयर रिलीफ सोसायटी एक कमेटी बनाकर पता करवा सकती है। सोसायटी अध्यक्ष ने पूर्व में पी बी एम में कूट रचित दस्तावेजों की जांच के लिए पुलिस रिपोर्ट दर्ज करवाई थी। व्यवस्था को बेहतरीन करने में सोसायटी की भूमिका हो सकती है।इसमें जनता के सरकार की ओर से बनाए गए सदस्य जनता की आवाज कहां बन पा रहे हैं ? अपने राजनीतिक हित साधने से उनका जनता के प्रति विश्वास नहीं बढ़ सकता। लगता है मेडिकल व्यवस्थाओं का कॉकस सोसायटी पर हावी है। जो मूल समस्याओं और मुद्दों को छूने ही नहीं देता। अन्य प्रशासनिक मसलों में सोसायटी की बैठक को उलझाए रखा जाता है। चाहे लाइफ सेविंग मेडिकल स्टोर का संचालन हो या ट्यूबवेल बनाना, औजार, उपकरण अन्य सामग्री की खरीद ये तो आवश्यक और रोजमर्रा के काम है उचित निर्णय लेना ही पड़ेगा। राज्य के बाहर के मरीजों की जांच दर निर्धारण, मानव संसाधन हो या प्लेसमेंट एंजेंसी के माध्यम से नियुक्तियां, दुकानें किराए पर देना ये तो रूटीन के काम है। जो जांचें पी बी एम में उपलब्ध नहीं है उसकी इन हाउस क्षमता विकसित करना, निजी डायग्नोसिस सेंटर से दर निर्धारित कर आउट सोर्सिंग का निर्णय, डिपार्टमेंट ऑफ ऑर्थोपिडिक्स ट्रॉमा सेंटर में पी आर पी थेरेपी क्लिनिक शुरू करने जैसे काम जनहित को ध्यान में रखकर निर्णयों की जरूरत है। डा.बी डी कल्ला ने अपने मंत्रालय से 16 लाख से पी बी एम में 10 ई रिक्शा जन हित में स्वीकृत किए हैं ये सभी 10 रिक्शा अस्पताल में चलने चाहिए। ताकि मंत्री जी का जनहित में किया काम जनता के बीच बोले। सोसायटी का होना कैसे साबित ? यह तो लकीर से हटकर कुछ करने से होगा।

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