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बीकानेर,देश की न्यायपालिका में अपनी मजबूत साख के लिए पहचान रखने वाला राजस्थान हाईकोर्ट पिछले एक दशक से अपनी इसी साख को कमजोर होते हुए देख रहा हैं.पूर्व सीजेआई एन वी रमन्ना के समय में देशभर के हाई कोर्ट जजों की लगातार नियुक्ति के मामले में भी राजस्थान हाईकोर्ट अपनी जगह नहीं बना पाया.

राजस्थान हाईकोर्ट वर्तमान में स्वीकृत जजों के 50 पदों पर 26 जजों के साथ कार्य कर रहा हैं. अगले माह 10 नवंबर को एक ओर जज जस्टिस प्रकाश गुप्ता की सेवानिवृत्ति के साथ ही ये संख्या 50 प्रतिशत यानी 25 हो जायेगी. वर्तमान परिस्थितियों में राजस्थान हाईकोर्ट को अपने इसी 50 प्रतिशत संख्या बल के साथ ही कार्य करना होगा.

सुप्रीम कोर्ट कॉलेजियम के समक्ष दो बार फाइल भेजे जाने के बावजूद राजस्थान हाईकोर्ट के लिए नए जजों की नियुक्ति नहीं हो पायी. ये तथ्य भी राजस्थान हाईकोर्ट के पक्ष में नहीं गया की देश की सर्वोच्च अदालत में राजस्थान से संबंध रखने वाले दो वरिष्ठ जज भी मौजूद हैं. सीजेआई यूयू ललित की सेवानिवृत्ति से एक माह पूर्व एक बार फिर से राजस्थान हाईकोर्ट में जजों की नियुक्ति की उम्मीद उस समय बढ गयी, जब सितंबर के अंतिम सप्ताह में राजस्थान हाईकोर्ट की फाइल कॉलेजियम के पास भेजी गयी.

सुप्रीम कोर्ट में दशहरा अवकाश से पूर्व अंतिम कार्यदिवस पर प्रस्तावित कॉलेजियम की बैठक में राजस्थान हाईकोर्ट में जजों की नियुक्ति की संभावनाएं तलाशी गई. लेकिन कॉलेजियम के दूसरे वरिष्ठ जज जस्टिस डी वाई चन्द्रचूड़ के देर रात 9 बजे अदालत में सुनवाई में रहने से ये सभी कयास रह गए.

केंद्र सरकार की आपत्ति

राजस्थान हाईकोर्ट में निकट समय में भी नए जजों की नियुक्ति की राह आसान नज़र नहीं आती. राजस्थान हाईकोर्ट के पूर्व चीफ जस्टिस अकील कुरैशी द्वारा भेजे गये नाम पर केंद्र पहले ही अपनी असहमति जता चुका हैं. यहां तक कि कॉलेजियम को जवाब देने के लिए कानून मंत्री किरेन रिजिजू ने राजस्थान के ही उदयपुर शहर को चुना. केन्द्र सरकार के सरकारी अधिवक्ताओं की दो दिवसीय कॉन्फ्रेंस में कानून मंत्री ने साफ कहा कि राजस्थान में जजो की नियुक्ति में होने वाली देरी के लिए सरकार जिम्मेदार नहीं है, बल्कि सिस्टम इसका कारण हैं.यहां तक कि कॉन्फ्रेंस में कानून मंत्री ने कॉलेजियम सिस्टम पर सवाल खड़े करते हुए इस सिस्टम में ही बदलाव करने की पैरवी तक कर दी.

राजस्थान हाई कोर्ट के कॉलेजियम द्वारा भेजे गये अधिवक्ताओं के 8 नाम को लेकर कानून मंत्रालय ने एकबारगी तो इनमें से कोई नहीं तक का भी टैग लगा दिया था. लेकिन कॉलेजियम द्वारा मंत्रालय के पत्र को दरकिनार करने के बाद फिर से राजस्थान की फाइल को कॉलेजियम के समक्ष भेजा गया.इस अहम मामले में राजस्थान के एक जिला एवं सत्र न्यायाधीश का दिल्ली में कार्यरत होना भी सकारात्मक बिंदु रहा हैं. अधिवक्ता कोटे के नामों को लेकर केन्द्र के रूख में ज्यादा बदलाव नहीं हैं.ऐसे में सिर्फ न्यायिक कोटे के भेजे गए नाम शीघ्र मंजूर होते है तो ये एक बड़ी राहत होगी.लेकिन अगले कुछ माह तक ये सिर्फ एक इंतजार होगा.

इस तरह रहा सफर

राजस्थान हाईकोर्ट में जजों के रिक्त पदों को भरने के लिए पूर्व चीफ जस्टिस अकील कुरैशी की अध्यक्षता में 10 और 11 फरवरी 2022 को हाई कोर्ट कॉलेजियम ने 16 नए नाम की सिफारिश की थी.

पूर्व सीजेआई एन वी रमन्ना की अध्यक्षता में 25 जुलाई को उनके कार्यकाल में कॉलेजियम की अंतिम बैठक हुई थी. इस बैठक के एक दिन बाद 26 जुलाई को ही केंद्र की ओर सुप्रीम कोर्ट को तीन आपत्तियों के साथ पत्र व्यवहार किया गया था.केन्द्र की ओर से भेजे गये पत्र पर 27 जुलाई को पहली बार कॉलेजियम विचार करने पर सहमत हुआ, लेकिन कुछ कारणों से इसे 4 अगस्त के लिए डेफर किया गया. 4 अगस्त को हुई बैठक में कॉलेजियम के एक सदस्य इसे भविष्य के लिए छोड़ने पर ठहर गए. जिसके बाद इस पत्र पर कोई चर्चा नहीं हुई.

7 सितंबर को वर्तमान सीजेआई की अध्यक्षता में हुए कॉलेजियम ने इस पत्र पर विचार किया. जिसके बाद केन्द्र को इस मामले में कुछ हद तक सफलता मिली हैं की कॉलेजियम ने केंद्र को वे नाम भेजने के लिए कहे हैं जिनकी आईबी व इनपुट पूर्ण हो चुके हैं.

नहीं हुआ कोई निर्णय

सीजेआई ललित के कार्यकाल में ही राजस्थान की फाइल पर चर्चा के लिए सितंबर के अंतिम सप्ताह में एक बार फिर ये फाइल कॉले​जियम के समक्ष भेजी गयी. लेकिन सर्वोच्च अदालत में जजो की नियुक्ति की प्राथमिकता के सामने राजस्थान अपनी जगह नहीं बना पाया. CJI यूयू ललित का मुख्य न्यायाधीश के तौर पर 8 नवंबर तक का कार्यकाल हैं. सीजेआई की अध्यक्षता में कॉलेजियम के पास भी सिफारिशें करने के लिए 8 अक्टूबर तक का ही समय है. जिसके बाद कॉलेजियम की बैठकें अगले CJI के कार्यभार संभालने तक रोक दी जाती हैं.

वर्तमान परिस्थितियों में कॉलेजियम के सदस्यों के बीच सुप्रीम कोर्ट जजों की नियुक्ति को लेकर जारी कवायद के बीच राजस्थान हाईकोर्ट के लिए किसी को भी शीघ्रता नहीं हैं. राजस्थान हाईकोर्ट से जुड़े बार एसोसिएशन के लिए भी जजो की नियुक्ति इतना अहम मुद्दा नहीं हैं कि वे अपने स्थानीय मुद्दों से आगे बढ़ सके. राजस्थान हाईकोर्ट को फिलहाल अपनी वर्तमान कार्यक्षमता के साथ ही आगे बढना होगा.

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