












बीकानेर,जोधपुर,राजस्थान उच्च न्यायालय, जोधपुर की खंडपीठ ने एनडीपीएस एक्ट (Narcotic Drugs and Psychotropic Substances Act) के एक प्रकरण में आरोपी राकेश पुत्र कालूराम खीचड़ निवासी मोगरा कला, जिला जोधपुर (वर्तमान में केंद्रीय कारागार, प्रतापगढ़ में बंद) को जमानत पर रिहा करने का आदेश दिया है।
यह आदेश न्यायमूर्ति रवि चिरानिया द्वारा दिनांक 30 अक्टूबर 2025 को पारित किया गया। मामला एफआईआर संख्या 112/2024, थाना राठांजना, जिला प्रतापगढ़ से संबंधित है, जिसमें आरोपी पर एनडीपीएस एक्ट की धारा 8/15 एवं 25 के तहत मामला दर्ज था
⚖️ अभियुक्त पक्ष की दलीलें
याचिकाकर्ता की ओर से अधिवक्ता श्री राहुल सोनी ने यह तर्क दिया कि कथित मादक पदार्थ एक परित्यक्त वाहन (RJ19-UA-2710) से बरामद किया गया था।
अभियुक्त न तो वाहन का मालिक है और न ही उसने उसे खरीदा है। इसलिए उसे गलत तरीके से इस प्रकरण में फंसाया गया है
🧾 अदालत का अवलोकन
माननीय न्यायालय ने वाहन की खरीद-फरोख्त से संबंधित दस्तावेजों की जांच करते हुए पाया कि वे संदेहास्पद एवं अप्रामाणिक प्रतीत होते हैं।
• जांच अधिकारी यह स्पष्ट नहीं कर सका कि वाहन की बिक्री के लिए कथित ₹3,50,000/- का भुगतान किस प्रकार हुआ।
• यह भी पाया गया कि दस्तावेज़ “बैकडेट में तैयार” किए गए हैं, जिससे यह “बाद में गढ़ी गई कहानी (after-thought)” लगती है।
• अदालत ने टिप्पणी की कि पुलिस ने बिना ठोस आधार के यह मान लिया कि वाहन का मालिक अभियुक्त ही है, जो कि संदेहपूर्ण निष्कर्ष है।
🏛️ अदालत का आदेश
माननीय न्यायालय ने यह पाया कि —
• जांच पूर्ण हो चुकी है,
• आरोप पत्र (चार्जशीट) दाखिल हो गया है,
• अभियुक्त 26 मार्च 2025 से जेल में बंद है।
इन तथ्यों के आधार पर अदालत ने राकेश पुत्र कालूराम खीचड़ को ₹1,00,000/- के निजी मुचलके और दो ₹50,000/- के जमानतदार प्रस्तुत करने की शर्त पर जमानत पर रिहा करने का आदेश दिया।
🔎 पुलिस जांच पर सख्त निर्देश
अदालत ने पुलिस जांच की निष्पक्षता पर गंभीर चिंता व्यक्त की और जिला पुलिस अधीक्षक (एसपी) प्रतापगढ़ को निर्देश दिया कि —
“वे यह जांच करें कि पुलिस द्वारा की गई विवेचना निष्पक्ष थी या नहीं,
वाहन की बिक्री से संबंधित दस्तावेज सही और प्रामाणिक हैं या नहीं,
तथा इस संबंध में दो सप्ताह के भीतर रिपोर्ट न्यायालय में प्रस्तुत करें।”
📰 मुख्य बिंदु:
• एनडीपीएस केस में अभियुक्त को जमानत।
• पुलिस जांच की विश्वसनीयता पर अदालत ने उठाए सवाल।
• एसपी प्रतापगढ़ को दो सप्ताह में रिपोर्ट देने का निर्देश।
• जांच अधिकारी की भूमिका और दस्तावेज़ों की सत्यता पर भी संदेह
