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बीकानेर,भाखड़ा ब्यास मैनेजमेंट बोर्ड में स्थाई सदस्यों को लेकर पंजाब-हरियाणा का एकाधिकार खत्म हो गया है। अब केंद्र सरकार ने बीबीएमबी अध्यक्ष की तर्ज पर सदस्यों की नियुक्ति की प्रक्रिया में बदलाव कर देश के किसी भी राज्य से स्थाई सदस्य बनने का रास्ता साफ कर दिया है। इससे अब राजस्थान काे भी स्थाई सदस्य बनने का रास्ता मिल गया है।

बीबीएमबी के अधीन आने वाले पौंग डैम में राजस्थान की 49 प्रतिशत पानी की हिस्सेदारी है। ये हिस्सेदारी भारत-पाक के बीच 1960 में हुई इंडस जल संधि के बाद तय हुई थी। जिसमें सतलुज, ब्यास और रावी नदी के पानी का बंटवारा हुआ था। भाखड़ा और ब्यास परियाेजनाओं पर पंजाब और राजस्थान संयुक्त रूप से हिस्सेदार बने थे लेकिन एक नवंबर, 1966 को तत्कालीन पंजाब राज्य के पुनर्गठन पर बीबीएमबी के प्रशासनिक और संचालन के लिए पंजाब पुनर्गठन अधिनियम 1966 की धारा 79 के तहत दो स्थाई सदस्य बनाए गए।

शुरुआती सालों में लगातार पंजाब और हरियाणा से स्थाई सदस्य बने लेकिन बाद में उसे नियम मान लिया गया जबकि सेक्शन 79 में ऐसा कोई जिक्र नहीं था कि पंजाब-हरियाणा से ही स्थाई सदस्य चुना जाएगा। नियम की गलत परिभाषा को उजागर किया था। उसके बाद केन्द्र सरकार जागी। अब नियमों में बदलाव कर पंजाब-हरियाणा का एकाधिकार खत्म कर दिया गया है।

55 साल तक असफल रहे प्रयास, एक साल में कवायद तेज हुई तो नियम बदल गया
1978 में तत्कालीन प्रधानमंत्री मोरारजी देसाई के समक्ष बीकानेर समेत राजस्थान के एक प्रतिनिधिमंडल ने बीबीएमबी में राजस्थान का स्थाई सदस्य बनाने की मांग की थी। तब से राजस्थान लगातार मांग कर रहा है लेकिन पंजाब के राजनीतिक दबाव के आगे राजस्थान की सुनवाई नहीं हुई। केंद्रीय जल शक्ति मंत्री गजेंद्र सिंह शेखावत ने पिछले साल हनुमानगढ़ से लेकर राजस्थान सरकार के अधिकारियों को दिल्ली बुलाया।

कई बार नियमों काे खंगाला और उसके बाद बीबीएमबी एक्ट में संशोधन शुरू किया। कुछ महीने पहले केन्द्रीय गृह मंत्री अमित शाह ने भी पंजाब के सामने बोर्ड में दो की जगह तीन सदस्यों का सुझाव रखा जिसमें तीसरा सदस्य राजस्थान को बनाने का सुझाव रखा जिसे पंजाब ने नकार दिया। उसके बाद 23 फरवरी को नियमों में संशोधन कर नया गजट नोटिफिकेशन पारित कर दिया।

राजस्थान को फायदा: हरिके बैराज से ही पानी दिया जाता है और वहां पंजाब का कब्जा है. मनमानी खत्म होगी
बीबीएमबी में राजस्थान का सदस्य होने या पंजाब-हरियाणा को छोड़ किसी अन्य राज्य के सदस्य होने से राजस्थान अपनी मांगें बीबीएमबी में आसानी से रख सकता है। पंजाब-हरियाणा का स्थाई सदस्य ना होने से राजस्थान के साथ निष्पक्ष व्यवहार होने की आस बंधी है। अब तक राजस्थान की बात बीबीएमबी में अनसुनी होती थी, कारण पंजाब-हरियाणा के स्थाई सदस्य होने से वे अपना हित देखते थे।

यही वजह है कि हरिके बैराज का अब तक बीबीएमबी या तीन राज्यों की संयुक्त कमेटी के अधीन संचालन नहीं होता। हरिके पर पंजाब का पूरा अधिकार है और हरिके से ही राजस्थान को पानी दिया जाता है। यहां से ही पंजाब कभी भी राजस्थान का पानी कम कर देता है जिसका राजस्थान के पास कोई आंकड़ा भी नहीं होता कि कितना पानी कम किया।

पंजाब-हरियाणा पर असर: फैसले का विरोध
पीएसईबी इंजीनियरिंग एसोसिएशन समेत तमाम राजनीतिक दलों ने केन्द्र के इस फैसले का विरोध करना शुरू कर दिया है। राजस्थान के हित का विरोध हरियाणा की कुमारी शैलजा और रणदीप सिंह सुरजेवाला ने किया है। पीएसईबी के अध्यक्ष जसवीर सिंह धीमान ने पंजाब के चीफ सेक्रेटरी को पत्र लिखकर केन्द्र से फैसला वापस लेने की मांग की है।राजस्थान के तीन मुद्दे और बाकी
1. हरिके बैराज का पूरा संचालन बीबीएमबी या राजस्थान-पंजाब और हरियाणा की संयुक्त टीम के हाथ में हों। अब तक यहां पंजाब का ही अधिकार है। ऐसा ना होने पर स्काडा सिस्टम से पानी का निर्धारण हों।
2. लुधियाना-जालंधर समेत पंजाब के तमाम शहरों की फैक्ट्रियों का गंदा पानी राजस्थान की नहरों में आने से रोका जाए। इसको लेकर एनजीटी ने भी पंजाब पर जुर्माना लगाया। लेकिन फिर भी हमारे 11 जिलों तक गंदा पानी पहुंचता है।
3. 1981 में रावी-व्यास नदियों के जल वितरण के वक्त राजस्थान के हिस्से में 8.6 एमएएफ पानी मिलना तय हुआ था। पंजाब ने अब तक 8 एमएएफ ही पानी दिया। 0.6 एमएएफ पानी अभी भी पंजाब उपयोग कर रहा है। इसको लेकर पंजाब ने पंजाब टर्मिनेशन एग्रीमेंट 2004 पारित कर रावी-ब्यास नदी के जल समझौते को निष्पादन की तारीख से निरस्त कर दिया है। राजस्थान इस मामले को न्यायालय में लेकर गया है।

जानिए बीबीएमबी के बारे में
ब्यास परियोजना का काम पूरा होने पर केन्द्र सरकार ने पंजाब पुनर्गठन अधिनियम 1966 की धारा 80 के मुताबिक ब्यास निर्माण बोर्ड और बीसीबी को भाखड़ा ब्यास मैनेजमेंट बोर्ड में स्थानांतरित कर 15 मई, 1976 से इसे भाखड़ा ब्यास मैनेजमेंट बोर्ड नाम दिया। तब से भाखड़ा नांगल और ब्यास परियाेजना से राजस्थान, पंजाब, हरियाणा, चंडीगढ़ और दिल्ली को पानी और बिजली देना तय हुअा।

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