बीकानेर,संयुक्त राष्ट्र द्वारा भूमि संरक्षण के सर्वोच्च सम्मान लैंड फॉर लाइफ अवॉर्ड से सम्मानित पर्यावरण कार्यकर्ता प्रोफ़ेसर श्यामसुंदर ज्याणी के आह्वान पर आज पहली बार राबड़ी दिवस का आयोजन किया गया । जिसके तहत राजस्थान, हरियाणा, पंजाब, गुजरात, मध्यप्रदेश के लाखों परिवारों ने राबड़ी का सामूहिक सेवन करते हुए बाजरा से बनने वाली राबड़ी के लाभ और कोल्ड ड्रिंक के नुक़सान पर चर्चा की।
राजकीय डूँगर कॉलेज, बीकानेर के गांधी संस्थागत वन में आयोजित कार्यक्रम में बीकानेर रेंज ke पुलिस महानिरीक्षक, ओम् प्रकाश, आर्मी डिवीज़न के ब्रिगेडियर वैभव अग्रवाल सहित बड़ी संख्या में गणमान्य नागरिकों ने भागीदारी अदा की।
इस अवसर पर प्रोफ़ेसर ज्याणी ने कहा कि जलवायु परिवर्तन के इस दौर में मोटे अनाज की भूमिका बहुत महत्वपूर्ण हो चली है क्योंकि बाजरा जैसा मोटा अनाज न केवल कम वर्षा , अधिक गर्मी व रेतीली -कम उपजाऊ ज़मीन में भी हो सकता है अपितु यह पौषक तत्वों से भी भरपूर होता है । लेकिन राष्ट्रीय नमूना सर्वेक्षण के ताजा आँकड़ों के अनुसार शहरी व ग्रामीण भोजन में मोटे अनाज की हिस्सेदारी केवल दस फ़ीसदी ही है । इसका बड़ा कारण है हमारी समझ का बाज़ार आधारित होते चले जाना जिस कारण हमें अपने परंपरागत तरीक़े पिछड़ेपन की निशानी लगने लगे हैं और राबड़ी जैसी गुणकारी व पीढ़ियों से परखे भोजन को छिटककर हमने स्वास्थ्य व पर्यावरण के लिए घातक पेप्सी-कोका- कोला जैसे कोल्ड ड्रिंक के हवाले ख़ुद के शरीर को कर दिया है । जलवायु संकट, संयुक्त राष्ट्र संघ द्वारा घोषित सतत विकास लक्ष्यों (Sustainable Development Goals) और कुपोषण की भयावहता व अपने देसज़ भोजन के प्रति नई पीढ़ी की अरुचि के मद्देनज़र पारिवारिक वानिकी से जुड़े सभी कार्यकर्ता देसज़ भोजन को बढ़ावा देने की कोशिश में लगे हुए हैं
जलवायु संकट से जूझ रही दुनिया को बचाने के लिए संयुक्त राष्ट्र संघ ने सतत विकास लक्ष्य घोषित किए हैं इन लक्ष्यों की प्राप्ति में सतत जीवन शैली की महती भूमिका है । मोटा अनाज सबसे सतत भोजन माना जाता है इसीलिए भारत के आग्रह पर संयुक्त राष्ट्र ने 2023 को अंतर्राष्ट्रीय मोटा अनाज वर्ष घोषित किया है चूँकि राजस्थान के मरुस्थली इलाक़े में हज़ारों सालों से मोटा अनाज भोजन का मुख्य हिस्सा रहा है जो अब नव उदारवादी दौर में पीछे छूटता जा रहा है इसलिए संवेदी लोगों को आगे आकर मोटे अनाज के महत्व की अलख जगानी होगी ।
ज्याणी ने बताया कि पर्यावरण पाठशाला नेटवर्क से जुड़े हज़ारों शिक्षकों में जगह -जगह कार्यक्रम आयोजित कर इस दिवस के ज़रिए लोगों को जागरूक करने का प्रयास किया है । बीकानेर में शिक्षा निदेशालय पर सैंकड़ों शिक्षकों ने राबड़ी का सेवन किया, तो हनुमानगढ़ ज़िले के भादरा में इंदिरा रसोई को राबड़ी दिवस से जोड़ते हुए पारिवारिक वानिकी एडवाइज़री बोर्ड सदस्य पवन शर्मा ने इंदिरा रसोई में भोजन करने वालों को निःशुल्क राबड़ी पिलाकर निरोगी राजस्थान का संदेश दिया। वहीं सूरतगढ़ में वृक्ष मित्र समिति ने विशेष योग्यजनों को राबड़ी सेवन करवाया। सूरतगढ़, रायसिंहनगर, राजियासर, गजसिंहपुर, बाड़मेर, अलवर, सरदारशहर, सीकर, लूनकरणसर, हनुमानगढ़ आदि स्थानों पर बड़े पैमाने पर राबड़ी दिवस का आयोजन किया गया। उल्लेखनीय है कि इस दिवस के आयोजन में कहीं पर भी प्लास्टिक के डिस्पोजेबल ग्लास व अन्य सामग्री का इस्तेमाल नहीं किया गया।