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बीकानेर,मां जद भी राखे चूल्हे माथे हांडी/सगळा भाई भेळा हो जांवा आंगणे मांय/बापू राख दी हांडी ने आंगणे मांय। राजस्थानी भाषा के कवि आलोचक डॉ. गौरी शंकर प्रजापत द्वारा प्रस्तुत ‘हांडी’ शीर्षक की इस राजस्थानी कविता की इन भावप्रद पंक्तियों से आज सांखला साहित्य सदन सराबोर हो उठा। अवसर था हिंदी एवं राजस्थानी भाषा के कीर्तिशेष साहित्यकार स्वर्गीय नरपत सिंह सांखला की स्मृति में स्व. नरपत सिंह सांखला स्मृति संस्थान द्वारा त्रैमासिक साहित्यिक श्रृंखला ‘त्रिभाषा एकल काव्य पाठ एवं सम्मान समारोह’ की चौथी कड़ी का। फिर तो कार्यक्रम में प्रजापत ने अपनी एक से एक उम्दा राजस्थानी कविताएं प्रस्तुत करके श्रोताओं को आनंद विभोर कर दिया। आपने ‘थारो फगत नांव याद है थारी यादां फगत सागै है’ कविता के ज़रिए राजस्थानी भाषा की मिठास से श्रोताओं की भरपूर तालियां बटोरी। आपने थारी याद,जीवण में गाठां क्यूं,तीसरी जमात, सीख, आत्मा रो मोल, हेत, रावण नी बळे, कीं केवण री जरूरत नीं है’ और ‘बसे ना ए सांवली जैसी बेहतरीन रचनाएं पेश करके श्रोताओं को मंत्रमुग्ध करते हुए गहरे चिंतन मनन करने पर विवश कर दिया।
संस्थान सचिव वरिष्ठ शाइर कहानीकार क़ासिम बीकानेरी और संस्थापक वरिष्ठ शिक्षाविद्,संस्कृतिकर्मी संजय सांखला ने बताया कि साहित्यिक श्रृंखला की चौथी कड़ी में नगर के हिंदी,उर्दू एवं राजस्थानी भाषा के तीन वरिष्ठ रचनाकारों का एकल काव्य पाठ कार्यक्रम एवं सम्मान समारोह आयोजित किया गया।

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