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बीकानेर,स्वामी केशवानंद राजस्थान कृषि विश्वविद्यालय के अंतर्गत कृषि महाविद्यालय में सोमवार को विश्व मधुमक्खी दिवस के अवसर पर ”खाद्य सुरक्षा एवं जैव विविधता के लिए मधुमक्खियां जरूरी” विषय पर कार्यक्रम का आयोजन किया गया। कार्यक्रम के मुख्य अतिथि कुलपति डॉ अरूण कुमार ने कहा कि खाद्य सुरक्षा और जैव विविधता को बनाए रखने में मधुमक्खी एक महत्वपूर्ण कड़ी है। उन्होने कहा कि मधुमक्खी एक ऐसा सामाजिक कीट है जो ना सिर्फ शहद उत्पन्न करता है बल्कि इसके द्वारा रॉयल जैली, पराग कण, प्रोपोलिस, मोम आदि भी प्राप्त होता है। विदित है कि मधुमक्खी दिवस सम्पूर्ण विश्व में 20 मई को मधुमक्खी पालन के प्रथम अन्वेषक ऐन्टोन जानसा की जयंती पर वर्ष 2017 से प्रति वर्ष मनाया जा रहा है।

कार्यक्रम में कृषि महाविद्यालय अधिष्ठाता डॉ पीके यादव ने मधुमक्खियों के जीवन पर प्रकाश डालते हुए बताया कि दुनियां में मधुमक्खी ना हो तो मानव सभ्यता खतरे में पड़ जाएगी। इसी क्रम में प्रसार निदेशक डॉ सुभाष चंद्र ने मधुमक्खी पालन को उद्यमिता के रूप में अपनाने को लेकर कहा कि इसे स्वरोजगार के रूप में अपनाना चाहिए। इसमें जमीन की भी आवश्यता नहीं होती। वरिष्ठ कीट वैज्ञानिक एवं छात्र कल्याण निदेशक डॉ वीर सिंह ने मघुमक्खी से प्राप्त होने वाले विभिन्न उत्पादों व उनकी उपयोगिता पर विस्तृत रूप से प्रकाश डाला।

कीट विज्ञान विभाग के विभागाध्यक्ष प्रो. एच.एल.देशवाल ने बताया कि विश्व मधुमक्खी दिवस मनाने का उद्देश्य युवाओं व आमजन में मधुमक्खियों के योगदान के बारे में जागरूक करना है और कृषि के सु्स्थिर उत्पादन में मधुमक्खियों के योगदान के बारे में बताना है। उन्होने बताया कि देश में मधुमक्खियों से शहद का कुल उत्पादन । लाख 33 हजार मैट्रिक टन होता है। देश में शहद उत्पादन में राजस्थान का स्थान पांचवां है। साथ ही बताया कि मधुमक्खियों द्वारा परागण होने से विभिन्न फसलों मे उत्पादन में वृद्धि होती है। कार्यक्रम में डॉ विमला डुकवाल, डॉ दाताराम, डॉ निर्मल सिंह दहिया, डॉ राजेश वर्मा समेत विश्वविद्यालय की विभिन्न इकाइयों के अधिष्ठाता, निदेशक, महाविद्यालय के प्राध्यापक गण, कार्मिक व स्टूडेंट्स उपस्थित रहे। कार्यक्रम में मंच संचालन व धन्यवाद ज्ञापन डॉ वी.एस.आचार्य ने किया।

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