बीकानेर,प्रो.अनिल छंगाणी, विभागाध्यक्ष, पर्यावरण विज्ञान विभाग, एमजीएस विवि ने ये दावा किया है अगर थार मरुस्थल में जिस तरह रिन्यूएबल एनर्जी विशेषकर सोलर एनर्जी के लिए पेड़ पौधे, जल स्रोत नष्ट हो रहे हैं। अगर आगे भी ऐसा ही चलता रहा, तो यहां का वन्यजीव, पशुधन और मानव जीवन संकट में आ जाएगा। सोलर के कारण विषेशकर पश्चिमी राजस्थान के कई इलाकों (जहां गर्मियों में सामान्यत: तापमान 48° से 50° तक पहुंच जाता था) में तापमान में 3°– 5° का इजाफा हो रहा है। साथ ही आने वाले समय मैं सोलर कचरे के निस्तारण की कोई पॉलिसी भी नहीं हैं। व्यवस्थाओं में बैठे लोग और खेत मालिक चंद रुपयों के लालच में अपने बुजुर्गों के रोपे बरसों पुराने पेड़ कटवाने पर सहमति दे रहे हैं, सैटेलाइट इमेज में एक-एक सबूत पड़ा है।थार मरुस्थल में जहां जहां बड़े सोलर प्लांट्स लगे हैं। वहां आस पास मधुमक्खी के छत्ते गायब, तितली नहीं मिल रही, पक्षी कम हो गए, किसानों के मित्र कीट पतंगों की आबादी घट गई।
ग्रीन एनर्जी के नाम पर प्राकृतिक दोहन हो रहा है, और पॉलिसी बनाने वाले आंख बंद किए बैठे हैं। पश्चिमी की पश्चिमी राजस्थान के इलाकों में जहां गर्मी में सामान्यत 40° डिग्री से ज्यादा तापमान है, ऐसे इलाकों में सोलर प्लांट्स का भयावह असर आने वाले 15–20 सालों में दिखेगा। जोधपुर और जैसलमेर के कई इलाकों में पर्यावरण और जैव विविधता पर इनके विपरीत प्रभाव सामने आना शुरू हो गए हैं, और स्थानीय स्तर पर इसका विरोध शुरू हो गया। मैं दावा करता हूं कि अगर पर्यावरण के प्रति यही रवैया रहा, पेड़ों की अंधाधुंध कटाई होते रही, जल स्रोत सूखते रहे, जैवविविधता घटती रही, तो वो दिन दूर नहीं जहां पुलिस और प्रशासन ड्रोन के माध्यम से हवाई सर्वे करेंगे और घरों और खेतों के आसपास लगे सोलर प्लांट्स खुद हटएगी ।
क्योंकि जिस तरह से प्राकृतिक आवास घट रहे हैं, थार मरुस्थल के कई इलाकों में बेतहाशा तापमान बढ़ रहा है, जल स्रोत तेजी से घट रहे हैं। ज्ञातव रहे, कि थार की इसी समृद्ध जैवविविधता ने कोविड जैसी महामारी में भी थार मरुस्थल के लोगों को बचाया है। जिसके चलते यहां के लोगों की कोविड महामारी में रिकवरी रेट सबसे बढ़िया थी, और डेथ रेट पूरी दुनिया में सबसे कम थी।