बीकानेर बड़ा बाजार स्थित सिंगिया चौक की वह दहलीज यूं तो काठ की ही बनी है। लेकिन इस दहलीज ने अपने अंदर दशकों की कहानियां और बदलाव को संजो कर रखा है। इसे बीकानेर किन्नर समाज की हवेली कहा जाता है। देश के अन्य हिस्सों में रहने वालों को यह विचित्र लग सकता है, लेकिन सुखद तथ्य यही है कि इस हवेली को लेकर दशकों से बीकाणावासियों का एक लगाव भी है और बेहद आदर भाव भी है। यह आदर यहां के किन्नर समाज की अमूल्य धरोहर तो है ही, बीकानेर वासियों के जज्बे का भी प्रतीक है, जो उन्हें आशीष से नवाजने वाले को इतना आदर बख्शते हैं। किन्नर समाज की मौजूदा गुरु मुस्कान बाई इन दिनों अपने सेवा कार्यों को लेकर सुर्खियों में है। मुस्कान बाई ने बताया अपने बाल्यकाल से लेकर अब तक की यादों को उन्होंने कुछ यूं साझा किया।
में पांच साल की थी,तो बीकानेर आ गई। अब करीब तीस साल की हूं। गुरुजी रजनी बाई अग्रवाल का आशीर्वाद हमेशा रहा। उनकी बदौलत ही किन्नर समाज की अध्यक्ष हूं। छोटी थी, तब मां-बाप से बातचीत हो जाती थी। धीरे-धीरे इसी समाज में रम गई। अब तो बहुत ही कम बात होती है। हिसार में जन्म हुआ। परिवार में एक भाई और एक बहन हैं। दोनों शादीशुदा अपनी जिंदगी में खुश है। किन्नर समाज की इज्जत बढ़ी है। लोग स्वयं घर पर बुलाकर बधाई देते हैं। बधाई के लिए किसी पर दबाव नहीं डाला जाता। थोड़ी बहुत जिद भी मान लीजिए परंपरा का ही हिस्सा है। गुरू जी को देखते हुए ही यह सोच पैदा हुई। उन्हीं के सपने को साकार करते हुए किन्नर समाज ने हाल ही में दो बच्चियों की शादी कराई है 5 बच्चों की पढ़ाई का खर्चा उठा रहे हैं एक बच्चे को गोद लिया है। नहीं नहीं। जहां पहली लड़की होती हैं, वहां पर भी खुशी-खुशी बधाई देते हैं। लक्ष्मी आने पर सब को खुशी होती है।आम आदमी की तरह ही किन्नर का अंतिम संस्कार होता है। हिंदू है, तो हिंदू रीति से और अगर कोई मुस्लिम किन्नर है, तो मुस्लिम रीति से अंतिम करते हैं। समाज के चेहरे पर मुस्कान लाने के लिए राजनीति में आने की क्या जरूरत है। समाज सेवा के लिए जब भी आवश्यकता पड़ेगी। किन्नर समाज आगे रहेगा।