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बीकानेर,गंगाशहर। अखिल भारतीय तेरापंथ महिला मंडल के तत्वावधान में तेरापंथ महिला मंडल गंगाशहर द्वारा प्रतिक्रमण कार्यशाला का आयोजन किया गया। युगप्रधान आचार्यश्री महाश्रमणजी के आज्ञानुवर्ती मुनिश्री शांतिकुमारजी एवं शिष्य मुनिश्री जितेंद्रकुमारजी के मंगल सन्निध्य में आयोजित इस कार्यशाला में मुनिश्री ने प्रतिक्रमण की महत्ता बताते हुए इसके नियम उच्चारण एवं अर्थ के बारे में विवेचन किया। मुख्य वक्तव्य देते हुए मुनिश्री जितेंद्रकुमारजी ने कहा कि विभाव से स्वभाव में लौटना प्रतिक्रमण है। जैन धर्म में साधुओं के लिए प्रतिक्रमण करना अनिवार्य है तो श्रावक-श्राविकाओं के लिए भी इसकी उतनी ही उपयोगिता है। कृत अतिचार, व्रत का अतिक्रमण होने पर प्रतिक्रमण किया जाता है। इसके जो नियम है, आगम सुक्त है उनकी उच्चारण शुद्धि भी सही रहे यह आवश्यक है। प्रतिक्रमण आत्मशुद्धि का एक महत्वपूर्ण उपक्रम है। प्रतिक्रमण के द्वारा जो दोष लग गए हैं उनकी शुद्धि की जाती है। श्रावक श्रविका समाज को नियमित नहीं तो कम से कम पाक्षिक प्रतिक्रमण जरूर करने का प्रयास करना चाहिए। तत्पश्चात मुनिश्री शांतिकुमार जी ने एक कथा के माध्यम से प्रेरणा देते हुए कहा कि हमारी भावधारा निर्मल रहे तो जीवन उन्नति कर सकता है। व्यक्ति कोई भी कार्य करे उसमें भावों की निर्मलता, उज्जवलता बनी रहे यह आवश्यक है। मुनि अनुशासन कुमार जी एवं मुनि अनेकांतकुमारजी ने भी विचारों की अभिव्यक्ति दी। इस अवसर पर तेरापंथ महिला मंडल गंगाशहर की अध्यक्षा ममता रांका ने भी उद्बोधन दिया। कार्यक्रम में छह बहनों का उपासक श्रेणी में सम्मिलित होने पर सम्मान भी किया गया। महिला मंडल की पदाधिकारियों ने उपासिका संतोष बोथरा, रेणु बाफना, बुलबुल बुच्चा, शारदा छाजेड़, रक्षा बोथरा, कनक गोलछा का साहित्य से अभिनंदन किया। तपस्या के क्रम में रितेश बोथरा की धर्मपत्नी नीलम बोथरा ने 15 की तपस्या का प्रत्याख्यान किया एवं मोहनलाल बैद के सुपुत्र अनिल बैद ने 9 की तपस्या का प्रत्याख्यान किया।

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