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बीकानेर,रामायण एक दर्शन है तथा एक ऐसा विज्ञान है जो तत्व एवं आधारों से जुड़ा है। रामायण को आदि कवि वाल्मीकि ने लिखा। इसमें जो भगवान श्रीराम द्वारा माता सीता का परित्याग एवं शम्भूक वध की कथा है, उसे आदि कवि वाल्मीकि ने लिखा ही नहीं था। इसे हजारों वर्ष बाद किसी और कवि ने लिख कर वाल्मीकि रामायण में जोड़ दिया था। यह तथ्य वाल्मीकि रामायण के अध्ययन से बिल्कुल स्पष्ट हो जाता है। यह उद्गार डॉ. रजनी रमण झा, सह आचार्य, संस्कृत विभाग, राजकीय महारानी सुदर्शना कन्या महाविद्यालय, बीकानेर ने वनशाला शिविर के प्रसार व्याख्यान में साझा की। डॉ. झा ने रामायण के अलग-अलग कांड का वर्णन करते हुए यह सिद्ध किया कि उत्तरकांड की भाषा-शैली और घटनाक्रम पूर्व के कांड से मेल नहीं खाती है। डॉ. झा ने अपने शोध ग्रंथ में इस बात की पुष्टि भी की है। इस अवसर पर डॉ. झा ने सभी विद्यार्थियों को इस संबंध में पुस्तक वितरित की। महाविद्यालय के प्राचार्य डॉ. राजेंद्र कुमार श्रीमाली; संस्था निदेशक प्रोफेसर मिश्रीलाल मंडोत तथा वरिष्ठ व्याख्याता तरुण चौधरी ने डॉ. झा का बहुमान पट्टिका एवं स्मृति चिह्न भेंट कर सम्मान किया। शिविर प्रभारी भवानी सिंह पवार ने बताया कि प्रसार व्याख्यान के अतिरिक्त मनोविज्ञान प्रश्नमाला आयोजित की गई जिसमें गुजराती समूह प्रथम; राजस्थानी समूह द्वितीय; पंजाबी समूह तृतीय एवं हरियाणवी समूह ने सांत्वना स्थान प्राप्त किया।

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