बीकानेर,राजस्थान में अशोक गहलोत और सचिन पायलट के बीच जारी खींचतान खत्म कराने के लिए नई दिल्ली में बड़ी बैठक हुई थी. बैठक के बाद सचिन पायलट ने सारे गिले-शिकवे भूल विधानसभा चुनाव की तैयारियों में जुट जाने की बात कही थी.
राहुल गांधी ने चुनाव से पहले संगठन के स्तर पर काम करने की जरूरत पर बल दिया था और अब पार्टी उसी दिशा में आगे बढ़ती दिख रही है.
कांग्रेस ने राजस्थान चुनाव से पहले राजस्थान प्रदेश कांग्रेस कमेटी की जंबो कार्यकारिणी का ऐलान कर दिया है. इसमें एक कोषाध्यक्ष के साथ ही 21 उपाध्यक्ष, 48 महासचिव, एक महासचिव संगठन, 121 सचिव नियुक्त किए गए हैं. पार्टी ने साथ ही 25 जिलों के जिलाध्यक्ष भी नियुक्त कर दिए हैं. इस जंबो कार्यकारिणी के जरिए कांग्रेस ने हर जाति, हर वर्ग, हर क्षेत्र के साथ ही हर गुट को साधने की कोशिश की है. ऐसे नेताओं को भी जगह दी गई है जो किसी गुट में नहीं हैं.
हर गुट को साधने की कोशिश
चुनाव से कुछ महीने पहले 192 सदस्यों वाली भारी-भरकम प्रदेश कार्यकारिणी के जरिए अशोक गहलोत और सचिन पायलट गुट के बीच संतुलन साधने की कोशिश की ही गई है, पार्टी ने सूबे में और भी जितने गुट हैं, उनका भी ध्यान रखा है. किसी तरह का असंतोष न उत्पन्न होने पाए, कार्यकारिणी गठन में इस बात का विशेष ध्यान रखा गया है.
राजस्थान कांग्रेस के कोषाध्यक्ष बनाए गए सीताराम अग्रवाल की गिनती सचिन पायलट के करीबियों में होती थी. उनके अशोक गहलोत से भी अच्छे संबंध हैं. महासचिव संगठन बनाए गए ललित तूनवाल की कहानी भी कुछ ऐसी ही है. तूनवाल की गिनती ऐसे नेताओं में होती है जिनके दोनों तरफ अच्छे संबंध हैं. पायलट खेमे से पांच उपाध्यक्ष, पांच महासचिव भी बनाए गए हैं.
राजस्थान कांग्रेस के नवनियुक्त 121 सचिवों में से भी करीब डेढ़ दर्जन पायलट गुट के बताए जा रहे हैं. कार्यकारिणी में गहलोत गुट से जुड़े चेहरे अधिक दिख रहे हैं. हालांकि, इसके पीछे पायलट की तुलना में गहलोत समर्थकों की बड़ी तादाद को वजह बताया जा रहा है. कांग्रेस ने कार्यकारिणी में सीपी जोशी गुट के नेताओं को भी जगह दी है और ये कोशिश भी की गई है कि ऐसे नेताओं को भी जगह दी जाए जो तीनों में से किसी गुट के नहीं हैं.
जातीय गणित साधने पर फोकस
कांग्रेस की जंबो कार्यकारिणी में एससी-एसटी समुदाय से आने वाले चेहरे अधिक हैं. एससी-एसटी राजस्थान में कांग्रेस के कोर वोटर रहे हैं. पार्टी ने राजपूत, ब्राह्मण, जाट, गुर्जर, मीणा को भी भरपूर जगह दी है. कांग्रेस कार्यकारिणी में महिला और मुस्लिम चेहरों का अभाव है. इसे लेकर राजस्थान कांग्रेस के अध्यक्ष गोविंद सिंह डोटासरा ने भी कहा है कि हम महिला और मुस्लिम वर्ग को कार्यकारिणी में अधिक प्रतिनिधित्व नहीं दे सके. ऐसे में माना जा रहा है कि कार्यकारिणी की एक और लिस्ट अभी आएगी और उसमें महिला और मुस्लिम का खास खयाल रखा जाएगा. विधानसभा चुनाव करीब हैं, ऐसे में कांग्रेस किसी भी वर्ग को नाराज नहीं करना चाहेगी.
एक व्यक्ति,एक पद का फॉर्मूला
कांग्रेस के उदयपुर अधिवेशन में एक व्यक्ति, एक पद का फॉर्मूला लागू करने पर सहमति बनी थी. राहुल गांधी ने भी इसकी वकालत करते हुए साफ कहा था कि इसे सख्ती से लागू किया जाना चाहिए. लेकिन ऐसा हुआ नहीं. कांग्रेस ने अब उसी राजस्थान से इसे लागू करने की शुरुआत कर दी है जहां ये निर्णय हुआ था. नई कार्यकारिणी में गहलोत सरकार के एक भी मंत्री को जगह नहीं दी गई है. प्रताप सिंह खाचरियावास, रामलाल जाट, गोविंद राम मेघवाल समेत कई ऐसे नेता पहले कार्यकारिणी में थे जिनके पास सरकार में भी पद था लेकिन अब उन्हें शामिल नहीं किया गया है. इसके पीछे पार्टी मुख्य वजह बताया जा रहा है कि मंत्री संगठन में भी पद रहने की स्थिति में सांगठनिक कामकाज पर उतना ध्यान नहीं दे पाते. इससे संगठन को नुकसान होता है. सरकार नहीं संगठन ही सही, पद मिलने से कई नेताओं की नाराजगी भी दूर हो जाती है.
कार्यकारिणी में थे 39 पदाधिकारी
कांग्रेस में सचिन पायलट जब अशोक गहलोत के खिलाफ तल्ख तेवर दिखाते हुए समर्थक विधायकों के साथ हरियाणा के मानेसर चले गए थे, तब पार्टी ने उन्हें प्रदेश अध्यक्ष पद से हटा दिया था. कांग्रेस ने राजस्थान की कार्यकारिणी भी भंग कर दी थी. बाद में अशोक गहलोत के समर्थक गोविंद सिंह डोटासरा को राजस्थान कांग्रेस को सौंपी गई और कार्यकारिणी का गठन तो किया गया लेकिन उसमें 39 पदाधिकारियों की ही नियुक्ति की गई थी. कई जिलों में जिलाध्यक्ष के पद रिक्त चल रहे थे. कुछ दिन पहले कांग्रेस ने राजस्थान कार्यकारिणी के लिए 85 नाम का ऐलान किया था लेकिन फिर इसे होल्ड कर दिया गया था.
दिल्ली की मीटिंग में क्या हुआ था?
कांग्रेस नेतृत्व ने पायलट और गहलोत गुट की रार खत्म कराने के लिए दिल्ली स्थित पार्टी मुख्यालय में बैठक बुलाई थी. इस बैठक में सचिन पायलट के साथ ही गोविंद सिंह डोटासरा समेत कई नेता मौजूद थे. अशोक गहलोत भी वीडियो कॉन्फ्रेंसिंग के जरिए जुड़े थे. राहुल गांधी ने सरकार के कामकाज में ब्यूरोक्रेसी के दखल को लेकर नाराजगी जताई थी और कहा था कि कार्यकर्ता ही चुनाव जिताते हैं. राहुल गांधी ने सबसे पहले संगठन को मजबूत करने पर ध्यान देने के लिए कहा था.