बीकानेर,राज्य में पुलिस से अधिक चोर गिरोह सक्रिय है। चोर बेलगाम है, पुलिस लाचार और जनता भगवान भरोसे। लगातार बढ़ती वारदातें आम जन-मन को झकझोर रहीं है। लगता है जैसे चोरों में पुलिस का भय खत्म हो गया है। व्यवस्था को ठेंगा दिखाकर चोर पुलिस के लिए खुली चुनौती बनते जा रहे हैं। प्रतीकात्मक कार्रवाई पुलिस की कार्यशैली बन गई है। अपराध का ग्राफ बढना शासन, प्रशासन और समाज सभी के लिए खतरनाक है।
पिछले कुछ दिन से चोरी की वारदातें सुर्खियां बटोर रही हैं। हर शहर-गांव में हर रात घर हो या दुकानें चोरों का निशाना बनती जा रही हैं। लोगों की जीवनभर की कमाई को चोर ले उड़ते हैं। पीड़ित पुलिस से आस लगाता है लेकिन पुलिस चोरों के आगे बेबस नजर आती है। गश्त और चोरों को ढूंढने के नाम पर सिर्फ खानापूर्ति होती है। अपनी जीवनभर की जमापूंजी गंवा चुके लोगों के हिस्से में आते हैं सिर्फ आंसू।
क्या ये घटनाएं बहुत ही बेशर्मी से हमारी व्यवस्था को मुंह नहीं चिढ़ा रही हैं? आखिर चोरों का हौसला इतना क्यों बढ़ रहा है? अपनी खाल बचाने के लिए यह तर्क भी दिया जाता है कि कोरोना के बाद बेरोजगारी और बेकारी ने चोरी जैसी वारदातें बढ़ा दी हैं। क्या यह सच में पुलिस की करनी पर पर्दा डालने की कोशिश नहीं है?
पुलिस की सुरक्षा व्यवस्था को लेकर आए दिन सवाल उठते हैं। प्रश्न यह भी उठता है कि चोर इतना साहस कैसे कर पाते हैं कि वे पुलिस को छकाकर उसके लिए निरंतर चुनौती खड़ी कर दें। छिटपुट वारदातें तो दर्ज ही नहीं होतीं। चोरों में पुलिस का खौफ जैसे खत्म हो गया है।
ऐसा भी नहीं है कि पुलिस अपने दायित्व से पीछे हट गई हो। पुलिस के प्रति विश्वास कायम करने के लिए जरूरी है कि गश्त और नाकाबंदी बढ़ाई जाए। अपना सूचना तंत्र मजबूत करें। वरना पुलिस के इकबाल पर सवाल उठेगा। ये संदेश तो कतई नहीं जाना चाहिए कि पुलिस केवल सत्तासीन नेताओं की मिजाजपुर्सी में ही अपनी ऊर्जा लगा रही है। तभी कानून के रखवालों की गरिमा बरकरार रह पाएगी और ‘आमजन में विश्वास और अपराधियों में भय’ का नारा सार्थक होगा।