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बीकानेर,पाकिस्तान अपनी नापाक हरकतों से बाज नहीं आ रहा। वह जासूसी के लिए पक्षियों को मोहरा बनाता है। बीकानेर जिले में ढाई साल में दूसरी बार एक और कबूतर को पकड़ा गया है, जिस पर जासूसी का शक है। इन बेजुबान पक्षियों के पकड़े जाने पर उन्हें कैद काटनी पड़ती है। हालात यह है कि इन पक्षियों के जासूस होने व नहीं होने की प्रक्रिया बेहद जटिल है, जिसके चलते पक्षियों को खुले आसमान में छुड़ने की जगह लोहे के पिंजरों में जिंदगी गुजारनी पड़ती है। करीब पौने तीन साल पहले छतरगढ़ थाना क्षेत्र के मोतीगढ़ गांव में भी एक कबूतर मिल चुका है।

जब जासूसी के आधुनिक उपकरण विकसित नहीं हुए थे, कबूतरों से जासूसी कराना आम बात थी। पर क्या आज के इस आधुनिक युग में कबूतरों से जासूसी होती है। यह बड़ा सवाल है जो अब उठ रहा है क्योंकि बीकानेर जिले के बज्जू थानाक्षेत्र के भुरासर गांव में पाक से आया एक कबूतर मिला है जो पुलिस के कब्जे में हैं। पुलिस व सुरक्षा एजेंसियों को शक है कि इसे भारत में जासूसी करने के लिए पाकिस्तान से भेजा गया है।

पहले भी पकड़े जा चुके हैं पक्षी राजस्थान के बीकानेर, गंगानगर, जोधपुर शहरों में पिछले कुछ सालों में इस तरह के कई मामले सामने आ चुके हैं। ऐसे अधिकतर मामले बीकानेर और जोधपुर से आए हैं। बीकानेर में कभी हरे रंग के गुब्बारे तो कभी कबूतर को पकडा जा चुका है। गुब्बारों पर हरे और नीले रंग के बीच उर्दू भाषा में शब्द लिखे मिले। कुछ समय पहले पकडे गई एक चील के शरीर से तो ट्रांसमीटर जैसा उपकरण भी बरामद हो चुका है। गुब्बारों से भी कई बार ट्रांसमीटर बरामद हुआ है। पुलिस इस तरह के पकड़े जाने वाले पक्षियों के बारे में सीआईडी सहित अन्य सुरक्षा एजेंसियों व सेना के अफसरों को जानकारी दी जाती है, ताकि अगर ये जासूसी की प्रक्रिया है तो इसे समय रहते काबू किया जा सके।

छतरगढ़ के मोतीगढ़ गांव में मिले कबूतर के पंखों पर मोहर लगी थी। मोहर पर चारणपुर टू लाहौर 225 अंकित था। इस कबूतर की करीब सवा दो साल तक थाने में आवभगत की गई। बकायदा एक सिपाही की ड्यूटी लगाई गई जो कबूतर के दाना-पानी व सुरक्षा का ख्याल रखता था। पुलिस ने कबूतर के संबंध में सुरक्षा एजेंसियों को दी गई लेकिन कोरोना की वजह से लॉकडाउन लगने से सुरक्षा एजेंसियां देरी से पहुंची। तब तक पुलिस को ही कबूतर की आवभगत करनी पड़ी। आवभगत का नतीजा यह हुआ कि कबूतर उड़ना तक भूल गया। दाना-पानी खाकर वह मोटा हो गया, उसका वजन बढ़ गया। करीब सवा दो साल बाद जांच में प्रमाणित हुआ कि यह जासूसी कबूतर नहीं किसी का पालतू हैं। इसके बाद कबूतर को वन विभाग के सुपुर्द किया गया।

बज्जू सीआई भूपसिंह ने बताया कि कबूतर के बारे में पुलिस व सुरक्षा एजेंसियों ने जांच-पड़ताल कर ली है। कबूतर जासूसी नहीं पातलू हैं। जांच-एजेंसियों को तसल्ली होने पर कबूतर को वन विभाग के सुपुर्द कर दिया गया है। वहीं एक अन्य सुरक्षा एजेंसी से जुड़े अधिकारी के मुताबिक अगर कोई पक्षी संदिग्ध पकड़ा जाता है तो उसकी जांच प्रक्रिया पूरी अपनानी पड़ती है फिर चाहे वह पालतू ही क्यों न हो।

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