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बीकानेर, गो+चर गाय के चरने वाली भूमि। गोचर भूमि का भिन्न पारिस्थितिक और प्राकृतिक चक्र है। गायों की चराई के अलावा स्थानीय वनस्पति के संरक्षण, जीव जंतुओं के संवर्धन का स्थल है। हमारे ग्रंथों में इसकी महत्ता बताई गई है। यह भी कहा गया है कि गोचर की एक इंच भी जमीन पर कब्जा करने या गाय की चराई के अलावा अन्य उपयोग करने वाला घोर नरक में जाता है। जिन सेठ साहूकारों ने गोचर राजकोष में धन जमा करके छुड़वाई है उन दस्तावेजों में भी स्पष्ट लिखा है की इस भूमि का गोचर के रूप में उपयोग होगा। राज्य सरकार के नीति निर्देशों और उच्च न्यायालय और सर्वोच्च न्यायालय के भी ऐसे ही फैसले और दिशा निर्देश है। गोचर और वन विकास में कोई फर्क है क्या ? इसे जिला कलक्टर समझते भी हैं ? राजस्थान सरकार के राजस्व मंत्री राम लाल जाट, बंजर भूमि और चारागाह विकास बोर्ड के अध्यक्ष संदीप चौधरी, कैबिनेट मंत्री डा. बी डी कल्ला और जिला कलक्टर भगवती प्रसाद कलाल गोचर का तात्पर्य और इस संदर्भ के दिशा निर्देशों को तो समझते ही है। सरकार गोचर को वन भूमि में क्यों बदल रही है ? यह कार्य बैड रूम में किचन बनाने जैसा है। पेड़ लगाना भी पुण्य का काम है गोचर पेड़ नहीं चारगाह लगाने की जगह है। गोचर और वन विकास के बीच का फर्क हल्की सी झिल्ली जैसा है। पेड़ लगाने की किसी भी आधार पर आलोचना करना गलत है। पेड़ लगाना प्राकृतिक चक्र और पर्यावरण संरक्षण के लिए अत्यंत जरूरी है। वास्तव में जो पेड़ लगाने का पुण्य का काम करते हैं उनकी पीढ़ियां तर जाती है, परंतु गोचर में पेड़ नहीं चारागाह विकास ही किया जाना उचित है। जिला कलक्टर गोचर भूमि के कानून मालिक है वे और मंत्री गोचर के मूल उपयोग की अनदेखी करते हैं तो इसका दूरगामी प्रभाव क्या होगा समझने की जरूरत है। भीनासर गोचर को वन भूमि के रूप में बदलने के प्रयास से एक तरह से मंत्रियों के समूह और जिला कलक्टर ने गोचर की अहमियत को ताक पर रखा है। 1982 में इसी गोचर पर पर्यावरण की दुहाई देकर दस हजार सफेदे के पेड़ लगाए थे जनता उखाड़ फेंके। इस मुद्दे पर पर्यावरण प्रेमी और पत्रकार शुभू पटवा के नेतृत्व में दो दशक तक आंदोलन चला था। अब भी जनता के जागने भर की देरी है। गोचर का भू उपयोग परिवर्तन करने की जनता अनुमति नहीं देगी। भले ही प्रशासन और सरकार गोचर हितों को राजनीति की बलि चढ़ाने को चुप्पी साध लें।

सेवा संस्थान के त्रिलोकी कल्ला ने पौधारोपण को लेकर जो भी बातें कहीं वो सिद्धांत रूप से शत प्रतिशत सही है। वे सेवा की भावनाओं से काम कर रहे होंगे इस पर भी सवाल खड़े करना उचित नहीं है। वे छोटे स्तर पर पेड़ लगाने का काम करके पर्यावरण संरक्षण का बड़ा संदेश देना चाहते हैं। त्रिलोकी कल्ला ये सब सेवा की भावना से कर रहे हैं कोई राजनीति नहीं करते यह बात भी सच मान ली जाए। फिर भी उनको गोचर में चारागाह विकास की ही अनुमति दी जा सकती है। गोचर में वे वन नही लगा सकते। वे पेड़ लगाने के लिए अन्य भूमियों की कमी नहीं है। गोचर को गोचर ही रहने दें। अमर प्रताप डेवलपर्स प्राइवेट लिमिटेड और लोटस डेयरी के अध्यक्ष अशोक मोदी गोचर भूमि के साथ छेड़छाड़ में क्यों सहभागी बन रहे हैं वे ही जाने। स्वामी रामसुख दास जी तो कहते थे कि गोचर में चारागाह का ऐसा विकास हो कि गोकुल की तरह यहां गाएं करती दिखाई दें। स्वामी राम सुख दास जी का सपना पूरा हो या त्रिलोकी कल्ला का सपना ? मोदी जी आप किसका सपना पूरा करना चाहते हैं। जिला कलक्टर तो लकीर के फकीर हैं उनको तो योजनाओं की समीक्षा करके चला जाना है। राजनीति वोटों की है। गोचर को कोई क्यों उजड़ने देंगे। गोचर और वन विकास में मूल फर्क को समझने की जरूरत है। सरकार गोचर के मूल सिद्धांत को समझकर गाय के चारागाह को सुरक्षित बनाए। वैसे भी राज्य में चारागाह की कमी है। गोचर में वन विकास से ज्यादा जरूरी चारागाह विकास है। क्या सरकार इसे नहीं मानती ?

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