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बीकानेर,सरकार में अपना प्रोटोकाल होता है। मुख्यमंत्री सर्वेसर्वा माना जाता है। पूरा कैबिनेट सीएम से ऊपर कोई बयान नहीं देता। सीएम को भांपकर ही कैबिनेट या राज्यमंत्री बयानबाजी करते हैं। यहां तो सीएम के ओ एस डी ने बीकानेर में मान मर्यादाओं की सारी सीमाएं ही तोड़ दी। मुख्यमंत्री के विशेषाधिकारी लोकेश शर्मा बीकानेर आए वे किसी कैबिनेट मत्री के मानिंद सार्वजनिक कार्यक्रम में शामिल हुए। स्वागत अभिनंदन करवाया। साथ ही मुख्यमंत्री के विशेषाधिकारी ने संकेत दिए कि राजस्थानी जल्द बनेगी राजभाषा। यह समाचार स्थानीय समाचार पत्र में छपा है। जन सम्पर्क विभाग ने ओ एस डी के कार्यक्रमों के सात फोटो और छह समाचार जारी किए हैं। इतने समाचार और फोटो राष्ट्रपति और राज्यपाल या कैबिनेट मंत्री के भी जारी नहीं हुए है। बेशक लोकेश शर्मा योग्य ओ एस डी होंगे। अशोक गहलोत सरकार में अच्छा काम करते होंगे, परंतु प्रोटोकॉल तोड़ना उन्हें शोभा नहीं देता। इससे साख गहलोत सरकार की गिरती है। जन सम्पर्क विभाग के सरकारी सिस्टम से ओ एस डी को कैबिनेट मंत्री से ज्यादा तरजीह दी है। खैर डी पी आई आर में तो प्रोटोकाल कोई देखने वाला नहीं है। सरकार में क्या ओ एस डी को ऐसे बयान देने और इस तरह के आचरण की छूट है? ओ एस डी की सरकार में क्या सीमाएं है बताने की जरूरत नहीं है। सीएम के और भी ओ एस डी है वे भी अपनी ड्यूटी करते हैं और प्रोटोकाल की पालना करते हैं। फिर लोकेश शर्मा क्या सारे प्रोटोकॉल से ऊपर हैं। इससे कोई अच्छा संदेश नहीं जा रहा है। मुख्यमंत्री की नजर में लोकेश शर्मा कोई ज्यादा अहमियत रखते हैं तो उनको कैबिनेट का दर्जा क्यों नही देते? बात यह है कि प्रोटोकॉल से ऊपर व्यवहार करने से सरकार की हास्यास्पद स्थिति बनती है। यह सारा मखौल मुख्यमंत्री के ओ एस डी होने से ही बना है। इसका संदेश यह जाता है कि मुख्यमंत्री के नाम पर हर कोई सत्ता का इस्तेमाल अपनी पैठ बनाने में कर सकता है। सरकारी विभागों का बेजा इस्तेमाल पर कोई रोक टोक करने वाला नहीं है। यह सारा खेल सीएम के ओ एस डी होने के चलते ही है। क्या ऐसी अनुमति देना प्रोटोकॉल की अनदेखी नहीं है ?

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