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बीकानेर,ट्रोमा सेंटर यानि हड्डी विभाग की व्यवस्थाओं पर कालिख पुती हुई है। गरीब और असमर्थ आपको कहने नहीं आएगा। आएगा तो भी व्यवस्था में कितना सुना जाएगा बताने की जरूरत नहीं है। खजोटिया साहब आप भुगत रही जनता से ज्यादा जानते हैं कि व्यवस्था में खामियां कितनी है और कहां है। मानव व अन्य संसाधनों का समुचित उपयोग क्यों नहीं हो रहा है। व्यवस्था दुरुस्त की जा सकती है थोड़ा साहस दिखाने की जरूरत है। यह बात सही है कि व्यवस्था पर कॉकस हावी है। व्यवस्था से मजबूर लोगों को डॉक्टरों के घर पर दिखाने जाना पड़ता है। आउटडोर में चिकित्सा करने वाले डॉक्टर रोगी के प्रति कितनी जिम्मेदारी से काम करते हैं आप जानते ही हैं। आप आउट डोर की व्यवस्था को आसानी से सुधार सकते हैं। बस ईमानदार प्रयास की जरूरत है। डॉक्टरों को आउट डोर में दिखाने के लिए रोगियों की प्रवेश द्वार पर जोर आजमाइश के आप खुद प्रत्यक्षदर्शी हैं। आपके आंखों के सामने ऐसा क्यों होता है। क्या आप बीमारों को टोकन देकर इस जोर आजमाइश से मुक्ति नहीं दिला सकते ? लोगों के क्या हाल होते हैं व्यवस्था को शर्म ही नहीं आती, क्योंकि तभी परेशान लोग घर दिखाने आएगें। यह कड़वा औऱ प्रमाणित सच है। आपके डॉक्टर घर दिखाने वाले रोगियों को ऑपरेशन में वरीयता देते हैं। आपरेशन थियटर में कुछ लोगों की मनमानी जगजाहिर है। सुधर जाए तो जनता को राहत मिलेगी। आपके एक्सरे तो ठीक ही होते होंगे चेक कर लें। बाहर से करवाए एक्सरे औऱ ट्रोमा में करवाए एक्सरे में फर्क देखना हो तो प्रमाणित एक्सरे मेरे पास पड़ें है। कमेटी बैठकर जांच कर सकते हैं। अगर कमेटी बैठाने में आपको झिझक हो तो सरकार से आग्रह किया जा सकता हैं। आलोचना करना या कमियों की तरफ ध्यान दिलाने का तभी कोई अर्थ है जब व्यवस्था में सुधार की मंशा हो। आप के व्यवहार में संवेदनशीलता है। अनुभव है। बीकानेर में आपकी अपनी प्रतिष्ठा भी है। लोगों को आपसे उम्मीद भी है। जीवन जनता की सेवामें समर्पित करने की आप जैसे विभागाध्यक्ष से जनता आस लगाए बैठी है। नहीं तो यातना तो भुगत ही रही है। आपके विभागाध्यक्ष बनने से राहत मिलेगी ? ढर्रा बदल जाएगा ना।

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