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बीकानेर, वेटरनरी विश्वविद्यालय के प्रसार शिक्षा निदेशालय द्वारा राज्य स्तरीय ई-पशुपालक चौपाल बुधवार को आयोजित की गई। पशुओं के नवजात बच्चों की देखभाल विषय पर विशेषज्ञ डॉ. अशोक कुमार ने पशुपालकों से वार्ता की। कुलपति प्रो. सतीश के. गर्ग ने चौपाल में विचार व्यक्त करते हुए कहा कि राजस्थान में पशुपालन पशुपालकों की आजीविका का महत्वपूर्ण आर्थिक आधार है यहां गौवंश के अलावा भैंस, भेड़, बकरी एवं ऊंट पालन मुख्यतः से किया जाता है। ई-चौपाल के विषय को सामायिक बताते हुए उन्होंने कहा कि नवजात पशुओं का उचित प्रबंधन सफल पशुपालन का आधार है। आज तकनीकों का जमाना है अतः वैज्ञानिक पशुपालन की उन्नत तकनीकों को अपनाकर पशुपालक भाई इस व्यवसाय से अधिक लाभ प्राप्त कर सकते है। निदेशक प्रसार शिक्षा प्रो. राजेश कुमार धूड़िया ने विषय प्रवर्तन करते हुए बताया कि पशुपालक भाई यदि जन्म से नवजात पशु का उचित प्रबन्धन करें तो आगे चलकर पशु स्वस्थ रहेगा, अधिक उत्पादक एवं प्रजनक बनेगा। आमंत्रित विशेषज्ञ डॉ. अशोक कुमार, प्रधान वैज्ञानिक, पशु स्वास्थ्य विभाग, केन्द्रीय बकरी अनुसंधान संस्थान, मखदूम, मथुरा ने बताया कि नवजात बछड़ो या मेमनो की देखभाल इसलिए ज्यादा आवश्यक है क्योंकि छोटे बच्चों में मृत्युदर अधिक रहती है जिसका पशुपालकों को नुकसान उठाना पड़ता है। मादा की गर्भावस्था में ही उसकी उचित देखभाल एवं प्रबंधन हो तो बच्चे का विकास अच्छा होता है, अतः ग्याभिन पशुओं को उचित पोषण प्रदान करना चाहिए। पशुओं में प्रसव से पूर्व ही नवजात के लिए उचित आवास व्यवस्था कर लेनी चाहिए। प्रसव के समय पशु की जर गिरना एवं नवजात बच्चे में नाल संक्रमण को रोकने हेतु विशेष ध्यान रखना चाहिए। नवजात बछडे या मेमनों को उचित मात्रा में एवं सही समय पर खीस या क्लोस्ट्रम जरूर खिलाना चाहिए जो कि पोषण के साथ-साथ बछड़ों में रोग प्रतिरोधक क्षमता उत्पन्न करता है एवं विभिन्न बीमारियों से बचाता है। पशुओं में उचित प्रबन्धन हेतु सींगरोधन, बधियाकरण एवं पशु पहचान हेतु टेगिंग जैसे प्रबन्धन तरीकों को भी अपनाना चाहिए। पशुपालक भाई उचित प्रबन्धन, संतुलित आहार, टीकाकरण अपनाकर वैज्ञानिक तरीके से पशुपालन कर सकते है और इस व्यवसाय को अधिक लाभदायक बना सकते है।

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